प्राचीन भारत पर ईरानी और यूनानी आक्रमण
प्राचीन काल में भारत अत्यंत शक्तिशाली राष्ट्र था परंतु यह विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था. भारत के मध्य भाग में यदा-कदा कुछ राजवंश शक्तिशाली थे परंतु भारत के उत्तरी भाग में जिसे उत्तरा पथ कहा जाता है वहां के बड़े राज्यों ने विघटित होकर छोटे-छोटे राज्यों का स्थान प्राप्त कर लिया था और वे सभी राज्य आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे जिसके कारण विदेशी शत्रुओं को उनपर आक्रमण करने का अवसर प्राप्त हुआ।
भारत पर ईरानी आक्रमण :-
छठी शती ईसा पूर्व में भारत के पड़ोस में स्थित पर्शियन साम्राज्य के शासकों ने भारत पर आक्रमण किया। भारत पर पहला ईरानी आक्रमण पर्शियन साम्राज्य के संस्थापक कुरुष ने 550 ईसा पूर्व में किया उसने मकरान तट से होकर भारत पर आक्रमण किया परंतु उसे सिंधु के आसपास के राज्यों से अत्यंत कठोर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और वह बुरी तरह पराजित हुआ तथा अपने बहुत थोड़े साथियों के साथ जान बचाकर भाग गया।
परन्तु उसने हार नहीं मानी और दोबारा फिर कुछ समय पश्चात काबुल घाटी के रास्ते से भारत पर आक्रमण किया और कपिशा नगरी को नष्ट करता हुआ अश्वक राज्य को जीता यह राज्य काबुल नदी के उत्तर में स्थित था अश्वक अत्यंत वीर और साहसी थे इतिहासकार एरियन ने इसका वर्णन किया है। इतिहासकार स्ट्रेबो के अनुसार कुरुष ने अपनी तरफ से यूनानियों के विरुद्ध लड़ने के लिए क्षुद्रकों को बुलाया था इससे यह पता चलता है कि छुद्रक उसके प्रभाव में थे । क्षुद्रक भारत का एक गणराज्य था जो कि व्यास नदी के तट पर स्थित था। परंतु इस बारे में इतिहासकारों में मतभेद है कई इतिहासकारों का मानना है जैसे कि मेगस्थनीज के अनुसार भारत पर किसी विदेशी शक्ति ने आक्रमण नहीं किया शिवाय डायोनिसियस और सिकंदर के।
भारत पर दूसरा ईरानी आक्रमण विस्तास्प के बेटे दादा ने 521-485 ईसा पूर्व के आसपास किया था इसका वर्णन बेहिस्तून के शिलालेख से प्राप्त होता है इसके अनुसार दारा ने गांधार ,कंबोज और सिंध के प्रदेश पर अपना अधिकार स्थापित किया था और वहां से उसको कर मिलता था हेरोडोटस ने इसका वर्णन किया है।
दारा के पुत्र क्षहयार्ष के समय में भी दारा के अधीन विविध प्रांतों पर ईरानियों का अधिपत्य स्थापित रहा। उसके शासन काल में यूनानीयों ने आक्रमण किया और यूनानी आक्रमण के समय उसकी तरफ से भारतीय योद्धाओं ने युद्ध में भाग लिया था।
सिकंदर के आक्रमण के समय ईरान का शासक दारा तृतीय था। दारा तृतीय कि राज्य को सिकंदर ने तहस-नहस कर दिया था।
भारत पर ईरानी आक्रमण का अत्यंत गंभीर परिणाम सामने आया। ईरानियों के आक्रमण का प्रभाव भारत पर संस्कृतिक और राजनैतिक दोनों रूप में पड़ा। ईरानियों के आक्रमण के पश्चात उनके दिखाए मार्ग से विभिन्न जातियों ने भारत पर आक्रमण किया ,उनमें यूनानी प्रमुख थे। यूनानियों के पश्चात बाख्त्री ,शक, पल्हव आदि ने भी भारत पर आक्रमण किया।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर भी ईरानी आक्रमण का प्रभाव पड़ा। उनके भारत पर आक्रमण करने के पश्चात खरोष्ठी लिपि का भारत में प्रचार हुआ खरोष्ठी लिपि मूल भारतीय लिपि जैसे प्राकृत और ब्राम्ही लिपि से भिन्न थी और यह दायें से बायें की तरफ लिखी जाती थी। ईरानी आधिपत्य से विदेशियों का रक्त मिश्रण भारतीयों के साथ हुआ। बहुत से विदेशी भारत में आकर बस गए। कुछ पूर्ण भारतीय बन गए और कुछ अपने मूल देश के व्यक्तियों के साथ सद्भावना का विचार रखते थे और विदेशी आक्रमण करने के समय उनकी सहायता करने को तत्पर रहते थे।
भारत पर यूनानियों का आक्रमण :-
संपूर्ण यूरोप में सबसे पहले यूनान में ही लगभग 900 ईसा पूर्व में सभ्यता और संस्कृति का उदय हुआ। यूनान सांस्कृतिक दृष्टि से एशिया पर निर्भर था उसका यूरोप से संपर्क नहीं था। भारतीय लोग यूनान से परिचित थे और वहां के निवासियों को यवन कहा जाता था इन्हें म्लेच्छ भी कहा जाता था इसका अर्थ था कि यह अभी पूर्ण रूप से सभ्य नहीं हुए थे।
छठी शती ईसा पूर्व में यूनान में विभिन्न गण राज्यों की स्थापना हुई जो कि उन्नत दशा में थे। चौथी शती ईसा पूर्व में यूनान के मकदूनिया नामक राज्य ने साम्राज्यवाद का सहारा लिया और वहां के शासक फिलिप ने यूनान के विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों को को पराजित किया और बड़े साम्राज्य की नींव डाली। फिलिप के पश्चात उसका पुत्र सिकंदर (Alexander )गद्दी पर बैठा। वह अत्यंत ही महत्वाकांक्षी सिद्ध हुआ और उसने यूनान से होकर एशिया के विभिन्न प्रांतों पर अपना राज्य स्थापित किया और अपनी विजयों से भारत को भी प्रभावित किया।
सिकंदर 328 ईसा पूर्व में मकदूनिया के सिंहासन पर बैठा और जीवन भर युद्ध में लगा रहा सबसे पहले उसने यूनानी सैनिकों की एक विशाल सेना को इकट्ठा किया और उस सेना की सहायता से पश्चिमी एशिया और मिस्र को जीत लिया। उसके बाद उसने ईरानी साम्राज्य पर आक्रमण किया उस समय ईरान का शासक दारा तृतीय था।
दारा तृतीय पराजित हुआ और बल्ख भाग गया सिकंदर ने दारा की राजधानी पर्सिपोलिस को बुरी तरह से जला दिया। उसके पश्चात वह दारा का पीछा करता हुआ बल्ख गया और उसे भी अपने अधीन कर लिया सिकंदर के इस अभियान का आंखों देखा वर्णन नियार्कस ने लिखा है।

पारसी साम्राज्य को अपने अधीन करके सिकंदर भारत की ओर बढ़ा उस समय उत्तरा पथ विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था और उनमें आपस में वैमनस्व था। वे राज्य एक दूसरे को नीचा दिखाने का हमेशा प्रयास करते रहते थे। जिसके कारण उनकी वीरता और बहादुरी के पश्चात भी सिकंदर एक-एक करके उन्हें जीतने में सफल हुआ।
सिकंदर एक महान योद्धा के साथ-साथ एक कुशल कूटनीतिज्ञ भी था। राज्यों को जीतने के पश्चात वह उनके साथ मैत्री संबंध स्थापित कर लेता था उन्हें उपहार आदि देकर उनके राज्य लौटा देता था और अपनी अधीनता में शासन का अधिकार दे देता था बदले में वह उनकी सहायता लेकर अन्य राज्यों को जीतता था। मित्र राजाओं को अपने अधीन अपने विजित प्रांतों की देखभाल का जिम्मा सौंपता था।
सबसे पहले उसने हिंदुकुश के उत्तर में स्थित शशिगुप्त नामक राजा पर अपना आधिपत्य स्थापित किया फिर उसे उसका राज्य लौटाकर अपना मित्र बना लिया। शशिगुप्त सिकंदर से संतुष्ट हो गया और उसने भारत पर आक्रमण के लिए सिकंदर की सहायता की। इसके पश्चात पुष्कलावती, काबुल आदि राज्यों ने भी उसका आधिपत्य स्वीकार कर लिया।
इसके पश्चात आगे बढ़ने पर सिकंदर को स्थान स्थान पर अत्यंत तीव्र प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। अश्वक राज्य ने उसके दांत खट्टे कर दिए अश्वक राज्य के नागरिक अत्यंत बहादुर थे यह राज्य प्राचीन काल के सुवस्तु (स्वात) के पास स्थित था। अश्वक राज्य को पराजित करके सिकंदर ने गौर पर भी आक्रमण किया और सहायता के अभाव में वह भी पराजित हुआ। गांधार के शासक हस्ती ने सिकंदर को एक माह तक आगे नहीं बढने दिया।
इन सब घटनाओं से पता चलता है कि भारतीय अत्यंत बहादुर थे परंतु उनमें एकता का अभाव था जिसके कारण एक दूसरे की सहायता नहीं करते थे। अपने राज्य पर विदेशियों के आक्रमण का इंतजार करते थे और उसी समय वे उनका विरोध करने के लिए तत्पर होते थे।
जब सिकंदर अपने इन अभियानों में व्यस्त था उसी समय तक्षशिला के राजकुमार आम्भि ने सिकंदर से मित्रता करने के लिए निमंत्रण भेजा सिकंदर उसके पास पहुंचा और उसका बड़ी ही गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया और आम्भि ने सिकंदर को प्रत्येक प्रकार से सहायता का आश्वासन दिया इसका कारण उसका पुरू राज्य से वैमनस्व भी था।
केकेय देश का राजा पुरु एक वीर एवं साहसी शासक था। सिकंदर ने आम्भि की सहायता लेकर अपने मित्र शासकों के साथ अपनी शक्ति को मजबूत किया उसके पश्चात उसने पुरु के पास संदेश भिजवाया कि वह उसकी अधीनता स्वीकार कर ले इसके उत्तर में राजा पुरु ने कहा कि वह उसका सामना युद्ध क्षेत्र में करेगा।
दोनों सेनाएं युद्ध के मैदान में आकर डट गईं सिकंदर के पास उसके भारतीय मित्रों के साथ मिलकर एक बड़ी घुड़सवार सेना थी और पुरु के पास भी एक विशाल सेना थी और अभिसार के राजा के साथ उसकी सैनिक मैत्री हो गई।
सिकंदर की सेना झेलम नदी के पश्चिमी किनारे पर आकर खड़ी हुई और केकय राज पुरु की सेना झेलम नदी के पूर्वी किनारे पर डट गई। महीनों तक दोनों सेनाएं झेलम नदी के किनारे आमने-सामने डटी रहीं। सिकंदर को पुरु की विशाल एवं सुसज्जित सेना देखकर आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ।
सेना के पड़ाव से कुछ मील की दूरी पर नदी का करार था और उसके पास नदी में एक टापू था जो कि निर्जन था और वहां पर पेड़ पौधे उगे हुए थे। सिकंदर ने उस स्थान का मुआयना किया उसके पश्चात यूनानी अपने काम पर लग गए। उन्होंने सूखे पुआल से नौकाये तैयार की और एक रात तेज बारिश हो रही थी उसी समय सिकंदर ने चुपके से झेलम पार करने का विचार किया।
अपने कुछ सैनिकों को पड़ाव के स्थान पर छोड़कर बाकी सैनिकों को लेकर वह कुछ मील दूर स्थित टापू के पास पहुंचा जहां पानी कम था और सेना की गतिविधि को देखा भी नहीं जा सकता था वहीं से अपने सैनिकों को सिकंदर ने चुपके से नदी पार करा दिया। पोरस को इसकी जानकारी भी नहीं हो सकी। नदी पार करने के पश्चात सिकंदर के सैनिक आगे बढ़े। तब जाके पोरस के गुप्तचरों को सूचना मिल सकी उन्होंने राजा को इसकी जानकारी दी।
पोरस का लड़का सिकंदर का मार्ग रोकने के लिए अपनी घुड़सवार सेना के साथ आगे बढ़ा। सिकंदर ने जब यह देखा तो अपनी घुड़सवार सेना की छोटी टुकड़ी को उनका सामना करने के लिए आगे भेजा। पोरस के सैनिकों ने उनकी संख्या का अनुमान लगाकर उनसे भिड़ंत की तभी सिकंदर की सेना का बड़ा भाग अपने सैनिकों की सहायता के लिए आ गया पोरस के सैनिकों के पाँव उखड गए। उसके सैनिक बारिश की वजह से मिट्टी चिकनी हो जाने के कारण पीछे लौटने में भी समर्थ नहीं हो सके और इस युद्ध में पोरस का लड़का वीरगति को प्राप्त हुआ।
सैनिक ने पोरस को आकर सूचना दी कि उनका लड़का वीरगति को प्राप्त हो गया है उसके पश्चात राजा पुरु ने स्वयं सेना का नेतृत्व किया सिकंदर और पोरस की सेनाओं में भीषण युद्ध प्रारंभ हो गया एक समय ऐसा लग रहा था सिकंदर पराजित हो जाएगा।
परंतु रात में भीषण बारिश हुई थी जमीन गीली और कीचड़ युक्त हो गई थी इस वजह से पोरस के रथ ठीक प्रकार से उसमें चल नहीं पा रहे थे उनके पहिए धंस जा रहे थे जिससे रथ बेकार हो गए ।इसके अलावा भारतीय धनुर्धरों के पास लंबे लंबे-लंबे और बड़े-बड़े धनुष थे जिनका प्रयोग घोड़ों पर बैठकर या खड़े होकर आसानी से नहीं किया जा सकता था। धनुष का प्रयोग करने के लिए धनुर्धारियों को धनुष को जमीन से टिकाना पड़ता था और उसके पश्चात उसपर बाण चढ़ाकर सन्धान करना होता था परंतु गीली जमीन होने के कारण धनुष जमीन में धंस जाते थे और ठीक प्रकार से बाण नहीं चल पाते।
सिकंदर के पास युद्ध करने के लिए पर्याप्त मैदानी क्षेत्र था जबकि पोरस ब्यूह रचना में पशुओं के बीच फंस गया जिसके कारण सही प्रकार से सेना का संचालन नहीं हो सका। सिकंदर के पास द्रुत गति से चलने वाली घुड़सवार सेना थी इसमें मध्य एशिया के घोड़े सम्मिलित थे और उसके सैनिकों के पास बड़े-बड़े भाले और घोड़े पर बैठकर चला सकने में आसान धनुष थे भालों और तीरों के आक्रमण से पोरस के हाथी विचलित हो गए और सिकंदर ने रणनीति के तहत अपने सैनिकों को बता रखा था कि हाथी से अधिक महावतों पर आक्रमण किया जाए इससे बहुत सारे महावत वीरगति को प्राप्त हुए और हाथी अनियंत्रित हो गए ।पीछे लौटकर हाथियों ने अपनी ही सेना को कुचलना प्रारंभ कर दिया पोरस की सेना को बहुत अधिक क्षति का सामना करना पड़ा परंतु वह अंत तक लड़ता रहा उसका दाहिना कंधा घायल हो गया क्योंकि वहां पर कवच नहीं था।
सिकंदर ने पोरस के पास संधि के लिए दूत पर दूत भेजें। अंत में पोरस के मित्र मेरोस को भेजा गया इससे पोरस संधि के लिए तैयार हो गया ।पोरस को जब सिकंदर के सामने लाया गया तो सिकंदर ने उससे पूछा कि तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए। राजा पोरस ने गर्व के साथ उत्तर दिया कि जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। उसके इस कथन से सिकंदर अत्यंत प्रभावित हुआ और उसने उसका राज्य उसे वापस लौटा दिया और उसे अपना मित्र बना लिया।पोरस और सिकंदर का यह वार्तालाप विश्व इतिहास में अमिट अक्षरों में दर्ज हो गया।
पोरस की मित्रता से सिकंदर को बहुत लाभ हुआ और उसने सिकंदर को अन्य भारतीय प्रदेशों के विजय में सैन्यबल ,धनबल आदि हर प्रकार से सहायता प्रदान किया।पुरु को परास्त करने के पश्चात सिकंदर ने वहां दो नगरों की स्थापना की एक नगर बाउकेफला जो उसके प्रिय घोड़े की याद में उसी के नाम पर बसाया गया दूसरा निकाया जो विजय की देवी के नाम पर विजय के उपलक्ष्य में बसाया गया।
उसके पश्चात सिकंदर ने अद्रिज और कठ आदि राज्यों को जीता। कठ एक गणराज्य था जो कि रावी और व्यास नदी के मध्य में स्थित था। कठो़ं ने अपनी राजधानी के चारों तरफ रथों का घेरा बना लिया इसे सिकंदर नहीं तोड़ पा रहा था। राजा पुरु ने उसकी सहायता की इस सहायता के फलस्वरूप सिकंदर ने कठों की राजधानी शांकल को जीतकर उसे ध्वस्त कर दिया।इसके पश्चात सिकंदर की सेना ने आगे जाने से इनकार कर दिया। सिकंदर का ओजस्वी भाषण भी उन्हें प्रभावित ना कर सका। इसके कई कारण थे :-
सिकंदर ने मध्य एशिया के राज्यों को बड़ी आसानी से जीता था परंतु भारत में उसे स्थान स्थान पर कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ा और इसके अलावा उसकी सेना काफी समय से अपने देश से दूर थी जिससे वे युद्ध वातावरण से थक चुके थे और अपने देश जाकर अपने स्वजनों से मिलना चाहते थे.
सिकंदर वापस लौट पड़ा वापस लौटने के दौरान वह कैकय राज्य में राजा पोरस के पास रुका वहाँ रहकर उसने अपने जीते हुए प्रदेशों का प्रबंध किया।उसके पश्चात सिकंदर ने झेलम नदी के दक्षिण की ओर प्रस्थान किया। वहां उसे सौभूति राज्य से सामना करना पड़ा ।
सौभूति राज्य के निवासी अत्यंत वीर व युद्ध प्रेमी थी परंतु अकेले सिकंदर की सेना का सामना नहीं कर सके और पराजित हो गया उसके पश्चात अन्य राज्यों को पराजित करके सिकंदर का युद्ध मालव ,क्षुद्रक गणराज्य से हुआ। मालव ,क्षुद्रक गणराज्य ने सिकंदर का सामना करने के लिए एक संघ बनाया और उन दोनों की सेनाएं एक दूसरे से मिलने के लिए चल पड़ी वहीँ पर युद्ध की रणनीति बननी थी। उसी समय सिकंदर ने उनके मिलने से पहले ही मालव गणराज्य पर आक्रमण कर दिया अत्यंत कठिन संघर्ष के पश्चात मालव पराजित हुए। मालवों के पराजित होने के बाद क्षुद्रकों का भी मनोबल घट गया और उन्होंने भी सिकंदर की अधीनता स्वीकार कर ली। उसके पश्चात सिकंदर ने दक्षिण-पश्चिम पंजाब के राज्यों के संघ पर भी आक्रमण किया और उन्हें भी पराजित किया।

उसके पश्चात सिकंदर का सामना ब्राह्मण जनपद के निवासियों से हुआ जिन्होंने उसके साथ तीव्र प्रतिरोध किया उन पर भीषण युद्ध के पश्चात वे भी पराजित हुए सिंधु के मुहाने पर पहुंचकर सिकंदर ने अपनी सेना को दो भागों में बांट दिया एक भाग को नियार्कस के नेतृत्व में समुद्र मार्ग से और दूसरे भाग को लेकर वह स्वयं स्थल मार्ग से बेबीलोन की तरफ चला। रास्ते में उसे तीव्र ज्वर हुआ और 32 वर्ष की अल्पायु में सिकंदर की मृत्यु हो गई।
सिकंदर के आक्रमण का भारत पर प्रभाव कई रूप में पड़ा। यूनानी इतिहासकारों के अनुसार सिकंदर के आक्रमण से भारतीयों को संस्कृति एवं सभ्यता प्राप्त हुई। परंतु यह कहना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है भारतीय सभ्यता और संस्कृति यूनान की संस्कृति से काफी उच्च स्थिति में थी। भारतीयों की दृष्टि में सिकंदर के आक्रमण की घटना सैनिक रूप से चाहे कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों ना रही हो परंतु सांस्कृतिक दृष्टि से यह नगन्य थी।
सिकंदर एक आंधी की तरह आया और तूफान की तरह निकल गया उसके जाने के साथ ही उसकी बनाई गई सारी व्यवस्था नष्ट हो गई और भारतीयों ने अपनी स्थित को पुनः प्राप्त कर लिया। सिकंदर ने जो भी उपनिवेश या स्कन्धावर (सैनिकों के रहने के स्थान ) बसाये थे उनके सीमित क्षेत्र तक ही यूनानियों का प्रभाव था, बाद में धीरे-धीरे भारतीयों ने उन स्थानों पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
यूनानी आक्रमण का भारत पर कुछ सकारात्मक प्रभाव भी पड़ा। यूनानी आक्रमण से सबक लेकर भारतीयों ने अपने सैन्य शक्ति का विस्तार किया और अपनी दुर्बलता ओं को दूर करने का प्रयास किया। इन प्रयासों में वे सफल भी हुए।
सिकंदर की विजय ने भारत से यूनान तक के लिए व्यापारिक मार्ग प्रदान किया और व्यापारिक नगरों का स्थान बढ़ा।
भारत में यूनानी प्रकार के सिक्कों का प्रचलन बढ़ा।
इस प्रकार हमने देखा कि सिकंदर के आक्रमण का भारत पर प्रभाव केवल सैनिक था। सिकंदर के साथ युद्ध में बहुत सारे सैनिक मारे गए थे। वह भारत में जितने समय रहा हमेशा युद्ध में ही व्यस्त रहा। सिकंदर का संपूर्ण शासन आतंक पर आधारित था। जब तक वह भारत में रहा यहाँ शान्ति रही और जैसे ही वह यहाँ से निकला भारतीयों ने दासता के जुए को उतार फेंका। अपनी पराजय से सबक लिया। अपनी सैनिक शक्ति में सुधार किया जिससे कि भविष्य के यूनानी आक्रमण के दौरान उन्हें पराजित करने में सहायता मिली।