चालुक्य वंश (सोलंकी वंश)
चालुक्य वंश का उदय 10 वीं सदी ईस्वी में गुजरात में हुआ जिसे सोलंकी वंश भी कहा जाता है। यह वह स्थान था जिसे प्राप्त करने के लिए उत्तर और दक्षिण के राजाओं में युद्ध होते रहते थे।
छठवीं सदी में यहां का राजा ध्रुव सेन था जोकि पुलकेशिन द्वितीय के प्रभाव में था परंतु बाद में हर्षवर्धन ने उसे अपने अधिकार में कर लिया।
इन शक्तियों के ह्रास के बाद ये गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रभाव में आ गए।
मूलराज:-
चालुक्य वंश का पहला राजा मूलराज था जो अपने मामा को मारकर 941ईसवी के आस पास राजा बना।
उसने गुजरात के कुछ भागों को अपने अधिकार में किया कच्छ के राजा लक्ष्यराज जिसे लाखा भी कहा जाता था को हराकर मार डाला तथा सुराष्ट्र के कुछ प्रांतों पर भी अधिकार कर लिया। फिर उसने शाकंभरी के चाहमान राजा के साथ भी युद्ध किया।
मूलराज की मृत्यु 994 ईसवी में हुई वह शैव धर्म का अनुयाई था।
चालुक्य वंश का राजा भीम प्रथम:-
मूलराज के पश्चात भीम प्रथम चालुक्य वंश का प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण राजा हुआ जो 1021 ईस्वी में सिंहासन पर बैठा उसके समय की महत्वपूर्ण घटना महमूद गजनवी का सुराष्ट्र पर आक्रमण था।
महमूद गजनवी सोमनाथ मंदिर की प्रशंसा सुनकर उसे तोड़ने और वहां रखी अतुल संपत्ति के लालच में उसे लूटने आया था। वह अपनी सेना लेकर अन्हिलवाड़ा पहुंचा।
भीम उससे भयभीत होकर भाग खड़ा हुआ। अब महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को लूटा, मूर्तियों को तोड़ दिया , हजारों ब्राह्मणों व पुजारियों का वध कर दिया , मुख्य मूर्ति को गजनी ले गया और मस्जिद के दरवाजे की सीढ़ियों पर उन मूर्तियों के टुकड़ों को लगाया जिससे नमाज पढ़ने वाले उन पर पैर रखकर जा सके।
गजनवी के चले जाने पर भीम वापस आया और पुनः राज्य करने लगा। उसने अपनी शक्ति का विस्तार किया तथा सबसे पहले आबू के परमार राजा को हराया।
परमार राज्य के विरुद्ध संघ बनाना:-
जब वह सिंध पर आक्रमण करने के लिए गया हुआ था उसी समय परमार राजा भोज के सेनापति कुल चंद्र ने उसकी राजधानी अन्हिलवाड़ा को लूटा जिसका बदला लेने के लिए भीम ने कलचुरी शासक लक्ष्मीकर्ण से मित्रता करके एक संघ बनाकर मालवा पर आक्रमण कर दिया इसी समय राजा भोज की मृत्यु हो गई।भीम प्रथम ने मालवा को नष्ट कर दिया गया, परंतु भोजराज के पुत्र जयसिंह ने पुनः मालवा को स्वतंत्र करा लिया।
भीम और लक्ष्मी कर्ण ने मिलकर मालवा पर आक्रमण किया था परंतु लक्ष्मी कर्ण ने संधि की उपेक्षा करके मालवा के अधिकांश भाग पर अधिकार कर लिया इस कारण भीम के साथ उसका संघर्ष प्रारंभ हो गया जिससे लक्ष्मी कर्ण पराजित हुआ और उसने काफी धन हाथी, घोड़े देकर भीम से संधि की।
भीम प्रथम ने 1063 ईसवी तक राज्य किया उसके पश्चात उसका पुत्र कर्ण राजा हुआ जिसके समय में परमार राजा उदयादित्य ने सौराष्ट्र पर आक्रमण किया।
कर्ण एक लोक हितैषी शासक था उसने अनेक मंदिर तालाब और नगर बसाये।
जयसिंह:-
कर्ण का उत्तराधिकारी जयसिंह हुआ जो सिंधु राज कहलाया वह एक विजेता शासक था प्रारंभ में उसकी माता नियणल्ल देवी ने उसका संरक्षण किया जब वह बड़ा हुआ तो उसने नाडोल के चाहमान राजा को हराया। सौराष्ट्र के सामंत चूडासम को हरा दिया फिर वह मालवा की ओर बढ़ा जहां के राजा नरवर्मन और यशोवर्मन को एक लंबे संघर्ष के बाद पराजित किया।
पूर्वोत्तर में चंदेल राजा मदन वर्मा ने उसे आगे नहीं बढ़ने दिया।
कुछ विद्वानों के अनुसार उसने अरबों को भी हराया था।
जय सिंह शैव धर्म का अनुयाई था परंतु धार्मिक रूप से सहिष्णु था उसकी सभा में प्रसिद्ध जैन विद्वान हेमचंद्र सूरी रहते थे वह विद्वानों का आदर करता था तथा विद्या, कला एवं वीरता का संरक्षक था।
1144 ईसवी में उसकी मृत्यु हुई।
कुमारपाल:-
चालुक्य वंश के राजा जयसिंह का उत्तराधिकारी कुमारपाल हुआ उसने 1144 से 1171 ईसवी तक राज्य किया।
उसने बड़नगर के चौहान राजा अर्णोराज को परास्त किया था।
उसके समय में आबू के परमारों ने विद्रोह किया था परंतु उसने उन्हें दबा दिया।
उसने कोंकण के राजा मल्लिकार्जुन को हराया।
कुमारपाल विद्या व कला का आश्रय दाता था।
उसके राज कवि हेमचंद्र सूरी ने धर्म, दर्शन और व्याकरण पर अनेक ग्रंथ लिखे।
कुमारपाल ने सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
वह शैव धर्म का अनुयाई था यद्यपि जैन ग्रंथों में उसे जैन बताया गया है उसने अपने राज्य में जीव हिंसा को निषिद्ध घोषित कर दिया था।
चालुक्य वंश का पतन:-
चालुक्य वंश के राजा कुमारपाल के पश्चात कोई भी राजा इतना शक्तिशाली ना हो सका फिर भी भोला भीम ने कुछ समय तक राज्य की स्थिति को सुदृढ़ रखा।
उन पर अब लगातार तुर्कों के आक्रमण प्रारंभ हो गए थे ।1178 ईस्वी में गोर के तुर्कों ने गुजरात पर आक्रमण किया परंतु वे पराजित हुए। यद्यपि चालुक्य लेख में तुर्कों के साथ युद्ध भोला भीम के बड़े भाई मूलराज ने किया था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने भी 1197 समय में यहां आक्रमण किया था परंतु विशेष सफलता नहीं प्राप्त कर सका। अब इन पर मालवा और देवगिरी राज्य के लगातार आक्रमण होने लगे और उन्होंने इसकी शक्ति को और कमजोर कर दिया।
बाद में यहां का राजा लक्ष्मण प्रसाद हुआ।
जब अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली पर अधिकार किया तो उसके सेनापति उलुग खान ने वहां पर आक्रमण करके हिन्दू राज्य का अंत कर दिया।