महमूद गजनवी
महमूद गजनवी का नाम सुनते ही हमारे मन में एक दुर्दांत लुटेरे की छवि अंकित हो जाती है। हमें यह पढ़ाया गया है कि महमूद गजनवी ने भारत पर लगभग 16 या 17 बार आक्रमण किया।
इन आक्रमणों से अपार संपत्ति लूट कर गजनी लेकर गया। इसके अतिरिक्त वह सोमनाथ के विख्यात शिव मंदिर को नष्ट करने वाला भी था।
गजनवी वंश के प्रारंभिक शासक:-
इस वंश के व्यक्ति ईरान से अरबी आक्रमण के भय से भागकर तुर्किस्तान आ गए और वहीं बस गए।
यमीनी वंश अथवा गजनवी वंश का स्वतंत्र शासक अलप्तगीन था। उसने इस राज्य का विस्तार किया और 963 ईसवी में जाबुलिस्तान और उसकी राजधानी गजनी को अबू बकर लाविक नामक शासक से छीन लिया।
963 ईसवी में अलप्तगीन की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र इस हक ने 3 वर्ष शासन किया। फिर उसके सेनापति बलक्तगीन ने गद्दी पर अधिकार कर लिया।
बलक्तगीन के पश्चात 972 ई. में अलप्तगीन के एक गुलाम पीराई ने गद्दी पर अधिकार कर लिया। उसके समय में हिंदू शाही राजा जयपाल ने एक सेना भेजा।
परंतु सुबुक्तगीन ने उसपर अचानक आक्रमण करके उसे परास्त कर दिया और अंत में 977 ईसवी में पीराई को हटाकर स्वयं शासक बन बैठा।
हिंदूशाही राज्य का संघर्ष कुछ राजनीतिक और धार्मिक कारणों से इस वंश के शासकों से अलप्तगीन के समय से ही होता आया था। जिसमें हिंदूशाही शासको ने काबुल को उनके अधिकार से मुक्त कराया था।
सुबुक्तगीन:-
सुबुक्तगीन एक योग्य शासक था उसने अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में बस्त, दवार, तुर्किस्तान और गोर आदि को जीत लिया और हिंदू शाही राज्य की सीमाओं पर भी आक्रमण करना प्रारंभ कर दिया।
उसकी आक्रमणकारी नीति के कारण उसके समय में गजनी और हिन्दू शाही राज्य में संघर्ष तेज हो गया।
986- 87 ईसवी में हिंदूशाही राजा जयपाल ने गजनी पर आक्रमण किया परंतु तूफान आने से उसकी सेना तितर-बितर हो गई।
कुछ समय पश्चात सुबुक्तगीन ने जयपाल की सीमाओं पर पुनः आक्रमण किया और लमगान पर अधिकार कर लिया।
इसके पश्चात जयपाल ने लमगान के निकट अपनी सेना को एकत्रित किया। दोनो सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ परंतु जयपाल की पराजय हुई।
997 ईसवी में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गई।मरने से पहले उसने अपने छोटे पुत्र इस्माइल को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। परंतु उसके बड़े पुत्र महमूद ने इसे मानने से इंकार कर दिया।
सात माह के पश्चात इस्माइल को परास्त करके 998 ईसवी में महमूद ने गद्दी पर अधिकार कर लिया।
महमूद गजनवी:-
महमूद गजनवी का जन्म 1 नवंबर 971 ईसवी को हुआ। 27 वर्ष की अवस्था में वह शासक बना।मुस्लिम इतिहास का वह पहला सुलतान माना गया।
उसने अपने सिक्कों पर केवल अमीर महमूद अंकित कराया।
बगदाद के खलीफा अल कादिर बिल्लाह ने 999 ईसवी में महमूद के हिरात, बल्ख,बस्त और खुरासान पर विजयों को स्वीकार कर लिया और उसे यमीन उद् दौला तथा आमीन उल मिल्लाह की उपाधियां प्रदान कीं। इसी अवसर पर महमूद ने भारत पर प्रत्येक वर्ष आक्रमण करने की शपथ ली।
महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण:-
सर हेनरी इलियट जैसे इतिहासकारों के अनुसार महमूद ने भारत पर लगभग 17 बार आक्रमण किया परंतु कुछ इतिहासकारों के अनुसार महमूद ने भारत पर 12 बार आक्रमण किया।
महमूद का भारत पर पहला आक्रमण 1000 ईसवी में प्रारंभ हुआ इसमें उसने सीमावर्ती कुछ किलो को जीता।
1001 ईसवी में महमूद ने भारत पर पुनः आक्रमण किया। इस समय हिंदू शाही राजा जयपाल ने पेशावर के निकट उसका मुकाबला किया । परंतु महमूद की विजय हुई और जयपाल बंदी बना लिया गया। बाद में 25 हाथी और ढाई लाख दीनार देकर जयपाल और उसके संबंधी मुक्त किए गए।
जयपाल ने अपनी पराजय से इतना अधिक अपमानित अनुभव किया कि उसने आत्मदाह कर लिया। जयपाल के पश्चात उसका पुत्र आनंदपाल सिंहासन पर बैठा।
महमूद का अगला आक्रमण मुल्तान के शासक अब्दुल फतह दाऊद पर हुआ जो कि शिया संप्रदाय का था। मार्ग में उसे आनंदपाल ने भेरा के निकट रोका परंतु आनंदपाल की पराजय हुई और 1006 ईसवी में महमूद ने मुल्तान को जीत लिया।
अपनी उत्तर-पश्चिम सीमा पर तुर्की आक्रमण की सूचना पाकर महमूद ने दाऊद को मुल्तान का तथा अन्य भागों का नौशाशाह को जो जयपाल का नाती सुखपाल था जिसे इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य किया गया था सौंप कर वापस चला गया।
उसके जाने के पश्चात ही नौशाशाह और दाऊद ने विद्रोह कर दिया। 1008 ईसवी में वह पुनः वापस लौटा और उसने नौशाशाह और दाऊद को कैद करके मुल्तान को अपने राज्य में मिला लिया।
बैहंद का युद्ध:-
मुल्तान पर महमूद के अधिकार हो जाने से आनंदपाल की चिंता और समस्या दोनों एक साथ बढ़ गई। उसने बड़ी सेना एकत्र की और 1009 ईसवी में पेशावर में बैहंद के निकट उसका मुकाबला किया परंतु पराजित हो गया अब उसके नगरकोट तक के क्षेत्र को महमूद ने अपने अधिकार में ले लिया।
बैहंद के युद्ध से भारतीयों की शक्ति में भारी गिरावट आई।
आनंदपाल के पश्चात उसके पुत्र त्रिलोचन पाल ने भी समय-समय पर अनेक राजाओं से संधि करके महमूद से संघर्ष किया परंतु उसे असफलता मिली।
उसके पश्चात त्रिलोचन पाल के पुत्र भीमपाल की महमूद से मुकाबला करने की स्थिति ही नहीं रही। इस प्रकार एक लंबे और कठिन संघर्ष के पश्चात ब्राह्मण वंशीय हिंदू शाही राज्य समाप्त हो गया और भारत की सीमा असुरक्षित हो गई।अब महमूद का राज्य पंजाब तक पहुंच गया।
1009 ईस्वी में महमूद में अलवर के नारायणपुर को लूटा।
1014 ईस्वी में उसने थानेश्वर को लूटा। रास्ते में डेरा के शासक राजा राम ने उससे युद्ध किया परंतु पराजित हुआ।
महमूद गजनवी का कन्नौज और मथुरा पर आक्रमण:-
1018 ईस्वी में महमूद कन्नौज पर आक्रमण करने के लिए निकला मार्ग में छोटे-छोटे राज्यों को पराजित करता हुआ मथुरा के निकट आ गया।
यहां पर यदुवंश के शासक कुलचंद ने उसका मुकाबला किया परंतु पराजित हुआ। आगे बढ़कर महमूद ने मथुरा पर आक्रमण किया और वहां भयंकर लूटमार की।
मथुरा हिंदुओं का एक महान तीर्थ स्थल था उस समय मथुरा की रक्षा का कोई प्रबंध नहीं किया जा सका।
इतिहासकार उतबी के अनुसार मंदिरों में सोने और चांदी की हीरे जवाहरात से जुड़ी हुई हजारों मूर्तियां थी। इसमें 5 हाथ ऊंची सोने की मूर्तियां लालमणि से जड़ी हुई थी। सभी मंदिरों के नीचे और मूर्तियों के नीचे अपार धनराशि गड़ी हुई थी।
महमूद ने मथुरा के कोने कोने को लूटा, मूर्तियों को तोड़ा, जमीन को खोदकर धन निकाला। राज्य को पूरी तरह बर्बाद कर दिया गया। स्त्री पुरुषों को कत्ल कर दिया गया या गुलाम बना लिया गया।
वृंदावन का भी वही हाल हुआ।
उसके पश्चात वह कन्नौज गया जहां गुर्जर प्रतिहार वंश के अंतिम शासक राज्यपाल भाग खड़ा हुआ और उसने कन्नौज को भी लूटा।
कानपुर पर आक्रमण:-
कन्नौज के पश्चात महमूद कानपुर गया वहां मंझावन नामक स्थान पर आक्रमण किया जो कि ब्राह्मणों के किले के नाम से विख्यात था 25 दिन तक किले पर अधिकार नहीं किया जा सका।
परंतु उसके पश्चात स्त्री और बच्चे जल मरे और पुरुष युद्ध में मारे गए। अब महमूद का किले पर अधिकार हो गया।
असी के शासक चंद्रपाल और फिर सहारनपुर के शासक चांदराय ने उसका मुकाबला नहीं किया। लूटमार करता हुआ महमूद वापस गजनी चला गया।
महमूद के वापस चले जाने के पश्चात बुंदेलखंड के शासक विद्याधर ने मित्र राजाओं का संघ बनाकर कन्नौज के शासक राज्यपाल पर आक्रमण किया। क्योंकि उसने महमूद को बिना युद्ध के जाने दिया जिसके परिणाम स्वरूप मथुरा को लूटा गया।
युद्ध में राज्यपाल को मार दिया गया।
1019 ईस्वी में महमूद पुनः भारत आया।यहां पर यमुना नदी के तट पर हिंदूशाही राजा त्रिलोचनपाल ने उसका मुकाबला किया परंतु पराजित हो गया।
इसके पश्चात वह बरी की तरफ बढ़ा जहां का शासक राज्यपाल का पुत्र त्रिलोचन पाल था। त्रिलोचन पाल बिना युद्ध किए ही भाग खड़ा हुआ और महमूद ने बरी को पूरी तरह नष्ट कर दिया।
महमूद गजनवी का बुंदेलखंड पर आक्रमण:-
इसके पश्चात महमूद लगभग 1020-21 ईसवी में बुंदेलखंड की तरफ बढ़ा।
बुंदेलखंड का शासक विद्याधर एक बड़ी सेना लेकर उसके मुकाबले के लिए आया। प्रारंभ में महमूद को भय लगा। परंतु छुटपुट युद्ध में विद्याधर की सेना के एक भाग की पराजय हो गई जिसके कारण या अन्य किन्हीं कारणों से विद्याधर रात को भाग निकला। सुबह मैदान खाली देखकर उसके राज्य पर धावा बोल दिया और उसके राज्य को नष्ट कर दिया। महमूद अपार संपत्ति लेकर वापस लौटा।
इसके पश्चात विद्याधर ने कालिंजर के किले में शरण ली थी। कुछ समय बाद महमूद पुनः वापस आया। उसने ग्वालियर के राजा कीर्तिराज को संधि करने के लिए बाध्य किया।
आगे जाकर कालिंजर के किले का घेरा डाला। लंबे समय तक घेरे के पश्चात भी किले को नहीं जीता जा सका। अंत में संधि की बातचीत हुई और दोनों पक्षों ने संधि को स्वीकार कर लिया।
महमूद गजनवी का सोमनाथ पर आक्रमण:-
1024 ईस्वी में महमूद ने गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान किया।
यह मंदिर हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र था। यहां पर सरकार की तरफ से 10000 गांव की आय भेंट की गई थी यह मंदिर अत्यंत सुंदर था। उसमें अत्यधिक धन संचित था। शिवलिंग का छत्र अनेकों प्रकार के हीरे जवाहरात और मणियों से बना हुआ था।
शिवलिंग बीच अधर में हवा में बिना किसी सहारे के लटका हुआ था। 200 मन सोने की जंजीर से उसका घंटा बजाया जाता था। लगभग 350 स्त्री और पुरुष लिंग के सम्मुख नृत्य करने के लिए रखे गए थे।
मंदिर के पुजारियों का यह कहना था कि भगवान सोमनाथ उत्तर भारतीयों से असंतुष्ट थे इस कारण से महमूद उत्तर भारतीयों को लूट सका परंतु वह सोमनाथ को नष्ट करने की शक्ति नहीं रखता है।
मुल्तान के मार्ग से महमूद काठियावाड़ की ओर बढ़ा और 1025 ईसवी में उसने काठियावाड़ की राजधानी अन्हिलवाड़ पर आक्रमण कर दिया। वहां का राजा भीमदेव भाग खड़ा हुआ और महमूद ने इच्छा अनुसार राजधानी अन्हिलवाड़ को लूटा।
इसके पश्चात वह सोमनाथ मंदिर के पास पहुंच गया। वहां पर हजारों भक्त मंदिर की रक्षा करने के लिए एकत्र हो गए थे।
महमूद का पहले दिन का आक्रमण असफल हुआ परंतु महमूद दूसरे दिन मंदिर की प्राचीर को पार कर गया ।
इस युद्ध में 50,000 से अधिक व्यक्ति मारे गए थे। मंदिर में लगे चकमक पत्थर को हटा दिया जिसकी वजह से वह शिवलिंग अधर में लटका हुआ था।
शिवलिंग जमीन पर गिर पड़ा महमूद ने उसे तोड़ दिया। उसने सोमनाथ मंदिर के प्रत्येक स्थान को खुद खोदकर उसमें रखी हुई अपार संपत्ति को निकाल लिया और अपने साथ वापस लेकर गया।
रास्ते में सिंध के रेगिस्तान से वापस लौटते समय उसके मार्गदर्शक ने जो कि एक भारतीय था उसे मार्ग से भटका दिया और उसका बहुत नुकसान किया।
महमूद गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण:-
सिंध के रास्ते वापस जाते समय वहां के जाटों ने उसे बहुत परेशान किया था जाटों को दंड देने के लिए 1027 ईसवी में वह पुनः भारत आया। उसने जाटों का बुरी तरह नरसंहार किया।उनकी स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बना लिया। उनकी संपत्ति को लूट लिया गया।यह भारत पर महमूद का अंतिम आक्रमण था।
1030 ईस्वी में महमूद गजनबी की मृत्यु हुई।
उसने अफगानिस्तान मुल्तान और पंजाब तक अपने राज्य का विस्तार कर दिया।
महमूद का चरित्र:-
वह एक सफल विजेता था।वह साहसी सैनिक और सफल कूटनीतिज्ञ था।उसकी सेना में विभिन्न नस्ल के सैनिक थे फिर भी उस सेना ने विजय प्राप्त किया।
उसको अपने पिता से गजनी और खुरासान का एक छोटा राज्य प्राप्त हुआ था जिसे उसने अपनी योग्यता से ईरान से पंजाब तक फैला दिया। वह एक महान सेनापति था।
गजनी में उसका दरबार ईरान के शाह के दरबार की तरह सजाया गया था।
उसके दरबार में तहकीके हिंद के लेखक जियाउद्दीन बरनी, शाहनाम के रचइता फिरदौस,दार्शनिक फराबी, तारीखे सुबुक्तगीन का लेखक बैहाकी जिसे इतिहासकार लेनपूल ने पूर्वी पेप्स की उपाधि दी है जैसे विद्वान रहते थे।
उसने शहजादे को काजी की अदालत में पेश होने का आदेश दिया था।
परंतु ये सब बाते उसके अपने राज्य तक सीमित थी अथवा मुस्लिम इतिहास कारों ने लिखी थीं।
भारत की दृष्टि से देखा जाय तो महमूद एक आक्रमणकारी लुटेरा था।
अपनी प्रत्येक आक्रमण की सफलता पर उसने पराजित राज्य के सैनिकों के साथ साथ निर्दोष जनमानस पर भी अमानुषिक अत्याचार किया। लोगों के घरों को लूट लिया गया।हजारों स्त्री पुरुषों को कत्ल कर दिया अथवा गुलाम बना लिया।
हजारों हजार सुंदर स्त्रियों को गुलाम बनाकर गजनी ले गया।
भारत के प्रमुख प्रमुख मंदिरों को तोड़कर देवी देवताओं की मूर्तियों को अपमानित किया।मंदिरों में संचित अतुल संपत्ति को अपने साथ ले गया।
महमूद गजनवी ने अपने जीते हुए क्षेत्र के प्रत्येक स्थान के कोने कोने को लूटा।
महमूद के विरुद्ध भारतीयों की पराजय का कारण:-
1.हिंदूशाही राज्य को छोड़कर अन्य भारतीयों राज्यों द्वारा मुस्लिम आक्रमण के प्रभाव को ठीक प्रकार से न समझ पाना।
2. गुप्त साम्राज्य के समय की शांति और उसके बाद लंबे समय तक भारत पर आक्रमणकारियों का सफल न हो पाना।
3. लंबे समय की शांति से भारतीयों में दंभ कि भारत अजेय है इस कारण असावधानी और अपने पड़ोसी की गतिविधि पर नजर न रखना।
4. अलबरूनी द्वारा अरबी भाषा में लिखे गए ग्रंथ तहकीके हिंद में वर्णित बाते। जब वह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था तो उसने देखा। अलबरूनी के अनुसार-भारतीय शासकों में पारस्परिक एकता नहीं है और विदेशी आक्रमण के समय वे कभी भी मिलकर एक नहीं हुए।
भारत में जाति प्रथा कठोर है एक बार जो भी जाति से निकल गया वह चाह कर भी दुबारा उसमे शामिल नहीं हो सकता।
अलबरूनी के अनुसार भारतीय बड़े दंभी है उनको लगता है कि उनके जैसा राज्य,राजा,धर्म और सभ्यता दुनिया में कहीं नहीं है जबकि उनके पूर्वज इतने संकीर्ण विचारों के नहीं थे।
5. भारतीयों का सैन्य संगठन और युद्ध नीति तुर्कों की तुलना में कमजोर थी। महमूद गजनवी की सेना आगे बढ़ती थी और सहसा पीछे भागती थी फिर दुश्मन को जल में फसा कर अचानक हमला करती थी।उनमें युद्ध विषयक कोई मर्यादा नही थी।उनका एक ही उद्देश्य युद्ध जीतना था।
6. इस्लाम में नव स्थापित तुर्कों का धार्मिक जोश भी बहुत बड़ा चढ़ा था जिससे धार्मिक रूप से एक होने वा इस्लाम के लिए लड़ने की भावना प्रबल थी।जबकि भारतीयों में धार्मिक उदारता की भावना थी।
महमूद गजनवी के आक्रमण का भारत पर प्रभाव:-
जिस प्रकार कोई डकैत किसी के घर को लूट कर चला जाय। उसी प्रकार महमूद गजनवी ने भारतीय क्षेत्रों को लूटा।उस समय भारतीय उसका कोई मुकाबला नहीं कर सके ना ही अपने गौरवपूर्ण इतिहास को ध्यान में रखकर योजनाबद्ध तरीके से उसका सामना कर सके।
परंतु महमूद ने भारत पर कोई स्थाई प्रभाव नहीं छोड़ा उसके जाने के पश्चात कुछ समय में ही भारतीयों ने अपने मंदिरों और नगरों को पुनः वैभवपूर्ण बना लिया।उन्होंने महमूद के आक्रमण से कोई सबक नहीं लिया जिसका परिणाम बाद के आक्रमणकारियों का भारत पर आक्रमण था।
महमूद गजनवी ने जाते जाते हिंदूशाही राज्य की शक्ति को नष्ट कर दिया।वही एक ऐसा राज्य था जिसने अंत तक उस आक्रमणकारी का डटकर मुकाबला किया और अपने आसपास के राजाओं का संघ बनाकर उसपर आक्रमण भी किया।
हिंदूशाही राज्य के नष्ट हो जाने से भारत की उत्तर पश्चिम की प्राचीर नष्ट हो गई।पंजाब तक मुसलमानी राज्य हो जाने से उधर से आक्रमणकारियों का आना सरल हो गया।
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