सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास (indus vally civilizetion)

सिंधु घाटी सभ्यता का भारतीय इतिहास में अत्यन्त ही महत्वपूर्ण स्थान है। प्राचीन भारतीय इतिहास का कोई भी अध्ययन सिंधु घाटी सभ्यता या indus vally civilizetion के अध्ययन के बिना अधूरा है। सिंधु घाटी सभ्यता अपने अंदर बहुत से रहस्य समेटे हुए है। इसका कारण है कि इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं मिल पायी है जैसे कि इसका-इसका उदय कब हुआ, क्या यह आर्यों की सभ्यता थी या कोई और ,ये कहाँ से आये और कहाँ गए ,ये सभ्यता समाप्त कैसे हुई आदि आदि__

आइये इन प्रश्नों को खोजने का प्रयास करते हैं ——

सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में जितनी जानकारी मिली है उससे कहीं अधिक जानने का प्रयास बढ़ता जा रहा है। अबतक प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्यों से यह ज्ञात हो जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता अत्त्यन्त उन्नत सभ्यता थी। वहां की नगर व्यवस्था ,रहन -सहन का तरीका की आधुनिक समय की अच्छी से अच्छी नगर संरचना से तुलना की जा सकती है।

इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता कहने का कारण यह है कि यह सिंधु नदी की घाटी में विकसित हुई तथा हड़प्पा सभ्यता कहने का कारण है कि सबसे पहले इसका पता पाकिस्तान के हड़प्पा नामक स्थल से चला।

सिंधु घाटी सभ्यता का समय :-

सिंधु घाटी सभ्यता का समय अलग -अलग विद्वानों के अनुसार अलग -अलग है। गार्डन चाइल्ड नामक विद्वान इसे 4000 ई.पू. तक पुरानी मानते हैं। डी.पी. अग्रवाल के अनुसार यह 2300 ई.पू. तक पुरानी हो सकती है जबकि मैके के अनुसार इसकी तिथि 2800 ई.पू. रही होगी।

मोहनजोदड़ो में खुदाई करने पर जल से लेकर धरातल तक प्राचीन नगरों के एक के बाद एक सात अवशेष प्राप्त हुए हैं। यदि प्रत्येक नगर को बसने व बिगड़ने में लगभग 500 वर्ष लगे होंगे तो कुल सात नगर बसने में 3500 वर्ष अवश्य लग गया होगा क्योंकि पुराने नगरों के अवशेषों पर नए नगरों का निर्माण होता गया है। इस प्रकार आसानी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सिंधु घाटी सभ्यता कम से कम 3500 वर्ष पुरानी अवश्य रही होगी।

भौगोलिक विस्तार :-

सिंधु घाटी सभ्यता लगभग 2 .5 लाख वर्ग किलोमीटर में त्रिभुजाकार फैली थी। इसका विस्तार जम्मू में चिनाब नदी के तट पर अखनूर के निकट मांडा से दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक दायमाबाद जिला अहमदनगर महाराष्ट्र व पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट तक अंतिम स्थल सुत्कागेंडोर और उत्तर पूर्व में उत्तरप्रदेश के मेरठ जिले में आलमगीरपुर तक था।

यह उल्लेखनीय है कि सिंधु घाटी सभ्यता के जो क्षेत्र प्रकाश में आये है के सिंधु व उसकी सहायक नदियों के साथ -साथ सरस्वती व उसकी सहायक नदियों के किनारे तथा समुद्र के किनारे मिले है यह वही सरस्वती नदी है जिसका वर्णन ऋग्वेद में कई बार आया है। ये क्षेत्र है सिंध ,पंजाब हरियाणा ,उत्तरप्रदेश आदि।

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज :-

सिंधु घाटी सभ्यता को खोजने का सर्वप्रथम श्रेय राय बहादुर दयाराम साहनी को जाता है। इन्होंने सन 1921 में हड़प्पा नामक स्थान पर इसकी खोज की थी। इसीलिए इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाने लगा। उसके बाद राखालदास बनर्जी ने 1922 में लरकाना जिले में मोहनजोदड़ो की खोज की।

आइये यहाँ के कुछ प्रमुख स्थलों के बारे में जानते हैं :-

  • हड़प्पा :-
  • यह स्थल रावी नदी के तट पर पाकिस्तान के मांटगोमरी जिले में स्थित है।
  • इसके खोजकर्ता राय बहादुर दयाराम साहनी है उन्हों इसे सन 1921 में खोजा था।
  • इसकी खुदाई से पकायी गयी ईंट की पशु मूर्तियां ,कांसे के औजार दूधिया पत्थर की मुद्राएं ,दो पहियों वाला तांबे का रथ,भट्ठियां ,चित्रों वाले मिट्टी के बर्तन ,मानव कंकाल आदि मिले हैं।

मोहनजोदड़ो :-मोहनजोदड़ो का अर्थ होता है मृतकों का टीला।

  • यह स्थल पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में स्थित लरकाना में है जो सिंधु नदी के किनारे है।
  • इस नगर में कई टीले हैं ,इसके दुर्ग टीले में सार्वजनिक भवन ,सार्वजनिक स्नानागार ,सभा भवन व अन्नागार हैं।
  • नगर टीले में योजनाबद्ध तरीके से बनाये हुए भवन हैं।
  • इसकी खोज सन 1922 में राखालदास बनर्जी ने की थी।

काली बंगा :-

काली बंगा का अर्थ होता है काली चूड़ियाँ

  • यह घग्घर नदी के किनारे आधुनिक राजस्थान के हनुमान गढ़ जिले में स्थित है।
  • यहाँ की खुदाई से कच्ची मिट्टी की वेदिकाएं व मृद भांड मिले हैं इसके अलावा यहाँ से खेत जोते जाने के भी प्रमाण मिले हैं।
  • काली बंगा की खोज सन 1953 में बी.बी. लाल एवं बी.के. थापर ने की थी।

चन्हूदड़ो :-

  • यह स्थल मोहनजोदड़ो से लगभग 150 किलोमीटर दूर सिंध प्रान्त में है।
  • इसकी खुदाई में हाथी दांत की वस्तुएँ एवं तौल व मुद्राएं मिली हैं।
  • इस स्थान की खोज सन 1931 में गोपाल मजूमदार ने की थी।

लोथल :-

  • यह स्थल अहमदाबाद में भोगवा नदी के किनारे स्थित है।
  • इसकी सबसे महत्वपूर्ण प्राप्ति यहाँ पक्की ईंटो का बना एक बंदरगाह है जो उस समय व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र था। इसके अलावा यहाँ से जोड़े में शवधान(अंतिम संस्कार ) के प्रमाण मिले हैं ,जिससे विद्वान् सतीप्रथा का अनुमान लगाते हैं।
  • इस स्थान की खोज 1955 में रंगनाथ राव ने की थी।
लोथल का सैंधव स्थल

धौलावीर :-

  • धौलावीर गुजरात के कच्छ जिले में है।
  • यहाँ एक जलाशय का अवशेष मिला है साथ ही विश्व के सबसे बड़े और प्राचीन स्टेडियम के भी अवशेष मिले हैं।
  • इसके अलावा यहाँ से सिंधु लिपि के अभिलेख भी मिले हैं जिन्हे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
  • इस स्थान की खोज सन 1990 में रवीन्द्र सिंह बिष्ट ने की थी।

इसके अलावा अन्य अनेक स्थल जैसे -कोटदीजी,रंगपुर,रोपड़,आलमगीरपुर,बणावली आदि स्थल भी प्राप्त हुए हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता की संरचना:-

सिन्धु घाटी सभ्यता का नागरिक जीवन और चीजों का रखरखाव इतने व्यवस्थित ढंग से है कि इसे देखकर आश्चर्य होता है कि आज के उजाड़ स्थान पर कभी ऐसी उन्नत सभ्यता फली -फूली होगी ,जिस नागरिक जीवन की व संगठित नगर व्यवस्था की प्राप्ति के लिए आधुनिक समय के राज्य प्रयासरत हैं वह चार -पांच हजार साल पहले सिन्धु घाटी में रह चुकी है। आइये जाने सिन्धु घाटी की नगर व्यवस्था किस प्रकार की थी —

नगर व्यवस्था :-

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रत्येक नगर के पश्चिम दिशा में एक ऊँचा दुर्ग बना हुआ है तथा पूर्व दिशा में निचले स्थान पर नगर है। दुर्ग के अंदर किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का निवास रहा होगा और निचले स्थान पर आम जनता रहती थी। केवल कालीबंगा में आम जन के लिए भी दुर्ग बना था।

नगर की सड़कें व गलियाँ सीधी हैं व एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं। नगर की प्रधान सड़क लगभग 34 फिट चौड़ी है तथा एक सड़क उत्तर से दक्षिण की ओर नगर के बीचों -बीच जाती है तथा दूसरी सड़क जो पूर्व से पश्चिम की ओर जाती थी उसे समकोण पर काटती थी।

मुख्य सड़क से जुड़ी हुई अन्य सड़कें भी एक दूसरे को सीधी काटती थीं। ये भी 9 से 18 फिट तक चौड़ी थीं। गली की सड़कें भी सीधी हैं और एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं। यह बात ध्यान देने योग्य है कि सड़कें मिट्टी की बनायी जाती थीं।

मकान सड़कों के किनारे थे लेकिन उनका द्वार सड़क की ओर ना होकर गली की ओर था। इनकी दीवारें मोटी ईंटों की बनी थीं (27 .94 /13 .91 /6 .21 सेंटीमीटर हैं ).दरवाजे पूरी तरह हवादार व खिड़कियों से युक्त थे। कुछ लोगों के घर दो मंजिले भी बने थे क्योंकि सीढ़ियों के भी अवशेष भी खुदाई में मिले हैं। प्रत्येक घर की फर्श पक्की ईंटों की बनी थी।

प्रत्येक घर के अंदर कुआँ पाया जाता था। घर के अंदर अग्नि कुंड मिला है,इसके अलावा जल निकासी के लिए पक्की नालियाँ मिली हैं जो आगे जाकर बड़ी नालियों से मिल जाती थीं। नालियों को ढकने के लिए ईंटों की व्यवस्था थी। नालियों में कूड़ा फंस जाने पर निकालने की भी व्यवस्था की गई थी। घर में कूड़ा रखने के लिए कूड़ेदान भी मिले हैं। प्रत्येक घर में स्नानागार भी था ।

स्नान कुण्ड :-

मोहनजोदड़ो स्थल पर एक विशाल स्नानागार मिला है। यह 29 फिट लम्बा ,23 फिट चौड़ा व 8 फिट गहरा है। यह चौकोर आकार का है। इस कुण्ड में उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। यह कुण्ड भरा और खाली किया जाता था ,इसके पूर्व में एक कुआँ बना है जिससे पानी भरा जाता था। पानी खाली करने के लिए नालियाँ बनी थीं। यहाँ पर गर्म पानी का हम्माम भी था। विद्वानों के अनुसार इस स्नान घर का प्रयोग विशेष धार्मिक अवसरों पर किया जाता था।

मोहनजोदड़ो स्नान घर

अन्नागार :-

हड़प्पा में एक विशाल अन्नागार भी मिला है जो एक ऊँचे चबूतरे पर है। यह अन्नागार लगभग 800 वर्गमीटर में बना है। इसमें कई भाग हैं प्रत्येक भाग 50 फिट लम्बा और 20 फिट चौड़ा है।

स्टेडियम :-

धौलावीरा नामक स्थान पर विश्व का सबसे प्राचीन व बड़ा स्टेडियम मिला है इसकी लम्बाई 283 मीटर और चौड़ाई 45 मीटर है। स्टेडियम में दर्शकों के बैठने के लिए सीढ़ियाँ बनायी गई थीं।

सामाजिक जीवन :-

सिंधु सभ्यता के विषय में अनुमान लगाया जाता है कि यह मातृ सत्तात्मक थी क्योंकि स्त्री मूर्तियाँ बहुत अधिक मात्रा में मिली हैं। मूर्तियों से पता चलता है कि सिंधु सभ्यता के लोगों का पहनावा ऊपर चादर या शाल था। पुरुष दाढ़ी मूंछ रखते थे और स्त्रियाँ केशों को सवारती थीं ,खुदाई में मिले हाँथी दांत के कंघे और कांसे के दर्पण इसके प्रमाण हैं।

  • सिन्धु सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन का प्रयोग करते थे। भोजन में अन्न ,मांस,फल ,अण्डे का प्रयोग होता था।
  • इनकी मुख्य फसल गेहूं और जौ थी। मिठास के लिए शहद का प्रयोग होता था।
  • यातायात के लिए दो पहियों व चार पहियों वाली बैल गाड़ी अथवा भैंस गाड़ी का प्रयोग किया जाता था।
  • तांबे ,चांदी ,सोना ,सीसा का आयात किया जाता था।
  • कांसे के हथियार और मूर्तियां मिली हैं।

मनोरंजन के साधन :-

मछली पकड़ना ,शिकार ,पशु -पक्षिओं की लड़ाई ,पासा खेलना ,नृत्य आदि।

धार्मिक जीवन :-

धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा की जाती थी ,इसके अलावा कूबड़ वाले सांड ,वृक्ष और पशुपति की पूजा होती थी। मातृ देवी की उपासना के सर्वाधिक प्रमाण हैं। मुहर पर स्वास्तिक का भी अंकन है। मोहनजोदड़ो में तीन सींग वाले पशुपति का चित्र है जो पद्मासन लगाए हैं ,उनके एक और एक हाथी एक गैंडा ,एक बाघ है तथा नीचे एक भैंसा और पाओं पर दो हिरन हैं।

राजनैतिक जीवन :-

ऐसा लगता है की ये लोग शान्ति प्रिय थे और अपनी आर्थिक और सामाजिक उन्नति में लगे रहते थे। कुछ विद्धान यहाँ पुरोहितो का शासन तो कुछ वणिको का शासन होना अनुमान लगाते हैं ,परन्तु बिना उचित शासन व्यवस्था के इतनी उन्नत सभ्यता चल नहीं सकती। परन्तु इसके विषय में अधिक जानकारी नहीं है।

सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन :-

इसके विषय में कोई निश्चित प्रमाण नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार आर्य पश्चिम से आये और उन्होंने इसे नष्ट कर दिया परन्तु इस बात का कोई स्पस्ट प्रमाण नहीं है कि आर्य बाहरी थे। कुछ के अनुसार सिंधु नदी ने अपना मार्ग बदल दिया जिससे वह स्थान रहने के अनुकूल न रहा।

सिंधु लिपि अभी पढ़ी नहीं जा सकी है उसे पढ़ने का प्रयास जारी है यदि उसे पढ़ने में सफलता मिल गयी तो बहुत से अनसुलझे सवालों पर से पर्दा उठ सकता है।

इस प्रकार हमने देखा कि सिंधु घाटी सभ्यता अत्यन्त प्राचीन होने के साथ ही अत्त्यन्त उन्नत सभ्यता थी।

सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य:-

इस सभ्यता का शहर मोहनजोदड़ो 7 बार बाढ़ से बर्बाद हुआ था।

इस सभ्यता के लोग मिट्टी के बर्तनों को लाल रंग से रंग के थे आधुनिक समय में इसे लाल मृदभांड कहा जाता है।

हड़प्पा से कूबड़ वाले बैल के अवशेष मिले हैं।

सबसे पहले कपास उगाने का श्रेय सिंधु घाटी सभ्यता को जाता है।

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग लोहे से अपरिचित थे।

पैमाने और तराजू की खोज लोथल में हुई थी।

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग शेर से अपरिचित थे।

सिंधु घाटी सभ्यता का व्यापार उन्नत था। लोथल में बंदरगाह के अवशेष मिले हैं।

यह कांस युगीन सभ्यता थी।

2014 में खोजा गया भिरड़ाना गांव सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे प्राचीन स्थल माना जाता है।यह हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित है।

सिंधु घाटी सभ्यता प्राचीन मिस्र और मैसोपोटामिया की सभ्यता के समकक्ष थी।

सुरकोटदा से घोड़े की अस्थियों के अवशेष मिले हैं।यह गुजरात के कच्छ जिले में है।

लोथल से अनाज पीसने की चक्की के साक्ष्य मिले हैं।हड़प्पा व मोहन जोदड़ो में अन्नागार मिले हैं।

मुख्य फसल गेहूं और जौ थी तथा रंगपुर से चावल के भी अवशेष मिले हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता का मैनचेस्टर लोथल को कहा जाता है यह गुजरात में है।

धौलावीरा से भूकंप के अवशेष मिलते हैं यह गुजरात के कच्छ में स्थित है।

कालीबंगा से एक मानव की खोपड़ी में छ छेद मिले हैं कुछ विद्वान इसे शल्य क्रिया मानते है।

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में खोजे गए स्थल चन्हूदड़ो से काजल,कंघा ,उस्तरा व लिपिस्टिक के अवशेष मिले हैं।

सिंधु काल की मुद्राओं में टेराकोटा का प्रयोग हुआ है ये अधिकांशतः सेलखड़ी से बनी हैं।

सोना का प्रमाण मोहनजोदड़ो से मिला है।

इसे भी देखें:-

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