वातापी के चालुक्य
वातापी के चालुक्य वंश दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली राजवंश था दक्षिण भारत में आंध्र सातवाहन साम्राज्य के विघटन के पश्चात अनेक छोटे-छोटे राज्य बन गए।
बाद में गुप्त शासकों एवं वाकाटक शासकों ने इस क्षेत्र को पुनः एकता के सूत्र में बंधा।
उनके पश्चात दक्षिण की राजनीति में चालुक्य वंश का प्रभाव रहा।
उत्पत्ति:-
चालुक्यों की उत्पत्ति के संबंध में अनेक विचार व्यक्त किए गए हैं ।
विक्रमांक देव चरित्र के अनुसार ब्रह्मा जी ने अपने चुल्लू के जल से चालुक्य नामक एक वीर को उत्पन्न किया।
हंडरि के लेख के अनुसार हारिति पंचशिख नामक ऋषि के कमंडल से चालुक्यों की उत्पत्ति हुई थी।
स्मिथ नामक विद्वान चालुक्यों को मध्य एशिया की गुर्जर जाति कहते हैं।
परंतु चालुक्य शासकों के लेखों में उन्हें मानव गोत्री एवं हारिति पुत्र कहा गया है उन्हीं के लेखों के अनुसार वे चंद्रवंशी क्षत्रिय थे।
इस आधार पर विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि ये अयोध्या से होते हुए राजस्थान फिर दक्षिण भारत पहुंचे।
इतिहास जानने के स्रोत:-
चालुक्य शासकों का इतिहास जानने के लिए विल्हड़ कृत विक्रमांक देव चरित्र, सोमेश्वर कृत मानसोल्लास, कन्नड़ साहित्य के रन्न का गदा युद्ध एवं पंप का पंप भारत, पुलकेशिन द्वितीय की एहोल प्रशस्ति, पुलकेशिन प्रथम के बादामी प्रस्तर शिलालेख आदि हैं।
इस वंश का पहला शासक जयसिंह था। कौथेम दान पत्र से पता चलता है कि उसने राष्ट्रकूटों एवं कदंबों से युद्ध करके अपना एक छोटा राज्य स्थापित कर लिया था। उसके पश्चात उसका पुत्र राग गद्दी पर बैठा गद्दी पर बैठा।
पुलकेशिन प्रथम:-
उसके पश्चात 533 वी में पुलकेशिन प्रथम गद्दी पर बैठा वह प्रतापी शासक था उसने अपने साम्राज्य का काफी विस्तार किया। उसने वातापीपुर (बीजापुर में स्थित) को जीतकर अपनी राजधानी बनाया। अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। एहोल प्रशस्ति के अनुसार उसने सत्याश्रय एवं पृथ्वीवल्लभ की उपाधि धारण की थी।
कीर्ति वर्मा:-
पुलकेशिन प्रथम के पश्चात उसका पुत्र कीर्ति वर्मा 566 ईसवी में सिंहासन पर बैठा उसने दक्षिण मैसूर के नल, वनवासी के कदंब एवं कोंकण के मौर्यों को पराजित किया 597 ईसवी में उसकी मृत्यु हुई।
मंगलेश:-
उसके पश्चात उसके छोटे भाई मंगलेश ने राज्य पर अधिकार कर लिया वह एक शक्तिशाली शासक था।वह अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक अपनी सेनाओं को ले गया। फिर रत्नागिरी जिले में स्थित रेवती द्वीप को जीता और कलचुरियों को अपने अधीन किया।
पुलकेशिन द्वितीय:-
इसके पश्चात मंगलेश के बड़े भाई कीर्ति वर्मा का पुत्र पुलकेशिन द्वितीय जिसे मंगलेश ने निर्वासित कर दिया था अपने सहयोगियों के साथ सेना लेकर आया। उसका मंगलेश के साथ युद्ध हुआ और इस युद्ध में मंगलेश मारा गया। अब राज्य पर पुलकेशिन द्वितीय का अधिकार हो गया।
पुलकेशिन द्वितीय:-
608 ईस्वी में अपने चाचा मंगलेश को मारकर पुलकेशिन द्वितीय सिंहासन पर बैठा।
वह वातापी के चालुक्य वंश का सबसे अधिक प्रतापी शासक था।
उसने श्री पृथ्वीवल्लभ सत्याश्रय की उपाधि धारण की थी।
पुलकेशिन के गद्दी पर बैठने के बाद उसके राज्य की अव्यवस्था का लाभ उठाकर उसके वंश के शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया परंतु पुलकेशिन ने सब को मार भगाया।
उसने राष्ट्रकूटों को भीमा नदी के किनारे पराजित किया फिर कदंब को पराजित कर उनकी राजधानी वनवासी पर अधिकार कर लिया।
उसके पश्चात पुलकेशिन द्वितीय ने कोंकण पर आक्रमण करके उनकी राजधानी पुरी पर अपना अधिकार कर लिया।
पुलकेशिन द्वितीय उत्तर की ओर बढ़ा और उसने लाट मालव और भृगुकच्छ के गुर्जरों को पराजित किया।
इस कारण से पुलकेशिन की सीधी टक्कर उत्तर भारत के सम्राट हर्षवर्धन से हुई।
पुलकेशिन द्वितीय का हर्षवर्धन से युद्ध:-
630 ईसवी में हर्षवर्धन ने उस पर आक्रमण कर दिया भयंकर युद्ध हुआ इसका वर्णन पुलकेशिन द्वितीय की एहोल प्रशस्ति में दिया गया है।
“अपरिमित विभूति स्फीत सामंत सेना मुकुट मणि मयूखा क्रांत पदारविंद:।
युधीपतिगजेंद्रानीकवीभत्सभूतो भयविगलितहर्षो येन चाकारि हर्ष:।”
जिसके पदारविंदं अपरिमित विभूति वाले सामंतों की सेना के मुकुट मणियों की किरणों से आक्रांत रहते थे, वही हर्ष युद्ध क्षेत्र में मारे गए हाथियों को देखकर भय से जिसके द्वारा विगलित कर दिया गया।
हर्ष के साथ पुलकेशिन के युद्ध के विषय में विद्वानों में मतभेद है ।
कुछ के अनुसार हर्ष पुलकेशिन से पराजित हो गया था जबकि अन्य के अनुसार पुलकेशिन और हर्ष दोनों में से किसी की पराजय नहीं हुई लेकिन इस युद्ध में नर्मदा नदी दोनों राज्यों की सीमा मान ली गई।
पुलकेशिन द्वितीय ने अब दक्षिणपथेश्वर की उपाधि धारण की।
उसने महाकोशल, कलिंग, आंध्र और कांची पर आक्रमण किया था। उसकी सेना रावी नदी के तट तक गई थी।
चोल, पांड्य और केरल के राजाओं ने उसके साथ संधि कर ली तथा वे सभी उसके प्रभाव क्षेत्र में थे।
पुलकेशिन द्वितीय ने 625 ईसवी में फारस के राजा खुसरो के पास अपना दूत भेजा था इसके उत्तर में खुसरो ने भी उसके पास अपना दूत भेजा।
अजंता की एक गुफा में इसका चित्र बनाया गया है।
पुलकेशिन द्वितीय विद्या और कला का प्रेमी था उसके दरबार में रविकीर्ति नामक कवि रहते थे।
उसके समय में चित्रकला का बहुत विकास हुआ। इसका पता अजंता की गुफा से चलता है।
पुलकेशियन द्वितीय जैन धर्म का अनुयाई था उसके पहले के शासक वैदिक धर्मावलंबी थे।
उसके दरबार में चीनी यात्री ह्वेनसांग आया था उसने अपनी पुस्तक सी यू की में पुलकेशियन को क्षत्रिय कहा है।
पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु:-
पुलकेशिन द्वितीय के अंतिम दिन बड़ी ही कठिनाई में बीते उसके समय में चालुक्यों का ह्रास होने लगा।
642 ईसवी में पल्लव राजा नरसिंह वर्मन ने उसकी राजधानी पर आक्रमण करके उसे पराजित कर दिया और इसी युद्ध में वह मारा भी गया।
इससे चालुक्य राज्य को बहुत बड़ा झटका लगा और पुलकेशिन के भाई कुब्ज विष्णुवर्धन का पुत्र जयसिंह स्वतंत्र हो गया और उसका वंश पूर्वी चालुक्य वंश कहलाया।
विक्रमादित्य:-
पुलकेशिन के पश्चात उसका पुत्र विक्रमादित्य गद्दी पर बैठा। 655 ईसवी में उसने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पल्लव राज्य की राजधानी कांची पर आक्रमण कर दिया। पल्लवों और चालुक्य वंश के बीच युद्ध लंबे समय तक चला। उसने प्रथम नरसिंह वर्मन, द्वितीय महेंद्र वर्मा और परमेश्वर वर्मा को लगातार परास्त कर दिया तथा कांची को लूटा।
उसके पश्चात आगे बढ़ कर उसने चोल, पांड्य और केरल को भी परास्त किया।
680 ईसवी में विक्रमादित्य की मृत्यु हुई उसके पश्चात उसका पुत्र विनयादित्य 696 ईसवी तक राजा रहा विनयादित्य के पश्चात विजयादित्य 733 और फिर द्वितीय विक्रमादित्य और द्वितीय कीर्तिवर्मन 733 से 747 ईसवी तक राजा रहे।
चालुक्य वंश का राज्य आठवीं सदी के मध्य तक रहा उसके पश्चात राष्ट्रकूटों ने उन पर आक्रमण करके उनका राज्य समाप्त कर दिया।
सभ्यता एवं संस्कृति:-
मूर्ति और भवन निर्माण कला:-
चालुक्य शासक विद्या एवं कला के प्रेमी तथा उसके आश्रय दाता थे। इन्होंने मूर्ति निर्माण, भवन निर्माण को विशेष प्रोत्साहन दिया। चालुक्य शैली के मंदिर द्रविड़ और नागर शैली के मिश्रण के उदाहरण हैं तथा उन्होंने बेसर शैली ( मिश्रित शैली) के विकास में भी योगदान दिया। चालुक्यों का प्रथम मंदिर ऐहोल में बनाया गया इसे मंदिरों का पालना कहा जाता है जिसमें लगभग 70 मंदिर हैं।
यहां 450 ईसवी के आसपास बना लाट खां मंदिर सबसे पुराना है। क्योंकि यहां पर लाट खां नामक एक मुसलमान झोपड़ी बनाकर रह थे इसलिए इसका नाम लाट खां पड़ा)
575 ईसवी में वातापी में बने शेषशायी विष्णु और भगवान शिव का मंदिर स्थापत्य कला का नमूना है।
वातापी में मलिकार्जुन नामक मंदिर बना है जिसका शिखर बेसर शैली का है।
वातापी से 10 से 15 किलोमीटर दूर पट्टादकल में विरुपाक्ष और संगमेश्वर मंदिर द्रविड़ शैली के मंदिर हैं।जैन मंदिर भी द्रविड़ शैली में बनाए गए हैं।
महा कोटेश्वर में मुक्तेश्वर मंदिर,कक्कालुर (वर्तमान हैदराबाद) में स्थित कालेश्वर मंदिर भी द्रविड़ शैली के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
विक्रमादित्य द्वितीय के शासनकाल में बने पापनाथ, काशीनाथ, जंबूलिंग, करसिद्धेश्वर मंदिर नागर शैली की उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
चित्रकला:-
विद्वानों के अनुसार अजंता की गुफा नंबर 1 में बना हुआ अवलोकितेश्वर बुद्ध का चित्र चालुक्य काल का है।
ईरानी दूत मंडल का स्वागत करता हुआ पुलकेशियन द्वितीय का चित्र भी इस गुफा में अंकित है।
साहित्य:-
सोमदेव सूरी कृत यशस्तिलक चम्पू (जैन धर्म पर आधारित),नीति वाक्यामृतम(राजनीतिक सिद्धांत पर आधारित)
इसके अतिरिक्त महान कवि कीर्ति वर्मा और व्याकरणाचार्य उदय देव चालुक्य काल के थे।
इन्हें भी देखें:-