पांड्य वंश
पांड्य वंश के राज्य की स्थापना ताम्रपर्णी नदी के किनारे स्थित कोरकै में हुई थी। कोरकै आधुनिक तिन्नेवेल्ली जिले में स्थित था। पांड्य राज्य की राजधानी मदुरा थी।
इनका इतिहास वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है।इतिहासकार डॉ नीलकंठ शास्त्री ने अपनी पुस्तक दि पांड्ययन किंगडम में लिखा है, पांड्य अनुश्रुति के अनुसार यह वंश पांडवों से उत्पन्न हुआ था।
पांड्य वंश के प्रारंभिक इतिहास के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है। परंतु बाद के समय में पाणिनि के अष्टाध्याई पर कात्यायन के भाष्य में इसका वर्णन मिलता है।
इतिहास जानने के स्रोत:-
वाल्मीकि रामायण, पाणिनि अष्टाध्याई पर कात्यायन का भाष्य, बौद्ध ग्रंथ महावंश, अर्थशास्त्र, मेगस्थनीज का वर्णन, कलिंग राजा खारवेल का हाथी गुम्फा अभिलेख, यूनानी लेखक स्ट्रेबो का विवरण, टाल्मी की ज्योग्राफी, संगम साहित्य में सिलप्पदिकारम आदि प्रमुख हैं।
पांड्य वंश का विकास:-
पांड्य वंश अत्यंत प्राचीन है परंतु इसका प्रारंभिक इतिहास अंधकार पूर्ण है।उस समय के ग्रंथ में इसका कहीं- कहीं वर्णन मिलता है। जैसे – अर्थशास्त्र ग्रंथ में पांड्यकावट में मिलने वाले मोती का उल्लेख है। इसके अलावा मेगस्थनीज के अनुसार पांड्य राज्य में स्त्रियों का शासन है यहां 6 वर्ष की अवस्था में ही बच्चे पैदा हो जाते हैं। उसके अनुसार पांड्य राज्य का नाम हेराक्लीज की पुत्री पांड्याइना के नाम पर पड़ा उसके पिता ने इस राज्य को उसे दे दिया था। यह जानकारी मेगस्थनीज को उस समय में प्रचलित बातों के आधार पर मिली होगी।
ईसवी संवत के बाद इस वंश के इतिहास पर प्रकाश पड़ने लगता है।
नेडूम चेलियम नामक शक्तिशाली पांड्य राजा ने अपने शत्रुओं को तलैयानगानाम (तंजोर) नामक स्थान पर हराकर अपने राज्य का विस्तार किया। परंतु बाद में पड़ोसी राज्यों आंध्र और पल्लव से संघर्ष के कारण पांड्यों की शक्ति कमजोर पड़ गई।
छठी सदी में पांड्य राज्य पर कलभ्रों ने अधिकार कर लिया था जिन्हें कंडुग्गोंन या उसके पुत्र मारवर्मन अवनिशूलामणी ने पराजित करके मार भगाया।
पांड्य वंश का पुनः उत्कर्ष:-
पांड्य राज्य का पुनः उत्कर्ष सातवीं सदी में प्रारंभ हुआ इस समय अरिकेशरी मारवर्मन नामक शक्तिशाली राजा हुआ उसने और उसके बाद के उत्तराधिकारियों ने चोल और आसपास के राज्यों को हराकर अपना राज्य विस्तार किया।
उसके उत्तराधिकारी मार वर्मन प्रथम और नेडुनजडयन वारगण प्रथम ने पल्लव शासक नंदिवर्धन पल्लवमल्ल के साथ युद्ध किया और उसने केंगुदेश( कोयंबटूर) तथा वेनाडु (ट्रावनकोर) को अपने राज्य में मिला लिया।
उसके पुत्र श्रीमार श्रीवल्लभ ने सिंघल के राजा को हराया। उसने 815-863 ईसवी तक राज्य किया।उसने पल्लव, चोल और गंग राजाओं के संघ को पराजित किया।
अंतिम शक्तिशाली पल्लव राजा अपराजितवर्मन ने 880 ईसवी में श्रीपुरंबीयम के युद्ध में पांड्य राजा द्वितीय वरगुण को पराजित कर दिया।
चोल राजा परांतक प्रथम ने मारवर्मन राजसिंह द्वितीय को पराजित कर मदुरा पर अधिकार कर लिया।
पांड्यों का पड़ोसियों से लगातार संघर्ष होता रहा।
नवीं सदी के अंत में चोलों की सहायता करके उन्होंने पल्लवो का पतन करा दिया परंतु इसका दुष्परिणाम यह निकला कि उन्हें लगभग ढाई सौ वर्षों तक चोल राजाओं की अधीनता में रहना पड़ा। राजेंद्र चोल के समय में उन्होंने विद्रोह किया जिस कारण राजेंद्र चोल ने पांड्य राज्य को जीतकर अपने पुत्र को वहां का प्रांतपति नियुक्त कर दिया।
12 वीं सदी में पांड्यों का शक्तिशाली शासक जटावर्मन कुलशेखर हुआ उसका प्रभाव दक्षिण भारत में स्थापित हुआ। कुछ विद्वानों के अनुसार इस समय पांड्य राज्य पर अन्य 5 राजाओं ने राज्य किया।
सुंदर पांड्य प्रथम:-
जटावर्मन का पुत्र सुंदर पांड्य प्रथम हुआ जिसने 1216 से 1238 हुए तक राज्य किया। वह एक शक्तिशाली शासक था। उसने चोलों से उरगपुर और तंजौर छीन लिया तथा उन्हें अपने आधिपत्य में ले लिया इस समय तक उसका द्वार समुद्र के होयसलों से संघर्ष होता रहा ।
उसका पुत्र मारवर्मन सुंदर पांड्य द्वितीय हुआ। उसका भी लगातार अपने पड़ोसियों से संघर्ष होता रहा।
जटावर्मन सुंदर पांड्य:-
सुंदर पांड्य द्वितीय का पुत्र जटावर्मन सुंदर पांड्य हुआ। वह एक शक्तिशाली शासक था उसने पल्लव, वारंगल, होयसल आदि राज्यों को पराजित किया।उसने चोल शासन का अंत कर दिया और कांची पर अपना अधिकार कर लिया। इसके अलावा उसने चेर राज्य तथा लंका को भी अपने अधीन किया।
अपनी विजयों के उपलक्ष में उसने यज्ञ किया एवं महाराजाधिराज श्री परमेश्वर की उपाधि धारण की। अनेकों मंदिरों का निर्माण कराया।
मारवर्मन कुल शेखर:-
जटावर्मन सुंदर पांड्य का पुत्र मारवर्मन कुल शेखर हुआ जिसने मलयनाडु (त्रावणकोर) और सिंघल पर विजय प्राप्त की। उसके समय में 1293 ईसवी में इटली का निवासी नामक यात्री भारत आया था। उसने पांड्य राज्य की समृद्धि का वर्णन किया है।
कुलशेखर के अंत समय में उसके पुत्रों वीर पांड्य और सुंदर पांड्य में सिंहासन के लिए संघर्ष हुआ इसमें कुलशेखर को भी मार दिया गया इस कारण उनका संघर्ष तेज हो गया।
इसी परिस्थिति में 1310 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने पांड्य राज्य पर आक्रमण किया। कहा जाता है कि सुंदर पांड्य ने सिंहासन प्राप्त करने के लिए उससे सहायता भी मांगी थी।कुछ विद्वान इससे असहमति व्यक्त करते हैं।
मलिक काफूर ने पांड्य राज्य के प्रमुख स्थान वीर धूलि पर आक्रमण किया जहां वीर पांड्य के बीस हजार मुसलमान सैनिक उससे मिल गए। उसके बाद काफूर ने बरमतपती(चिदंबरम) पर आक्रमण करके लिंग महादेव के सोने के मंदिर को लूटा। काफूर ने मदुरा पर भी आक्रमण किया।
मलिक काफ़ूर ने पांड्य राज्य का बहुत नुकसान किया अनेक मंदिरों को नष्ट किया,काफी मात्रा में जनसंहार किया परंतु वीर पांड्य ने उसके आधिपत्य को स्वीकार नहीं किया।
आंतरिक फूट और बाह्य आक्रमण से पांड्य राज्य दुर्बल हो गया उसके अधीनस्थ राजा स्वतंत्र हो गए।
पांड्य राजा धीरे धीरे सामंत की स्थिति में आ गए।
इन्हें भी देखें:-