लंका का इतिहास
लंका भारत के दक्षिण में तमिलनाडु के नीचे समुद्र में स्थित है।हिंद महासागर भारत और लंका को अलग करता है।
वर्तमान समय में लंका को श्रीलंका के नाम से जाना जाता है।
लंका का भारत के साथ प्राचीन काल से संबंध रहा है। यह संबंध धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, भाषाई हर प्रकार से है।
रामायण काल में लंका का राजा रावण था उसने वहां एक सुदृढ़ राज्य की स्थापना किया था।रामायण काल में लंका का राजा रावण था उसने एक सुदृढ़ राज्य की स्थापना किया था।
रावण के पश्चात विभीषण वहां के राजा हुए और उनके वंशजों ने बहुत समय तक इस पर राज्य किया।
सम्राट युधिष्ठिर ने जब राजसूय यज्ञ किया था तो उनके भाई लंका गए थे वहां से वे बहुत सा धन भेंट में लाए थे।
इस राज्य पर प्राचीन काल से ही अनेक भारतीय मुख्यतया दक्षिण भारतीय राजाओं ने अपना आधिपत्य स्थापित किया है।
इतिहास जानने के स्रोत:-
पाली ग्रंथों में महामंगल कृत्य बुद्ध घोसुप्पट ,रूद्र पाल कृत सहस्सवस्तु उपकरण, धम्मनंदिन कृत सीहलवत्थुपकरण महानाम कृत महवांश,दीपवंश व सिंहली ग्रंथों में देव रक्षित कृत निकाय संग्रह, बुद्धपुत्त रचित पूजावलिय,पोलवत्तेदाने कृत महाराजा विलय आदि प्रमुख हैं।
लंका के निवासियों में अनेक भारतीय जातियों का मिश्रण हो गया है।
यहां के मूल निवासी बड्डा जाति के थे। बाद में धीरे धीरे नाग जाति ने जो भारत से गई थी वहां अपना प्रभाव स्थापित किया।
वहां के निवासियों में आर्य और द्रविड़ जातियों का बहुत मिश्रण हो गया है।
महावंश नामक बौद्ध ग्रंथ की अनुश्रुति के अनुसार लाट (दक्षिणी गुजरात) का एक सिंह(सिंह नाम का कोई योद्धा रहा होगा) जो कलिंग की रानी को बलपूर्वक उठा ले गया था। यह रानी बंगाल के राजा की पुत्री थी।
उन दोनों से सिंहबाहु नामक पुत्र और सिंह वल्ली नामक कन्या उत्पन्न हुई।
बड़ा होने पर सिंहबाहु ने अपने पिता को मारकर राज्य पर अधिकार कर लिया। उसने सिंह पुर को लाट राज्य की राजधानी बनाया।
विजय:-
सिंहबाहु का पुत्र विजय हुआ जिसने कुछ गलती की और उसके पिता ने उसे राज्य से निर्वासित कर दिया।
विजय अपने समर्थकों को लेकर शूपरिक(आधुनिक सोपारा) बंदरगाह से होकर लंका जा पहुंचा। जहां पर उसका यक्षों से युद्ध हुआ इस युद्ध में उसने यक्षों को जीत लिया और कुवर्णा नामक यक्ष कन्या से विवाह किया। कुछ साल बाद उस स्त्री से उत्पन्न संतानों को छोड़कर उसने मदुरा के पांड्य राजा की लड़की से विवाह कर लिया।
विजय ने ताम्रपर्णी नामक नगर बसाकर उसको अपनी राजधानी बनाया तथा 38 वर्ष तक शासन किया।
इस प्रकार अब लंका का नाम सिंघल पड़ गया।विजय के वंशजों ने यहां बहुत दिनों तक राज्य किया।
मौर्य काल और गुप्त काल में लंका का उल्लेख है।यह सम्राट अशोक के प्रभाव क्षेत्र में था।वहां का राजा तिष्य अशोक का मित्र और अनुगामी था।
अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए लंका भेजा था। उसके पश्चात वे बौद्ध धर्मावलंबी हो गए।
समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार यहां के निवासियों ने समुद्रगुप्त का आधिपत्य स्वीकार किया था।
दक्षिण भारतीय राज्यों मुख्यतया पल्लव,चोल और पांड्य का लंका पर अधिकतर अधिकार ही रहा है।
भारत पर मुस्लिम प्रभाव हो जाने से यह राज्य भारतीय राजनीति से पृथक हो गया पहले वहां अरब और बाद में पुर्तगालियों का आधिपत्य हो गया। वर्तमान समय में लंका श्री लंका के नाम से जाना जाता है। यह एक स्वतंत्र राज्य है और भारत का पड़ोसी व मित्र है।