बंगाल का पाल वंश

बंगाल का  पाल वंश एक शक्तिशाली राजवंश था। बंगाल में हर्ष के समय में शशांक राजा था। वह एक शक्तिशाली शासक था और उसने अनेक युद्ध लड़े।


शशांक के बाद बंगाल पर हर्षवर्धन का आधिपत्य स्थापित हुआ हर्ष की मृत्यु के पश्चात असम के राजा भास्कर वर्मा ने बंगाल पर अधिकार कर लिया।

भास्कर वर्मा की मृत्यु के पश्चात बंगाल में काफी अव्यवस्था फैल गई इसे गोपाल नामक एक व्यक्ति ने  संगठित किया।
गोपाल दास पाल वंश का संस्थापक था।

खलीमपुर के ताम्र पत्र के अनुसार जनता ने अव्यवस्था से तंग होकर गोपाल को स्वयं अपना राजा चुना।

इतिहास जानने के स्रोत:-

तिब्बती इतिहासकार तारानाथ का विवरण, बु-स्तोन नामक तिब्बती इतिहासकार का विवरण, आर्य मंजुश्री मूल कल्प, संध्याकर नंदी कृत रामपाल चरित्र, बौद्ध ग्रंथ प्रज्ञा परमिता सूत्र, धर्मपाल का खलीलपुर लेख, नारायण पाल का भागलपुर अभिलेख, देवपाल का मुंगेर अभिलेख, वैद्य देव के कमोली अभिलेख आदि प्रमुख हैं।

गोपाल ने 725 ईसवी से 770 ईसवी तक शासन किया उसने धीरे-धीरे बंगाल और मगध पर अधिकार कर लिया। 
गोपाल बौद्ध धर्म का अनुयाई था। तिब्बती इतिहासकार  के अनुसार उसने उदंतपुर में बौद्ध विहार का निर्माण कराया था।

धर्मपाल:-

गोपाल के पश्चात उसका पुत्र धर्मपाल राजा बना।तिब्बती इतिहासकार तारा नाथ के अनुसार उसका राज्य बंगाल की खाड़ी से लेकर दक्षिण में विंध्य पर्वत तक तथा उत्तर में हिमालय से लेकर पश्चिम में पंजाब के जालंधर तक विस्तृत था। पाल वंश के लेखों के अनुसार उसने कन्नौज के राजा इंद्र को हराकर उसके पुत्र चक्रायुध को गद्दी पर बैठाया। 

उत्तर भारत में जब उसका प्रभाव बढ़ा तो उसे युद्ध में फंसना पड़ा जिसमें प्रतिहारों एवं राष्ट्रकूटों से उसका युद्ध हुआ इसमें वह असफल हो गया।

 राष्ट्रकूट शासक ध्रुव धारावर्ष ने गंगा यमुना के दोआब में उसे परास्त किया।

जब ध्रुव वापस लौट गया तो उसने पुनः कन्नौज के साथ मिलकर अपनी शक्ति का विस्तार करना शुरू कर दिया परंतु इसपर राष्ट्रकूट शासक गोविंद तृतीय ने आक्रमण कर दिया और धर्मपाल ने कन्नौज के शासक चक्रायुध को साथ ले जाकर उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया गोविंद तृतीय इससे संतुष्ट हो गया और वापस चला गया।

उसके पश्चात ही  प्रतिहार शासक नागभट्ट ने कन्नौज के चक्रायुध को हराकर कन्नौज पर अपना अधिकार कर लिया।
धर्मपाल को जब पता चला तो उसने इसका बदला लेने के लिए द्वितीय नागभट्ट पर आक्रमण कर दिया परंतु मुंगेर के पास उसे हार खानी पड़ी और अंत में मध्य भारत से उसे हटना पड़ा।
धर्मपाल की मृत्यु 815 ईसवी के लगभग कोई।

धर्मपाल  भी अपनी पिता की भांति बौद्ध धर्म का अनुयाई था उसने गंगा नदी के किनारे भागलपुर में विक्रमशिला नामक बौद्ध विहार का निर्माण कराया जो विद्या का एक प्रमुख केंद्र बना।

धर्मपाल के पश्चात 815 ईसवी में उसका पुत्र देव पाल गद्दी पर बैठा।

देवपाल:-

देव पाल इस वंश का सबसे महान शासक था।उसने हूणों, द्रविणों और गुर्जरों को परास्त किया था।  बादल स्तंभ लेख के अनुसार उसने असम व उड़ीसा को अपने राज्य में मिलाया जिसका श्रेय उसके भाई जयपाल को जाता है।

मुंगेर दान पत्र के अनुसार उसने हिमालय से लेकर सेतुबंध रामेश्वरम तक अपना आधिपत्य स्थापित किया इसमें कुछ अतिशयोक्ति है परंतु इतना निश्चित है कि वह एक बड़े भूभाग का राजा था। उसके संबंध जावा, सुमात्रा, वर्मा आदि राज्यों से थे वह नालंदा और विक्रमशिला महाविहारों को दान देता था।
देव पाल बौद्ध धर्म का अनुयाई था तथा उसने अनेकों  महाविहारों का निर्माण कराया।

855 में उसकी मृत्यु हुई।

देवपाल के पश्चात उसका पुत्र नारायण पाल गद्दी पर बैठा। उसकी माता का नाम लज्जा था जो चेदि राज कोक्कल प्रथम की पुत्री थी। वह शैव धर्म का अनुयाई था।

भागलपुर दान पत्र के अनुसार उसने हजारों मंदिरों का निर्माण कराया।
उसका समय उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था प्रतिहार शासक महेंद्र पाल ने इस पर आक्रमण करके मगध उत्तरी बंगाल पर अधिकार कर लिया अंत में उसने प्रतिहारों से अपना राज्य वापस ले लिया।

नारायण पाल की मृत्यु 912 ईसवी के आसपास हुई।

नारायण पाल के पश्चात का पुत्र राज्यपाल गद्दी पर बैठा। उस पर राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय ने आक्रमण किया।

राजपाल की मृत्यु 950 ईसवी के आसपास हुई।

राज्यपाल के पश्चात गोपाल द्वितीय उसके पश्चात विग्रह पाल द्वितीय और फिर महीपाल प्रथम राजा बना।

महीपाल प्रथम:-

महिपाल के समय में पाल शक्ति का उत्थान हुआ और उसने कई प्रदेशों को जीता।

बानगढ़ लेख के अनुसार महीपाल ने अनाधिकृत व्यक्तियों को राज्य से बाहर निकाल दिया।

उसने किरात जाति और कंबोज जाति की सत्ता को नष्ट कर दिया।

महीपाल के समय में 1023 ईसवी में कांची के राजेंद्र चोल ने बंगाल और बिहार पर आक्रमण कर दिया इसमें महिपाल पराजित हुआ परंतु कुछ समय बाद ही उसने उन प्रदेशों पर पुनः अधिकार स्थापित कर लिया।

महिपाल के राज्य पर चेदि नरेश गांगेयदेव ने आक्रमण करके उसके पश्चिमोत्तर भागों पर अधिकार कर लिया  परंतु इसके बाद भी उसका राज्य काफी बड़ा था।

उसके राज्य के विस्तार का पता मुजफ्फरपुर, पटना,गया आदि स्थानों से प्राप्त लेखों से चलता है।

महिपाल बौद्ध धर्म का अनुयाई था उसने सारनाथ में अनेक चैत्य बनवाए इसके अतिरिक्त धर्मचक्र प्रवर्तन स्थल की मरम्मत कराई धर्मराजिका स्तूप और मूलगंध कुटी का निर्माण कराया।

 महिपाल के पश्चात नयनपाल गद्दी पर बैठा उसका युद्ध चेदि राज लक्ष्मी कर्ण के साथ 12 वर्षों तक चला। अन्त में महाबोधि विहार के भिक्षु दीपंकर श्रीज्ञान ने उनमें संधि कराई। नयनपाल के पुत्र विग्रहपाल का विवाह लक्ष्मी कर्ण की पुत्री योवन श्री से  हुआ।

जब विग्रह पाल राजा बना तब उसके राज्य पर चालुक्य शासक विक्रमादित्य षष्टम ने आक्रमण किया इसके अलावा उसके पुत्रों में उत्तराधिकार का युद्ध हुआ इन बाहरी और आंतरिक अशांति के कारण उसका राज्य कमजोर होता चला गया।
पूर्वी बंगाल पर वर्मन राजाओं का अधिकार हो गया और उत्तरी बंगाल पर कैवर्त शासक दिव्य लोक ने अधिकार कर लिया। 
विग्रह पाल विद्वानों का आश्रयदाता था उसके राजकवि संध्याकर नंदी ने रामचरित नामक ग्रंथ की रचना की।

विग्रह पाल के पश्चात उसका पुत्र रामपाल पाल वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक हुआ। उसने अपने राज्य की आंतरिक अशांति को कम किया और अपने सामंतों को दबा कर रखा । अपने मामा राष्ट्रकूट शासक मथन की सहायता से कैवर्त शासक दिव्यलोक के पुत्र भीम को मार दिया और उससे उत्तरी बंगाल वापस ले लिया। उसने कलिंग और कामरूप पर भी आक्रमण किया था परंतु उसके पश्चात धीरे धीरे पाल शक्ति का ह्रास होता गया।

पाल वंश का अंतिम शासक इंद्रद्युम्न पाल था उसके राज्य पर तेरहवीं सदी में तुर्कों ने आक्रमण करके उसे समाप्त कर दिया।
पाल शासकों के समय में बंगाल भारतीय राजनीति का एक प्रमुख केन्द्र था।पाल शासकों ने अपनी शक्ति से भारतीय राजनीति को प्रभावित किया।

अधिकांश पाल शासक बौद्ध धर्म के अनुयाई थे उन्होंने अनेक बौद्ध विहार और मूर्तियों का निर्माण कराया परंतु वे धार्मिक रूप से सहिष्णु थे। उन्होंने मंदिरों को भी बनवाया और ब्राह्मणों को भी दान दिया।

इन्हें भी देखें:-
गुर्जर प्रतिहार वंश

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