गुर्जर प्रतिहार वंश

प्रतिहार का अर्थ होता है ड्योढीं धर, द्वार पालक,द्वार की सुरक्षा करने वाला।
गुर्जर प्रतिहार वंश के क्षत्रिय अपने आप को भगवान श्री राम के भाई लक्ष्मण का वंशज मानते थे।

इसका गुर्जर शब्द स्थान सूचक है, जिसका अर्थ होता है इनकी उत्पत्ति गुर्जरत्रा प्रदेश में हुई थी। गुर्जरत्रा प्रदेश गुजरात और दक्षिण पश्चिम राजस्थान से मिलकर बना था।

गुर्जर प्रतिहार वंश का परिचय:-

कुछ विद्वानों ने मत दिया है कि प्रतिहार शासक मूलतया विदेशी थे। यह मध्य एशिया के गुर्जरों की एक शाखा थी जोकि गुप्त वंश के कमजोर होने के पश्चात हूणों के साथ भारत आए थे। 

इसके लिए वे चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो का उल्लेख करते हैं। जिसमें राजपूतों को अग्निकुंड से उत्पन्न होना बताया गया है। इसमें बताया गया है कि प्राचीन काल में यज्ञ के द्वारा विदेशियों को भारतीय धर्म में सम्मिलित कर लिया जाता था।

ये राजपूत वंशों की शाखा से थे।

अरबी लेखक अबू जैद ने जुज़्र शब्द का उल्लेख किया है जिसे कुछ विद्वानों ने गुर्जर से जोड़ दिया।

विद्वानों ने इस संबंध में यह तर्क दिया है कि गुर्जर शब्द स्थान वाचक है ना कि जाति सूचक। ये लोग गुर्जरत्रा प्रदेश के निवासी होने के कारण गुर्जर कहलाए। इसके अलावा कवि राजशेखर ने इन्हें रघुकुल तिलक कहा है।

गुर्जर प्रतिहार वंश के स्वयं के लेख ग्वालियर की भोज प्रशस्ति के अनुसार इनकी उत्पत्ति श्री राम के भाई लक्ष्मण के वंश में हुई थी।इनके विदेशी होने के कहीं प्रमाण नहीं मिले हैं।

प्रतिहार वंश का इतिहास जानने के स्रोत:-

नागभट्ट की ग्वालियर प्रशस्ति,भोज का बराह व ग्वालियर लेख, जिनसेन कृत जैन हरिवंश, राजशेखर कृत विद्घसाल भंजिका,अलबरूनी के विवरण आदि।

इसके प्रारंभिक राजा प्रथम नागभटृ का पता चलता है।ग्वालियर प्रशस्ति के अनुसार उसने म्लेच्छ राज की लंबी सेनाओं को परास्त किया था। ये सिंध के अरब आक्रांता थे।इसके बाद काकुस्थ और देवराज राजा हुए। प्रतिहार वंश का शक्तिशाली शासक नागभटृ द्वितीय हुआ।

नागभटृ द्वितीय:-

वह 805 ईसवी में सिंहासन पर बैठा।उसने अपनी शक्ति को बढ़ाने का प्रयास किया परंतु गोविंद तृतीय से पराजित हो गया।परंतु उसने हिम्मत नहीं हारी गोविंद तृतीय के वापस जाने के बाद बंगाल के राजा धर्मपाल को मुंगेर के पास हराकर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।नागभटृ ने  कान्यकुब्ज को अपनी राजधानी बनाया।

भोज की ग्वालियर प्रशस्ति के अनुसार उसने मत्स्य, मालवा, किरात (हिमालय क्षेत्र), तुरुष्प (सिंध – जिसपर अरबों का शासन था), आनर्त (उत्तरी गुजरात),वत्स(कौशांबी) को विजित किया था।

नागभटृ द्वितीय की मृत्यु 833 ईसवी में हुई। उसके पश्चात रामभद्र शासक बना वह दुर्बल शासक था। उसके समय में प्रांतीय शासकों ने स्वतंत्र होना प्रारंभ कर दिया रामभद्र के पश्चात मिहिरभोज सिंहासन पर बैठा।

मिहिरभोज:-

मिहिरभोज 836 ईसवी में सिंहासन पर बैठा।वह एक शक्तिशाली शासक था उसने अपने राज्य का विस्तार पूर्वी पंजाब तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी व दक्षिण पश्चिम में सौराष्ट्र प्रांत तक किया।

पूर्व में बंगाल का राजा देवपाल शक्तिशाली था इसलिए वह पूर्व की ओर नहीं बढ़ सका।

अरबी यात्री सुलेमान भोज के साम्राज्य का वर्णन करता है। वह उसके शासन व्यवस्था, व्यापार आदि की उन्नत अवस्था का वर्णन करता है। सुलेमान भोज को मुसलमानों का शत्रु कहता है।मिहिरभोज की मृत्यु 885 ईस्वी में हुई।

महेंद्र पाल:-

मिहिर भोज की मृत्यु के पश्चात 885 ईसवी में महेंद्र पाल सिंहासन पर बैठा वह एक शक्तिशाली शासक था। उसने पाल शासकों से उत्तरी बंगाल को छीन लिया था।

शंकर वर्मन के आक्रमण से उसे पश्चिमोत्तर के कुछ भाग खोने भी पड़े।जूनागढ़ के दो लेखों से ज्ञात होता है कि सौराष्ट्र में उसके दो अधीनस्थ सामंत बलवर्मन और अवन्तिवर्मन शासन करते थे।

महेंद्र पाल के दरबार में प्रसिद्ध कवि राजशेखर को आश्रय प्राप्त था। उन्होंने कर्पूर मंजरी, काव्यमीमांसा, बाल भारत और बाल रामायण की रचना की।

महेंद्रपाल की मृत्यु 910 ईसवी में हुई।

महीपाल (912-944 ईसवी):-

महेंद्र पाल की मृत्यु के पश्चात महिपाल सिंहासन पर बैठा। महिपाल को सिंहासन पर बैठने के लिए उत्तराधिकार का युद्ध करना पड़ा।

सबसे पहले महेंद्रपाल के एक लड़के भोज द्वितीय ने चेदि नरेश कोक्कल्लदेव  की सहायता से  सिंहासन प्राप्त कर लिया, परंतु महिपाल ने चंदेल राजा हर्ष देव की सहायता से भोज द्वितीय को गद्दी से उतार दिया और खुद शासक बना। इसलिए उसका राज्याभिषेक 910 ईसवी में ना होकर 912 ईसवी में हुआ।

गद्दी पर बैठने के पश्चात महीपाल को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसके समय में राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय विजय अभियान करता हुआ उत्तर भारत आया और कन्नौज को नष्ट कर दिया । उसने प्रयाग तक यह यात्रा की।

गोविंद चतुर्थ के लेखों से इसकी जानकारी प्राप्त होती है।

उसकी इस कठिनाई का लाभ पाल नरेश ने उठाया। पाल नरेश ने आक्रमण करके सोन नदी तक के क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।

इंद्र तृतीय के वापस लौट जाने के पश्चात महीपाल स्वतंत्र हुआ।

कवि राज शेखर के अनुसार उसने सम्पूर्ण आर्यावर्त पर अपना अधिकार कर लिया। उसने कलिंग, केरल, कुंतल आदि क्षेत्रों को भी विजित किया।

द्वितीय महेंद्र पाल:-

महिपाल के पश्चात द्वितीय महेंद्र पाल गद्दी पर बैठा उसने साम्राज्य के बड़े भाग को सुरक्षित रखने में सफलता पाई।

उसके पश्चात देव पाल शासक बना वह दुर्बल शासक था। देव पाल के समय में बुंदेलखंड का चंदेल राजा यशोवर्मन स्वतंत्र हो गया। यशोवर्मन ने देवपाल से भगवान विष्णु की एक मूर्ति बलपूर्वक लेकर खजुराहो के एक मंदिर में स्थापित कर दिया।

देवपाल के पश्चात विजयपाल गद्दी पर बैठा। उसके समय में कई अधीनस्थ सामंत स्वतंत्र हो गए जिनमें चेदि, मालवा के परमार,शाकंभरी के चाह्वान, मेवाड़ के गुहिल,ग्वालियर प्रमुख हैं।

राज्यपाल:-

प्रतिहार शासक राज्यपाल के समय में महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया था। हिंदू शाही राजा जयपाल की सहायता के लिए राज्यपाल ने अपनी सेना भेजी थी परंतु वह पराजित हुई।

1018 ईसवी में महमूद गजनवी ने कान्यकुब्ज पर आक्रमण कर दिया। राज्यपाल बिना लड़े ही भाग खड़ा हुआ अंत में उसने महमूद गजनवी की अधीनता स्वीकार कर ली। इससे क्रुद्ध होकर चंदेल राजा गंड ने अपने पुत्र विद्याधर को कन्नौज कर आक्रमण करने के लिए भेजा।

विद्याधर ने राज्यपाल को मार दिया और उसके पुत्र त्रिलोचन पाल को गद्दी पर बैठाया। महमूद गजनवी ने यह समाचार सुना तो अपनी सेना लेकर कन्नौज पहुंचा। त्रिलोचन पाल भाग खड़ा हुआ। 

गुर्जर प्रतिहार वंश का अंतिम शासक यशपाल 1036 ईसवी तक था। इसके बाद प्रतिहार राजाओं का कोई वर्णन नहीं मिलता।

इसे देख सकते हैं –

प्रतिहार राजवंश (विकिपीडिया)

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