बिन्दुसार (अमित्रघात)

बिन्दुसार का साम्राज्य

चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात उसका लड़का बिन्दुसार 297 ईसा पूर्व में मगध के सिंहासन पर बैठा। बिंदुसार की माता का नाम दुर्धारा था।
बिंदुसार का उपनाम अमित्र घात था। अमित्रघात का अर्थ होता है शत्रु का नाश करने वाला इससे पता चलता है कि वह एक विजेता शासक था।

यूनानी ग्रंथों में बिन्दुसार मौर्य को अमित्रोचेटस कहा गया है।

जैन ग्रंथ में बिंदुसार को सिंहसेन कहा गया है।

पुराणों में उसे वारिसार कहा गया है।

बिन्दुसार के विषय में हमें बहुत कम जानकारी मिलती है। बौद्ध और जैन ग्रन्थ भी बिन्दुसार का कम वर्णन करते हैं। चंद्रगुप्त मौर्य अपने अंतिम समय में जैन हो गया इसलिए जैन ग्रन्थ में उसे अधिक स्थान मिला तथा अशोक भी बौद्ध हो गया जिससे बौद्ध ग्रन्थ उसका गुणगान करते हैं।

जैन और बौद्ध ग्रंथ दोनों से इस बात का पता चलता है चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात भी आचार्य चाणक्य जीवित थे और उन्होंने बिंदुसार के शासन के आरंभिक वर्षों में उसका मार्गदर्शन किया था।

तिब्बती इतिहासकार तारा नाथ के वर्णन से बिंदुसार की विजयो का पता चलता है उनके अनुसार बिंदुसार ने पूर्वी समुद्र अर्थात बंगाल की खाड़ी से पश्चिमी समुद्र अरब सागर के बीच के सारे प्रदेश को जीत लिया था उस समय उत्तर में केवल कश्मीर और दक्षिण पूर्व में कलिंग का प्रदेश बिंदुसार के साम्राज्य में नहीं था इसे बाद में सम्राट अशोक ने जीता था। इसका वर्णन सम्राट अशोक के लेख में दिया गया है जिससे पता चलता है कि बिन्दुसार का शासन मैसूर के प्रांत तक था।

तक्षशिला का विद्रोह:-

बिंदुसार के शासन की एक महत्वपूर्ण घटना तक्षशिला का विद्रोह था।उत्तरापथ के शासन का उत्तरदायित्व बिन्दुसार के बड़े लड़के सुसीम पर था । तक्षशिला की जनता ने प्रांतीय आमात्यों के कड़े शासन से तंग आकर विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को दबाने में सुसीम असमर्थ हो गया जब इसकी सूचना सम्राट बिंदुसार तक पहुंची तो उसने अपने लड़के अशोक को जो उस समय अवंति का प्रांतपति था भेजा।

अशोक के तक्षशिला पहुंचने के पहले ही वहां की जनता ने अपने प्रतिनिधियों के साथ मार्ग में मिलकर अशोक का स्वागत किया और उसे बताया कि तक्षशिला की  जनता ना तो राजा के विरुद्ध है ना ही राजकुमार के वह तो केवल प्रांतपतियों के शासन से तंग आकर विद्रोह करने पर मजबूर हुई है । अशोक ने तक्षशिला पहुंचकर प्रांतपतियों के कठोर शासन को सरल बनाकर जनता को संतुष्ट किया जिससे यह विद्रोह समाप्त हो गया।

विदेशों से संबंध:-

अपने पिता चंद्रगुप्त की भांति बिंदुसार भी कला प्रेमी था । बिंदुसार के समय में भी यूनानी राज्यों से भारत के अच्छे संबंध थे और व्यापारिक वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था । 

एथीनियास नामक लेखक के अनुसार यूनान का शासक एंटियोकस प्रथम के भारत के साथ अच्छे संबंध थे । बिंदुसार ने एंटियोकास को एक पत्र लिखा था जिसमें अंगूरी शराब ,अंजीर और एक (सोफिस्ट) दार्शनिक भेजने की प्रार्थना की गई थी इसके उत्तर में एंटियोकस ने अंगूरी शराब और अंजीर सहर्ष भेज दिया था परंतु दार्शनिक भेजने के प्रश्न के उत्तर में उसने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया था कि मेरे देश के कानून के हिसाब से दार्शनिक भेजना विधि सम्मत नहीं है इसलिए मैं दार्शनिक भेजने में असमर्थ हूं। इससे बिन्दुसार कुछ निराश हुआ क्योंकि अब दार्शनिक के ज्ञान से वह वंचित रह जायेगा ,इससे बिन्दुसार की ज्ञान के प्रति रूचि का पता चलता है।

यूनानी इतिहासकार स्ट्रेबो लिखता है कि सीरिया के राजा एण्टियोकस ने डाइमेकस को अपना राजदूत बनाकर बिन्दुसार के दरबार में भेजा था जो मेगस्थनीज़ का उत्तराधिकारी था।

मिस्र के राजा टॉलमी फिलाडेल्फस ने डायोनिसियस नामक व्यक्ति को राजदूत बनाकर बिंदुसार की सभा में भेजा था। प्लिनी ने अपने ग्रन्थ नेचुरल हिस्ट्री में इसका वर्णन किया है परन्तु विद्वानों को संदेह है कि प्लिनी का वर्णन बिन्दुसार के लिए है अथवा किसी और के लिए क्योंकि उसने नाम न लेकर केवल भारतीय नरेश कहा है।

बिंदुसार की मृत्यु 272 ईसा पूर्व में हुई।

बिंदुसार की कई रानियां और उनसे कई पुत्र थे। लंका के पाली साहित्य के अनुसार बिंदुसार की 16 रानियां थी और 100 पुत्र हुए। जिनमें से सबसे बड़ा लड़का सुसीम था तथा शुभद्रांगी से अशोक नामक पुत्र हुआ। यही अशोक बिंदुसार के पश्चात मगध का शासक बना और  प्रियदर्शी सम्राट अशोक के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुआ।

इसे भी देखें:-

मौर्य कालीन सभ्यता संस्कृति

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