मुहम्मद गोरी

मुहम्मद गोरी को भारत में सर्वप्रथम मुस्लिम राज्य की स्थापना का श्रेय जाता है।

महमूद गजनवी ने भारत में लूटमार की और वापस चला गया परंतु मोहम्मद गोरी ने भारत के प्रदेशों पर अपना अधिकार स्थापित किया।

मुहम्मद गोरी के वंश का प्रारंभिक परिचय:-

गोरी के वंशज पूर्वी ईरान से आकर गोर में बस गए थे। ये तुर्कों के शंसबनी वंश के थे ।

11वीं सदी में सल्जूक तुर्कों का प्रभाव मध्य एशिया में बढा। उन्होंने गजनी वंश को दुर्बल कर दिया। उसके पश्चात गोर वंश का उत्थान हुआ।वे खेती करते थे, शस्त्र बनाते थे और अच्छी नस्ल के घोड़े पालते थे। इस देश के निवासी प्रारंभ में बौद्ध धर्मावलंबी थे।

जब महमूद गजनवी ने गोर पर अधिकार किया तो यहां के निवासियों को इस्लाम में बदल दिया। गजनवी वंश के कमजोर पड़ जाने के पश्चात इन्होंने अपने राज्य का विस्तार करना प्रारंभ किया।1163 ईसवी में गयासुद्दीन गोर का शासक बना।उसने 1206 ईसवी तक राज्य किया।

गयासुद्दीन के संरक्षण में उसके छोटे भाई शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मोहम्मद गोरी ने गिज तुर्कों से गजनी को छीन लिया।
अब गयासुद्दीन ने उसे ही गजनी का शासक बना दिया।

मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय भारतीय राज्य:-

मुहम्मद गोरी महत्वाकांक्षी था।वह अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था।

पश्चिम में शक्तिशाली ख्वारिज्म शासन था। इसके अलावा इस तरफ राज्य विस्तार का काम उसके भाई का था।

मुहम्मद गोरी ने पूर्व की ओर अपने राज्य के विस्तार का प्रयास किया। मध्य एशिया के सभी मुस्लिम शासकों की भांति भारत को जीतना उसका एक प्रमुख लक्ष्य था।

उस समय सिंध में सुम्र जाति के शिया शासक, मुल्तान में करमाथी जाति के और पंजाब में गजनवी वंश के शासकों का राज्य था। ये सभी मुसलमानी राज्य थे।

उस समय गजनवी वंश का अंतिम शासक खुसरवशाह गिज तुर्कों से पराजित होकर लाहौर भाग आया था और वहीं शासन करता था।

गोरी के आक्रमण के समय दिल्ली और अजमेर का शासक चौहान वंशीय पृथ्वीराज तृतीय था।

गुजरात और काठियावाड़ में चालुक्य वंश का शासक मूलराज द्वितीय था।

कन्नौज के गढ़वाल वंश का शासक जयचंद था।

बुंदेलखंड में चंदेल,कल्चुरी में चेदि वंश व बंगाल में पाल और सेन वंश का शासन था।

मुहम्मद गोरी का भारत पर आक्रमण:-

गोरी का पहला आक्रमण मुल्तान पर हुआ। यह आक्रमण गोमल के दर्रे से होकर किया गया था।मुल्तान को जीतकर वह आगे बढ़ा और उच्छ व निचले सिंध को भी जीत लिया।

गुजरात पर आक्रमण:-

अपनी प्रारंभिक विजयों से मुहम्मद गोरी का उत्साह बढ़ गया और उसने 1178 ईसवी में गुजरात पर आक्रमण किया।

गुजरात का शासक मूलराज द्वितीय था जो अपनी माता नाइका देवी के संरक्षण में राज्य कर रहा था।

आबू पहाड़ के निकट दोनों सेनाओं का मुकाबला हुआ और गोरी पराजित करके भगा दिया गया।

पंजाब विजय:-

अब गोरी ने अपने आक्रमण का मार्ग बदल कर पंजाब की तरफ किया। पंजाब में गजनवी वंश का अंतिम शासक मलिक खुसरव था उसे परास्त कर दिया गया।

1179 ईसवी में गोरी ने पेशावर को जीत लिया।

1181-82 ईसवी में उसने लाहौर पर आक्रमण किया और खुसराव शाह ने बहुमूल्य भेंट और अपने पुत्र को बंधक के रूप में देकर अपनी रक्षा की।

1185 ईसवी में गोरी ने सियालकोट पर आक्रमण करके उसे जीत लिया।

खुसरव ने खोक्खरों की सहायता लेकर सियालकोट को पुनः लेना चाहा पर असफल हुआ।

1186 ईसवी में गोरी पुनः लाहौर आया। अबकी बार वह गजनवी वंश को पूरी तरह समाप्त करने का विचार लेकर आया था।

उसने खुसरव शाह को मिलने के लिए बुलाया और धोखे से उसे कैद कर लिया।

1192 ईसवी में खुसरव शाह को कत्ल कर दिया गया।

पृथ्वीराज चौहान से संघर्ष:-

मुहम्मद गोरी का पंजाब पर अधिकार हो जाने के पश्चात उसकी सीमाएं पृथ्वीराज चौहान की सीमा से लगने लगी। 1189 में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की सीमा का अतिक्रमण किया और अचानक भटिंडा पर आक्रमण कर उसे जीत लिया।

तराइन का प्रथम युद्ध:-

पृथ्वीराज चौहान को जब गोरी के भटिंडा पर आक्रमण की सूचना मिली तो वह अपनी सेना के साथ भटिंडा की तरफ बढ़ा।

गोरी उसका मुकाबला करने के लिए आगे आया।

1191 में भटिंडा के तराइन नामक स्थान पर पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी का मुकाबला हुआ जिसमें मुहम्मद गोरी बुरी तरह से पराजित हुआ।

इतिहास में यह युद्ध तराइन के प्रथम युद्ध के नाम से जाना जाता है।

इसके पश्चात आगे बढ़कर पृथ्वीराज ने भटिंडा के किले को गोरी के अधिकार से मुक्त करा लिया उस समय वहां का किलेदार मलिक जियाउद्दीन था।

तराइन का द्वितीय युद्ध:-

मुहम्मद गोरी इस युद्ध को कभी भुला ना सका और पृथ्वीराज को हराए बिना वह भारत में आगे भी नहीं बढ़ सकता था। इसलिए उसने एक वर्ष तक अपनी तैयारी की और एक लाख बीस हजार की चुनी हुई घुड़सवार सेना को लेकर गजनी से चला।

लाहौर पहुंचकर उसने पृथ्वीराज के यह सूचना भिजवाई कि वह उसके आधिपत्य को स्वीकार कर ले और इस्लाम में दीक्षित हो जाए।

पृथ्वीराज ने उसे वापस लौट जाने का परामर्श दिया।
अब मुहम्मद गोरी ने भटिंडा के किले को जीतकर तराइन के मैदान में प्रवेश किया। पृथ्वीराज की सहायता के लिए अधीनस्थ सामंत और एक बड़ी सेना थी। 

तारीख ए फरिश्ता के लेखक फरिश्ता ने पृथ्वीराज की सेना की संख्या 5 लाख और 3 हजार हाथी बताया है परंतु उसने यह सब सुनी सुनाई बातों के आधार पर बताया है क्योंकि वह बहुत बात के समय में हुआ तथा इसका उद्देश्य राजपूतों की सैन्य शक्ति को अत्यंत कमजोर बताना है। इसलिए उसका विवरण विश्वसनीय नहीं माना जा सकता परंतु फिर भी इतना अवश्य है पृथ्वीराज की सेना मुहम्मद गोरी की सेना से कम नहीं थी।

युद्ध:-

1192 सदी में तराइन का द्वितीय युद्ध हुआ जिसमें मुहम्मद गोरी की युद्ध नीति और चालाकी के कारण मुसलमानों की विजय हुई।

पृथ्वीराज चौहान ने घोड़े पर बैठकर वहां से निकलने का प्रयास किया परंतु सरस्वती आधुनिक सिरसा के निकट पकड़ा गया और कैद कर लिया गया।

पृथ्वीराज की मृत्यु के विषय में विद्वानों में एकमत नहीं है।

विभिन्न मुस्लिम विद्वान अपना अलग-अलग मत प्रकट करते हैं।

पृथ्वीराज रासो के रचयिता चंदबरदाई का अपना अलग मत है।उनके अनुसार पृथ्वीराज को छल से बंदी बनाकर गजनी ले जाया गया।वहां ले जाकर उनकी आंखें निकाल ली गईं।कुछ दिनों के पश्चात मुहम्मद गोरी द्वारा पृथ्वीराज के शब्द भेदी बाण चलाने की कला देखने के अवसर पर पृथ्वीराज द्वारा बाण मारकर गोरी का वध कर दिया गया।

पृथ्वीराज का भी वहीं वध कर दिया गया।

कुछ विद्वान हसन निजामी के मत आधार पर यह कहते हैं कि पृथ्वीराज गोरी के साथ अजमेर गया और वहां उसने गोरी के अधीनता स्वीकार कर ली परंतु जब उसने विद्रोह करने का षड्यंत्र किया तो उसे मृत्युदंड दे दिया गया।

तराइन के द्वितीय युद्ध का परिणाम: –

सामान्य रूप में देखा जाए तो तराइन के द्वितीय युद्ध का यही परिणाम निकलता है कि इसमें मुहम्मद गोरी की विजय और पृथ्वीराज चौहान की पराजय हुई परंतु वास्तव में यह द्वितीय युद्ध अपने साथ गंभीर परिणाम लेकर आया।

इस युद्ध ने भारत के भाग्य का निर्णय कर दिया। इसी के पश्चात भारत में मुस्लिम सत्ता का प्रादुर्भाव हुआ। विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने लगभग 500 वर्षों तक भारत पर राज किया।

यह युद्ध भारत के विनाश का कारण बना। संपूर्ण भारत में भय की भावना व्याप्त हो गई ।इस पराजय ने हिंदू राजाओं और उनके प्रजा के मनोबल को तोड़ दिया । इसी का परिणाम है कि मुसलमानों ने भारत पर इतने समय तक राज किया।

मुस्लिम साक्ष्यों के अनुसार गोरी ने आगे बढ़कर चौहानों की राजधानी अजमेर को जीत लिया। इसके अलावा हांसी, कुहर आदि स्थानों को भी जीत लिया गया।

गोरी ने पृथ्वीराज के एक पुत्र को अजमेर का शासन सौंप दिया।
अब दिल्ली को भी जीत लिया गया। 
गोरी अपने एक गुलाम कुतबुद्दीन ऐबक को जीते हुए भारतीय प्रदेश को सौंप कर वापस चला गया।

पृथ्वीराज के भाई हरिराज ने दो बार अजमेर को लेने का प्रयत्न किया पर कुतुबुद्दीन ने उसे असफल कर दिया।

1193 में दिल्ली गोरी के राज्य की राजधानी बनी।
कुतबुद्दीन ऐबक ने रणथंभौर और कोल (अलीगढ़) को जीता।

कन्नौज पर आक्रमण:-

तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार 1194 ईसवी में मुहम्मद गोरी कन्नौज पर आक्रमण करने के लिए भारत आया।कुछ विद्वानों के अनुसार जयचंद ने पृथ्वीराज की गोरी के विरुद्ध द्वितीय युद्ध में सहायता नहीं की थी। अब उसे भी अकेले ही लड़ना पड़ा।

चंदावर नामक स्थान पर दोनो सेनाओं का मुकाबला हुआ। जयचंद की पराजय हुई और वह युद्ध में मारा गया। गोरी ने वाराणसी को लूटा और कन्नौज को छोड़कर जयचंद के राज्य के लगभग सभी भागों पर अधिकार कर लिया गया।

कन्नौज को बाद में कुतुबुद्दीन ने अपने राज्य में मिलाया।
अजमेर में तीसरा विद्रोह हुआ। हरिराज ने पृथ्वीराज के पुत्र को बाहर निकाल लिया।

परंतु यह विद्रोह सफल न हो सका और हरिराज ने अपने आप को आग में जलाकर समाप्त कर दिया।

1194 ईसवी में ऐबक ने अजमेर को जीत लिया।

1195 में गोरी पुनः भारत आया।उसने बयाना को जीत कर ग्वालियर पर आक्रमण किया। ग्वालियर के राजा सुलक्षण पाल ने गोरी के आधिपत्य को स्वीकार कर लिया तो उससे संधि कर ली गई।

परंतु गोरी ने चुपके से बयाना के सूबेदार तुगरिल को ग्वालियर को जीतने का आदेश दे दिया। और डेढ़ वर्ष के पश्चात ग्वालियर को जीत लिया गया।

इसके पश्चात गोरी कुछ वर्षों तक भारत नहीं आ सका। उस समय विद्रोहों को ऐबक ने दबाया। गुजरात की सेना को पराजित किया। बुंदेलखंड को जीता।

कन्नौज पर अधिकार हो जाने के बाद ही उत्तर भारत के भाग्य का निर्णय हो गया मुस्लिम सत्ता निर्विवाद रूप से स्थापित हो गई थी अब उन्हें बंगाल और बिहार को जीतने का तथा दक्षिण भारत पर आक्रमण करने का रास्ता मिल गया।

बिहार और बंगाल की विजय:-

मुस्लिम आक्रमणकारियों के उत्साह में असीमित वृद्धि हो गई और मुहम्मद गोरी के एक साधारण सरदार इख्तियारुद्दीन मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने अपनी छोटी सेना तैयार करके बिहार पर लगातार आक्रमण किया उस समय बिहार बंगाल के अधीन था। परंतु उसका कोई विरोध नहीं हुआ। जिससे उसका मनोबल और ज्यादा बढ़ गया।

1202-03 ईसवी में उसने उदंदपुर पर आक्रमण करके वहां के बौद्ध विहार को लूटा और बौद्धों को कत्ल कर दिया।
नालंदा और विक्रमशिला विद्यापीठ के ऊपर अधिकार कर लिया और उन्हें जला दिया।

उसके पश्चात बंगाल के शासक लक्ष्मणसेन पर आक्रमण किया। सेन वंशी शासक लक्ष्मणसेन असावधान था। 1204 ईसवी में इख्तियारुद्दीन की सेना बंगाल की ओर बढ़ी। आक्रमणकारियों का मनोबल बढ़ा हुआ था। जब राजधानी नदिया में प्रवेश किए तो उनके साथ मात्र 18 घुड़सवार थे।उनकी मुख्य सेना पीछे रह गई।

राजधानी के सैनिकों और नागरिकों ने उन्हें घोड़े के व्यापारी समझा और उनके वहां पहुंचने में किसी प्रकार का विरोध नहीं किया। महल के फाटक पर पहुंच कर  उन्होंने उस पर अचानक आक्रमण कर दिया। राजा लक्ष्मण सेन भयभीत हो गया और पीछे के दरवाजे से भाग निकला। तुर्कों ने नदिया को बुरी तरह से लूटा। इख्तियारुद्दीन ने लखनौती को अपनी राजधानी बनाया।

मुहम्मद गोरी का अंतिम समय:-

1202 ईसवी में मुहम्मद गोरी के बड़े भाई गयासुद्दीन की मृत्यु हो गई और व संपूर्ण गोर प्रदेश का स्वामी बन गया। गोर वंश का झगड़ा पश्चिम के ख्वारिज्म वंश से चलता रहता था। इस लड़ाई में 1205 ईसवी में मुहम्मद गोरी की अंधखुद के युद्ध में बुरी तरह पराजय हुई। 

भारत में यह अफवाह फैल गई की गोरी मारा गया।

1205 ईसवी में गोरी पुनः भारत आया।जहां झेलम और चिनाब के बीच उसका मुकाबला खोक्खरों से हुआ।इस युद्ध में ऐबक की सहायता पहुंचने से गोरी की जीत हो सकी।

गोरी जब गजनी वापस जा रहा था तो मार्ग में सिंधु नदी के तट पर दमयक नामक स्थान पर 1206 ईसवी में खोक्खरों ने उसे कत्ल कर दिया।

मुहम्मद गोरी को गजनी ले जाकर दफना दिया गया।

मुहम्मद गोरी के पुत्र नहीं था।उसका भतीजा महमूद उसका उत्तराधिकारी हुआ। परंतु उसकी भी मृत्यु जल्दी ही हो गई।

अब ख्वारिज्म के शासक ने उसके मध्य एशियाई राज्य पर अधिकार कर लिया। गोरी के तीन योग्य गुलाम थे जिन्हें उसने अलग-अलग स्थानों की सूबेदारी दी थी। जिनमें से गजनी का सूबेदार ताजुद्दीन येल्दिज, उच्छ और मुल्तान का सूबेदार नसीरुद्दीन कुबाचा और दिल्ली का सूबेदार कुतुबुद्दीन ऐबक था।

1215 ईसवी में ताजुद्दीन येल्दिज को गजनी से निकल दिया गया।

अब उसका संपूर्ण राज्य ख्वारिज्म वंश के अधीन हो गया।
उसके राज्य के भारतीय भाग को कुतुबुद्दीन ऐबक ने बचा कर रखा।

इस प्रकार जिस शीघ्रता से गोर वंश पनपा उसी शीघ्रता से मुहम्मद गोरी के कुछ ही समय पश्चात उसके वंश का राज्य समाप्त हो गया।

विदेशी मुसलमानों के विरुद्ध भारतीयों की पराजय के कारण:-

विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीयों की पराजय विश्व की एक आश्चर्यजनक घटना है।

भारतीयों ने अरबी आक्रमण के समय न केवल भारत की सुरक्षा करने में सफलता पाई थी बल्कि उन्हें सिंधु नदी के उस पार खदेड़ दिया था। जबकि वे यूरोप और मध्य एशिया में अपने अत्याचारों से तबाही मचा रहे थे। परंतु बाद के समय में भारतीयों की लगातार पराजय इतिहासकारों को गंभीर अध्ययन करने पर विवश करती है।


तत्कालीन विद्वानों ने भी इस पर कोई प्रकाश नहीं डाला है। केवल फक्र ए मुदब्बिर ने अपने ग्रंथ में ने बताया है कि राजपूतों की सामंती व्यवस्था और तुर्की घुड़सवार सेना की गतिशीलता तुर्कों की सफलता के कारण थे।

अंग्रेज इतिहासकारों ने तुर्कों का बहादुर होना, ठंडे देश का निवासी होना, मांस खाना और धार्मिक जोश उनकी सफलता का कारण बताया है।

 
विंसेंट स्मिथ के अनुसार आक्रमणकारी अच्छे योद्धा थे क्योंकि वे उत्तर के शीत प्रधान प्रदेश से आए थे, मांसाहारी थे तथा युद्ध कला में निपुण थे।

परंतु यह विचार आधुनिक सर्वेक्षण के द्वारा गलत सिद्ध हो चुका है कि ठंडे देश से आना और मांस खाना बहादुर की निशानी है। भारतीय सैनिक बहादुरी में कभी भी किसी देश के सैनिकों से कमजोर नहीं रहे।

कुछ भारतीय इतिहासकारों के अनुसार तुर्कों में ऊंच – नीच की भावना और जाति प्रथा नहीं थी जिससे वे मिलकर काम कर सके। इसके अलावा नवीन इस्लाम में परिवर्तित तुर्कों का धार्मिक जोश बहुत बढ़ा चढ़ा था।

परंतु तुर्कों में पूर्णतया भाईचारा हो यह स्वीकार नहीं किया जा सकता।

विभिन्न विद्वानों के निष्कर्ष के आधार पर भारतीयों की पराजय के निम्न कारण हो सकते हैं:-

1. भारतीय राज्यों में पारस्परिक एकता का अभाव व आपसी संघर्ष।

2.भारतीयों की अपेक्षा तुर्कों का सैन्य संगठन मजबूत होना।

3.तुर्कों में नवीन धार्मिक जोश और भारतीयों का विदेशी आक्रमण के प्रभाव को न समझ पाना।

4. राजपूतों का युद्ध को शौर्य प्रदर्शन की दृष्टि से देखना जबकि तुर्कों का उद्देश्य विजय प्राप्त करना तथा इसके लिए हर उचित अनुचित काम करना।

5. आम जनता के बड़े तबके का राजनीतिक परिवर्तन से उदासीन रहना। जिसके कारण सेना की हार के बाद नगरों और गांवों में आक्रमणकारियों का विरोध न होना।

इन्हें भी देखें:-

चौहान वंश का इतिहास

महमूद गजनवी

गोरी (विकिपीडिया)

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  1. इल्तुतमिश - INDIANHISTORYS.COM

    […] मुहम्मद गोरी ने पहले ही कुतुबुद्दीन ऐबक से कहकर उसे दासता से मुक्ति दिला दी थी। […]

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