मौर्य कालीन सभ्यता संस्कृति
मौर्य कालीन समाज संस्कृति अत्यंत उन्नत अवस्था में थी।
धनानंद को मार कर चंद्रगुप्त मौर्य ने आचार्य चाणक्य की सहायता से शासन में एक नई व्यवस्था का सूत्रपात किया आचार्य चाणक्य अर्थशास्त्र के महान ज्ञाता पुरुष थे। उन्होंने शासन व्यवस्था को अत्यंत संगठित कर दिया था प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक विभाग की देखभाल के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी और उन अधिकारियों के कार्यों का स्पष्ट बटवारा किया गया था जिसके कारण किसी प्रकार का भी संदेह ना रहे।
राजा जनता को पुत्र के समान समझता था और पुत्र की तरह कि उनका पालन पोषण करता था।
मौर्य काल में भारतीय समाज विभिन्न वर्गों में बंटा हुआ था।
जिनमें ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र सम्मिलित थे इन जातियों के अनेक उपजातियां भी बनने लगी थी परन्तु मुख्यतः इनका विभाग चारों वर्णों में ही समाहित था।
मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में भारतीय समाज को 7 वर्गों में विभाजित किया है:-
दार्शनिक, किसान, अहिर(ग्वाला ), कारीगर, सैनिक, निरीक्षक, सभासद।
संभवतया मेगस्थनीज ने उनके द्वारा किए गए जाने वाले अलग-अलग प्रकार के कार्यों को देख कर उनके विषय में इस प्रकार से अनुमान लगाया है वास्तव में भारतीय समाज में चार वर्णों का ही मुख्यतः वर्णन किया गया है और इन वर्णों के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों के द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्य किए जाते रहे हैं । मेगास्थनीज ने लिखा है कोई भी अपनी जाति नहीं बदल सकता था ना ही अपनी जात के बाहर विवाह कर सकता था।
सम्राट अशोक के लेखों से अनुमान लगाया जा सकता है कि अंतर जाति विवाह यदा-कदा होते थे।
विवाह संस्कार:-
विवाह एक पवित्र बंधन माना जाता था जो स्त्री और पुरुष के बीच मंत्रोच्चारण के साथ विधिवत संपन्न किया जाता था।
मौर्य काल में मुख्यतया आठ प्रकार के विवाह प्रचलित थे:-
ब्रह्म आर्ष, प्रजापत्य, गंधर्व, असुर, राक्षस और पैशाच
परंतु विवाह वही उत्तम माना जाता था जो माता-पिता की सहमति से किया जाता था।पुरुषों में बहु विवाह की भी प्रथा प्रचलित थी।
मेगस्थनीज के अनुसार कुछ स्त्रियां आनंद के लिए और कुछ संतान के लिए ब्याही जाती थी।
जनसाधारण में सामान्यतया एक पति या पत्नी विवाह प्रचलित था।
स्त्री और पुरुष दोनों पुनर्विवाह कर सकते थी यदि स्त्री पति का कहना ना मानने वाली, कलह प्रिय, संबंधियों का अनादर करने वाली और संतान उत्पन्न करने में असमर्थ हो तो फिर पुरुष को दूसरा विवाह करने का अधिकार था।
पुरुष यदि 10 वर्षों से अधिक समय से परदेस में रह रहा हो और उसकी कोई सूचना ना मिले तो स्त्री अपने अभिभावक से पूछ कर पुनर्विवाह कर सकती थी पुरुष की मृत्यु हो गई हो अथवा वह नपुंसक हो तो भी स्त्री को दूसरा विवाह करने का अधिकार था।
इसके अतिरिक्त पुत्र प्राप्ति के लिए समाज में नियोग प्रथा भी प्रचलित थी।
समाज में विवाह विच्छेद भी हो सकता था कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में इसे मोक्ष कहा है।
स्त्रियों की दशा:-
समाज में स्त्रियों का महत्वपूर्ण स्थान था स्त्रियों का सम्मान माता, पत्नी और पुत्री के रूप में होता था ।यद्यपि पति परिवारिक संपत्ति का मालिक होता था परंतु स्त्री गृह स्वामिनी होकर उन सभी संपत्तियों का उपभोग करती थी।
स्त्रियों को भी अपने पति के अत्याचार से मुक्ति के लिए न्यायालय में जाने का अधिकार था और वह इसके लिए न्याय मांग सकती थी इससे अनुमान लगाया जा सकता है की स्त्रियों को अपने मामले में काफी स्वतंत्रता थी।
सामान्यतः स्त्रियां घर पर ही रहती थी । मौर्य काल में अंशत: पर्दा प्रथा भी प्रचलित थी केवल परिव्राजिका (सन्यासिनी) घर के बाहर स्वच्छंद रूप से विचरण करती थी।
मौर्य कालीन समाज में वेश्यावृत्ति का प्रचलन था वेश्याओं को रूप जीवा कहा जाता था।अर्थशास्त्र में वेश्याओं के लिए भी विभिन्न नियमों का प्रतिपादन किया गया है वैश्यालय की मुखिया महिला होती थी जिसे मातृका कहा जाता था।
अर्थशास्त्र ग्रंंथ में वेश्याओं से भी कर लेने की बात कही गई है प्रत्येक वैश्या अपनी मासिक आमदनी में से दो दिन का भाग राजा को कर के रूप में अदा करती थी।
समाज में शासन के द्वारा व्यभिचार पर नियंत्रण करने की व्यवस्था की गई थी। अर्थशास्त्र के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपने घर में वैश्यालय खोलता है या व्यभिचार के द्वारा घर में कमाई करता है तो उस स्त्री को वैश्यालय में ले जाकर मातृका के सुपुर्द कर देना चाहिए तथा उस व्यक्ति को कठोर दंड दिया जाना चाहिए।
मनोरंजन के साधन:-
विभिन्न साधनों के द्वारा मनोरंजन किया जाता था जिनमें नृत्य ,गायन ,वादन, घुड़दौड़, रथ दौड़ ,सांड युद्ध ,शिकार ,जुआ खेलना, मेला, उत्सव, तमाशा,सौभिक (मदारी) आदि थे।
धार्मिक जीवन:-
मौर्य युगीन समाज धर्म के नवीन प्रयोगों से आंदोलित हो रहा था। प्राचीन वैदिक धर्म जिसके अनुयाई अधिकांश मात्रा में थे ,ब्राह्मण धर्म कहा जाता है इसके अलावा वैदिक धर्म की प्रतिक्रिया स्वरूप जैन और बौद्ध धर्म उदित होने के पश्चात अपनी जड़ें तेजी से जमा रहे थे।
वैदिक धर्म में यज्ञ करना प्रमुख कार्य था इसके अलावा यज्ञ में पशु बलि दी जाने लगी थी। वैदिक धर्म के साथ ही शैव, वैष्णव धर्म भी समाज में प्रचलित थे जिनमें शिव ,वासुदेव और संकर्षण की पूजा होती थी।
बौद्ध धर्म में भी अनेक मतभेद हो गए थे इन मतभेदों को दूर करने के लिए सम्राट अशोक ने पाटलिपुत्र में तीसरी बौद्ध संगति का आयोजन किया था।समाज में धार्मिक रूढ़ियां बढ़ती जा रही थी जिसकी ओर सम्राट अशोक ने अपने नवम शिलालेख में ध्यान आकर्षित किया है ।आचार्य चाणक्य ने जटिलों, मुंडो और पाखंडी लोगों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
मौर्य शासकों ने सभी धर्मों को समान आदर दिया और सभी पूजा पद्धतियों का समर्थन किया चंद्रगुप्त मौर्य प्रारंभ में वैदिक धर्मावलंबी था बाद में जैन हुआ इसी प्रकार सम्राट अशोक प्रारंभ में शिव का उपासक था बाद में उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।अशोक ने अपने अभिलेख में धार्मिक समता पर बल दिया है।
आर्थिक जीवन:-
भाग्यवश उस युग में भारतवर्ष को आचार्य चाणक्य के रूप में एक महान अर्थशास्त्री प्राप्त हुआ जिसने मौर्य शासन व्यवस्था को चारों तरफ से सुदृढ़ कर दिया। अर्थशास्त्र ग्रंथ और मेगस्थनीज की इंडिका में कृषि पशुपालन एवं उद्योग धंधों के विषय में काफी प्रकाश डाला गया है।
खेती व पशु पालन:-
कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में कृषि के विभिन्न साधन और भूमि के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है तथा किस प्रकार से किस फसल को कब बोना चाहिए इन सारी बातों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। अर्थशास्त्र में गेहूं ,चावल,जौ , सांवा ,कोदौ ,चना ,गन्ना, सरसों, मटर आदि विभिन्न फसलों का उल्लेख है।पशुपालन में गाय, भेड़ ,बकरी ,घोड़ा, मुर्गी पाले जाते थे गायों को मारने पर दंड का विधान था । गायों की देखभाल के लिए ग्वाले नियुक्त थे और उनके चरने हेतु चारागाह बनाए गए थे।
कृषि कर उपज का छठा हिस्सा था। अर्थशास्त्र ग्रंंथ के अनुसार :-
पुष्पफलशाकमूलकंदवल्लिक्यबीजशुष्क मत्स्यमासानां षडभागं गृहणियात।
फूल ,फल ,शाक ,गाजर ,मूल ,शकरकंद ,धान्य ,सूखी मछली और मांस ,इन वस्तुओं पर उनकी लागत का छठा हिस्सा चुंगी लेनी चाहिए।
उद्दोग धंधे:-
मौर्य युगीन भारत व्यापारिक दृष्टि से अत्यंत उन्नत अवस्था में था विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन होता था साथ ही साथ आयात और निर्यात पर्याप्त मात्रा में होता था अर्थशास्त्र में उद्योग विभाग के विभिन्न अधिकारियों का वर्णन किया है जिनमें से सूत्र विभाग ( सूत काटने का विभाग) के अधिकारी को सूत्राध्यक्ष ,कृषि विभाग के अधिकारी को सीताध्यक्ष, समुद्र या नदी तट की देखभाल करने वाले अधिकारी को तटाध्यक्ष और नावों की व्यवस्था करने वाले अधिकारी को नवाध्यक्ष कहा जाता था।
काशी ,बंगाल, मालवा सूती वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध थे। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के रेशम का उत्पादन होता था तथा रेशम चीन से भी मंगाया जाता था इसे चीनपट्ट कहा जाता था।
भारतीय सोने, चांदी, तांबा, लोहा ,सीसा, ज़िंक आदि से परिचित थे इन्हें खानों से निकाला जाता था।
मौर्यकालीन राजाओं ने शासन को सुदृढ़ सुरक्षित बना दिया था । विस्तृत साम्राज्य के लिए मार्गों का निर्माण कराया गया था। सबसे लंबा राजमार्ग तक्षशिला से पाटलिपुत्र तक था। चंद्रगुप्त मौर्य की सेल्यूकस पर विजय होने से कंधार,काबुल के प्रांत भारत को मिल गए थे तथा यूनानी राजाओं की भारतीय राजाओं से मित्रता हो गई थी। चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में मेगस्थनीज दूत था और सम्राट अशोक के दरबार में सीरिया के राजा एंतियोकस ने अपना दूत भेजा था। व्यापारियों के लिए भी सुविधा हुई और भारत से लेकर ईरान, इराक होते हुए युरोप तक स्थल मार्ग से व्यापार सुगमता से होने लगा।
भारत का व्यापार जलमार्ग से भी होता था और यह उन्नत अवस्था में था। अर्थशास्त्र ग्रंंथ में छोटी से लेकर बड़ी नौकाओं का वर्णन किया गया है साथ ही नदी और समुद्र दोनों जल मार्गों का वर्णन है।
नवाध्यक्षः समुद्रसंयाननदीमुखतरप्रचारान देसरोविसरोनदीतारांश्च स्थानीयादिष्ववेक्षेत।
नौकाध्यक्ष को चाहिए कि वह समुद्रतट के समीपवर्ती नदी को ,समुद्र के नौका मार्गों को झीलों ,तालाबों और गावों के छोटे -छोटे जलीय मार्गों को भलीभांति देखता रहे।
भारत और मिस्र का व्यापार अरब सागर के बंदरगाहों से होता था।
साहित्य और कला:-
मौर्य काल में वैदिक ,बौद्ध और जैन धर्म के विभिन्न धर्म ग्रंथों को लिखा गया।
वैदिक ग्रंथों में वेदांग ,धर्मसूत्र आदि की रचना की गई तथा भास के नाटकों को भी रचा गया। पाणिनि की अष्टाध्यायी को भी इसी युग का माना जाता है। इस युग का राजनीति पर लिखा गया विश्व प्रसिद्ध महत्वपूर्ण ग्रंथ कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र है।
इसी काल में सम्राट अशोक ने मोगलीपुत्त्त तिस्स की अध्यक्षता में तीसरी बौद्ध संगति का आयोजन पाटलिपुत्र में किया था । जिन्होंने धम्म पिटक, विनय पिटक के साथ एक अन्य ग्रन्थ कथावत्थु की रचना की जो विस्तृत होकर अभिधम्म पिटक बना।
जैन धर्म के संत स्वयंभू ने दर्श वैकालिक नामक ग्रंथ लिखा ।आचार्य भद्रबाहु ने जैन ग्रंथों पर भाष्य लिखा।
इस समय तक्षशिला विश्वविद्यालय भारत ही नहीं वरन संपूर्ण विश्व में ज्ञान और संस्कृति का पाठ पढ़ाता था। इसके अलावा मौर्यों की राजधानी पाटलिपुत्र विद्या का एक प्रमुख केंद्र था ,काशी धर्म ग्रंथों की शिक्षा के लिए और अन्य ग्रंथों की शिक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण केंद्र था।
मौर्य शासकों ने सुंदर-सुंदर भवनों का निर्माण कराया था । जिनके विषय में फाह्यान नामक चीनी यात्री का विवरण महत्वपूर्ण है जिसने बताया था सम्राट अशोक के बनवाए भवनों को देखकर वह चकित हो गया है और शायद देवों ने उसकी रचना की है। क्योंकि पत्थरों को इकट्ठा किया गया, दीवारों ,तोरण द्वार को चिना गया और अद्भुत नक्काशी की गई है ऐसा कार्य संसार के मनुष्य के बस की बात नहीं है।
कुम्हरार के उत्खनन से मौर्य राज प्रसाद के अवशेष प्राप्त है जो अति सुंदर हैं।
सम्राट अशोक ने हजारों की संख्या में स्तूपों , चैत्य (चिता पर स्थापित{सामूहिक पूजा का स्थान}),विहार (भिक्षुओं के रहने का स्थान) और स्तंभों का निर्माण कराया था। जिसमें से भरहुत(इलाहाबाद से153 किलोमीटर दूर) और सांची के स्तूप(मध्यप्रदेश के भोपाल के पास) विशेष प्रसिद्ध है ।
स्तूप की संरचना इस प्रकार है कि इनका व्यास नीचे अधिक होता है ये ऊपर की ओर बढ़ते जाते हैं जहां इनका व्यास कम होता जाता है और यह अर्ध गोलाकार होते हैं तथा ईंट और पत्थर के बनाए जाते हैं।

अशोक ने स्तंभ का निर्माण कराया और स्तंभों पर अपना लेख लिखवाया यह स्थापत्य कला के शानदार नमूने हैं। इनकी संख्या 30 से अधिक है ।
यह स्तंभ एक ही पत्थर के टुकड़े को काटकर बनाए जाते हैं एक स्तंभ का वजन लगभग 50 टन है इसकी ऊंचाई 15 से मीटर तक होती है नीचे की ओर मोटे और ऊपर की ओर पतले होते जाते हैं। प्रत्येक स्तंभ के शीर्ष पर उल्टे कमल के आकार का शिखर है और उस पर कोई न कोई पशु आकृति बनी है जिनमें सिंह, हाथी ,घोड़ा और बैल की सुंदर मूर्तियां हैं । स्तंभ के मध्य भाग में चक्र,पशु आदि की कलाकृतियां बनी हैं।
सारनाथ में बना हुआ अशोक स्तंभ जिस पर सिंह की मूर्ति स्थापित है इन सिंहों की संख्या चार हैं ये चारों दिशाओं में मुंह करके खड़े हैं । इसे भारत का राष्ट्रीय चिन्ह स्वीकार किया गया है।


अशोक ने गुफाओं का भी निर्माण कराया उनकी दीवारें पर उच्च कोटि की पॉलिश की गई है जिससे वे शीशे की तरह चमकदार प्रतीत होती हैं।
इस प्रकार से मौर्ययुग की स्थापत्य कला अत्यंत उन्नत अवस्था में थी इन्हें विश्व की भवन निर्माण कला में अत्यंत उन्नत स्थान प्रदान किया जा सकता है।
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