रजिया सुल्ताना

रजिया सुल्ताना मध्य युग की एक अद्वितीय महिला थी।इस्लामी परंपरा में भारत में स्त्री के शासक बनने की दृष्टि से वह प्रथम थी।

इल्तुतमिश रजिया से बहुत प्रभावित था। ग्वालियर के अभियान के समय इल्तुतमिश ने रजिया को राजधानी की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी।जिसे उसने बड़ी कुशलता से पूरा किया।

इससे प्रभावित होकर उसने उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और चांदी के टंका पर उसका नाम अंकित करा दिया।

फिरोज का समय:-

परंतु अपनी मृत्यु के अवसर पर अपने सरदारों के कहने पर उसने फिरोज को उत्तराधिकारी बना दिया।
इस प्रकार फिरोज रुकुनुद्दीन फिरोजशाह के नाम से सिंहासन पर बैठा।

फिरोज अयोग्य था और भोग विलास में फंस गया। उसकी मां शाह तुर्कान जो एक दासी थी कुचक्री थी।उसने सत्ता में अनावश्यक दखल देना शुरू कर दिया और शाही परिवार की स्त्रियों और बच्चों पर अत्याचार करने लगी।

जब उन दोनों ने मिलकर इल्तुतमिश के सबसे छोटे लड़के कुतुबुद्दीन को अंधा करवा दिया तो लोग उसपर शंका करने लगे।

विभिन्न प्रांतीय इक्तादार विद्रोह की तैयारी करने लगे।
फिरोज के भाई और अवध के सूबेदार गयासुद्दीन ने विद्रोह कर दिया और बंगाल से दिल्ली जाने वाले खजाने को लूट लिया।
अब मुल्तान के इक्तादार मलिक इजउद्दीन कबीर खां एयाज,हांसी के इक्तादार मलिक सैफुद्दीन कूची,लाहौर के इक्तादार मलिक अलाउद्दीन जानी और बदायूं के इक्तादार मलिक इजउद्दीन मुहम्मद सालारी ने मिलकर विद्रोह कर दिया और दिल्ली की ओर बढ़े।

फिरोज उनके मुकाबले के लिए आया परंतु उसकी सेना के अधिकांश भाग ने विद्रोह कर दिया। तुर्कों ने गैर तुर्की सरदारों को कत्ल कर दिया और दिल्ली वापस आ गए।फिरोज को भी विवश होकर लौटना पड़ा।

अब रजिया ने इसका लाभ उठाया वह शुक्रवार की नमाज के समय लाल कपड़ा पहनकर जनता के सम्मुख गई।

उसने फिरोज और उसकी मां के कुशासन के विरुद्ध जनता से सहायता मांगी।उसने यह वायदा किया कि अयोग्य होने पर उसका गला काट दिया जाय।

लोगों ने उत्साहित होकर रजिया का साथ दिया और फिरोज के दिल्ली पहुंचने से पहले ही उसे गद्दी पर बैठा दिया।
शाह तुर्कान को पकड़कर जेल में डाल दिया गया और फिरोज को कत्ल कर दिया गया।

इस प्रकार इल्तुतमिश की मृत्यु के सात माह पश्चात रजिया सुल्ताना बन गई।

रजिया सुल्ताना का कार्य:-

उसके सिंहासन पर बैठने के समय उन प्रांतीय इक्तादारों की समस्या आई जो दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे।दिल्ली का वजीर निजामुल मुल्क जुनैदी भी उनके साथ मिल गया।
रजिया उनका मुकाबला करने के लिए गई।छुटपुट युद्ध का परिणाम नहीं निकला।

अंत में उसने चालाकी से काम लिया। उसने बदायूं के इक्तादार मलिक इजउद्दीन मुहम्मद सालारी और मुल्तान के इक्तादार मलिक इजउद्दीन कबीर खां एयाज को अपनी तरफ मिला लिया।

उन्होंने विद्रोहियों को पकड़ने का वायदा किया।यह खबर फैला दी गई जिससे विद्रोही भाग खड़े हुए।

हांसी का इक्तादार मलिक सैफुद्दीन कूची कैद कर लिया गया, लाहौर का इक्तादार मलिक अलाउद्दीन जानी पकड़ा गया और उसका सिर काटकर रजिया के सम्मुख लाया गया।
वजीर जुनैदी सिरमौर की पहाड़ियों में भाग गया जहां उसकी मृत्यु हुई।

इस प्रकार रजिया ने विद्रोह को समाप्त कर दिया।

सरदारों को पद देना:-

उसने अपने वफादार सरदारों को बड़े पद दिए।

ख्वाजा मुहाजबुद्दीन को वजीर,मलिक सैफुद्दीन ऐबक बहतू को सेनापति,कबीर खां एयाज को लाहौर का इक्ता दिया गया।
मलिक ए कबीर इख्तियारुद्दीन एतगीन को अमीरे हाजिब का पद और इख्तियारुद्दीन अल्तूनिया को भटिंडा का इक्तादार बनाया। ये दोनों रजिया की कृपा से ही ऊंचे पद पर पहुंचे थे।परंतु उन्होंने ही उसके साथ धोखा किया और उसके पतन में प्रमुख भाग लिया।

रजिया का एक अन्य कृपापात्र व्यक्ति अबीसीनिया का रहने वाला जमालुद्दीन याकूत था।वह एक योग्य मलिक था रजिया ने उसे अमीरे आखूर का पद दिया था।रजिया अपने पिता इल्तुतमिश की भांति सत्ता को सुल्तान में केंद्रित करना चाहती थी।इसमें वह सफल भी हुई परंतु अनेक महत्वाकांक्षी सरदार उसके विरोधी हो गए।

रजिया स्त्री की दुर्बलता को शासन में आने नहीं देना चाहती थी। उसने पर्दा त्याग दिया खुले मुंह दरबार में जाने लगी। घोड़े पर बैठकर शिकार खेलने जाने लगी।

1238 ईसवी में गजनी के सूबेदार मलिक हसन कार्लूग जो ख्वारिज्मशाह का प्रतिनिधि था ने रजिया से मंगोलों के विरुद्ध सहायता मांगी।

रजिया ने अपने पिता का अनुसरण किया और उसे सहायता के रूप में बरन की आय देने का वायदा किया परंतु मंगोलों के विरुद्ध सैनिक सहायता से इंकार कर दिया।

रजिया सुल्ताना के विरुद्ध षडयंत्र:-

सुल्ताना सत्ता को अपने हाथ में केंद्रित करना चाहती थी जिससे महत्वाकांक्षी सरदार उससे जलन करने लगे।
इल्तुतमिश के चालीस गुलाम सरदारों का गुट इसमें सम्मिलित था।

रजिया का कृपापात्र भटिंडा का सूबेदार इख्तियारुद्दीन अल्तूनिया और अमीरे हाजिब इख्तियारुद्दीन एतगीन व एक अन्य व्यक्ति लाहौर का सूबेदार कबीर खां एयाज ने षडयंत्र का नेतृत्व किया।

ये दिल्ली में रजिया के विरुद्ध सफल नहीं हो सकते थे इसलिए उन्होंने योजना बनाई।

1240 ईसवी में लाहौर के सूबेदार एयाज ने विद्रोह कर दिया।रजिया को जब यह पता चला तो उसने शीघ्रतापूर्वक उसपर आक्रमण कर दिया। इस तेज अभियान से एयाज के सहायक उसकी सहायता के लिए नहीं पहुंच सके।

कबीरखां एयाज परास्त हुआ और भाग खड़ा हुआ।रजिया ने उसका पीछा चिनाब नदी तक किया।उस पार मंगोलों के भय के कारण एयाज ने आत्मसमर्पण कर दिया।
सुल्ताना ने उससे लाहौर की सूबेदारी छीनकर मुल्तान का सूबेदार बना दिया।

उसके राजधानी पहुंचने के दस दिनों के भीतर ही भटिंडा के इक्तादार अल्तूनिया ने विद्रोह कर दिया।

रजिया उसके विद्रोह को दबाने के लिए निकल पड़ी जब वह भटिंडा के किले का घेरा डाले हुए थी उसी समय षड्यंत्रकारियों ने उसे धोखा दिया।उसके विश्वासपात्र जमालुद्दीन याकूत का वध कर दिया गया और रजिया को पकड़कर भटिंडा के किले में कैद कर लिया गया।

रजिया को हटाकर बहराम को सिंहासन देना:-

विद्रोहियों ने इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहराम को सिंहासन पर बैठा दिया और अमीरे हाजिब एतगीन को जो षड्यंत्रकारियों का नेता था और रजिया की कृपा से ही अमीरे हाजिब के पद पर पहुंचा था नाइब ए ममालिकत बना दिया गया।यह एक नवीन पद था।

कुछ समय पश्चात एतगीन का वध कर दिया गया।

रजिया सुल्ताना की कैद से मुक्ति:-

भटिंडा का इक्तादार अल्तूनिया अपने पद से असंतुष्ट था। उसने रजिया से विवाह कर लिया। इससे रजिया को अपना सिंहासन प्राप्त करने की आशा हो गई और अल्तूनिया को उच्च पद की।
अल्तूनिया ने राजपूत, जाटों और खोक्खरों को मिलाकर एक सेना तैयार की।बहराम शाह से असंतुष्ट सरदार भी उनसे जा मिले।

दिल्ली की सेना के साथ उनका युद्ध हुआ पर वे पराजित हुए।
अब उनके सैनिक भी उनका साथ छोड़ गए।

रजिया सुल्ताना की मृत्यु:-

दिल्ली की सेना से पराजित होकर

भटिंडा वापस लौटते समय मार्ग में कैथल के निकट वे एक वृक्ष के नीचे आराम करने लगे।

उसी समय वहां कुछ हिंदू डाकू आ गए और 13 अक्टूबर 1240 ईसवी में उन्होंने रजिया और अल्तूनिया का वध कर दिया।

मूल्यांकन:-

रजिया सुल्ताना एक योग्य पिता की योग्य पुत्री थी।उसका शासन तीन वर्ष और छः माह का था।परंतु इतने समय में उसने जिस सतर्कता और कर्मठता का परिचय दिया उससे इसे इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्रदान किया गया है।
परंतु रजिया अंत में असफल हुई और राज्य सत्ता उसके हाथों से छीन ली गई।  

इतिहासकार मिनहाज उस सिराज ने अपनी पुस्तक तबकात ए नासिरी में उसकी असफलता का कारण स्त्री होना बताया है।
परंतु दुनिया में इस्लाम के इतिहास में स्त्रियों ने शासन किया था।

वास्तव में इल्तुतमिश के समय के सरदारों की महत्वाकांक्षा और उनकी गद्दारी इसका प्रमुख कारण थी।ये सरदार इल्तुतमिश के समय से ही पर्याप्त प्रभावशाली थे और अपनी शक्ति को बनाए रखना चाहते थे।

रजिया इनकी शक्ति को तोड़ने में सफल न हो सकी।
फुतुह उस सलातीन के लेखक इतिहासकार ख्वाजा अब्दुल्ला मलिक इसामी ने रजिया पर अबीसीनियाई मलिक जमालुद्दीन याकूत से प्रेम प्रसंग का आरोप लगाया है परंतु अधिकांश इतिहासकारों ने इसका खंडन किया है।

इस प्रकार रजिया सुल्ताना मध्य युग की एक अद्वितीय महिला थी।

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