कामरूप
कामरूप प्राचीन काल से ही विद्दमान है। वर्तमान असम का राज्य प्राचीन काल में कामरूप के नाम से जाना जाता था। जिसकी राजधानी प्राग ज्योतिष्पुर थी।
वर्तमान काल में कामरूप असम का एक जिला है जो गौहाटी के पहले पड़ता है।
कामरूप में एक सुदृढ़ वंश की स्थापना नरक नामक राजा ने प्राचीन काल में की थी।
इस वंश के शासक भगदत्त ने महाभारत युद्ध में कौरवों की तरफ भाग लिया था।
निधानपुर लेख में इस वंश की जानकारी मिलती है।
इतिहास जानने के स्रोत:-
हर्ष चरित,आर्यमंजुश्री मूलकल्प,काव्य मीमांसा,वृहत्संहिता, संध्याकर नंदी कृत रामपाल चरित, श्वान चांग का यात्रा विवरण, अहोम शासकों द्वारा लिखित बुरंजियां (वंशावली), मिन्हाजुद्दिन का तबकाते नासिरी, पुरातात्विक साक्ष्यों में भास्कर वर्मा का निधानपुर लेख, नालंदा मुद्रा लेख, रत्नमाल का बड़गांव अभिलेख, बलवर्मन का नौगांव अभिलेख आदि प्रमुख हैं।
भास्कर वर्मन:-
सम्राट हर्षवर्धन के समय वहां का राजा भास्कर वर्मन था जिसने गौड़ नरेश शशांक के आतंक से सुरक्षा पाने के लिए हर्षवर्धन की मैत्री व अधीनता स्वीकार किया था।
सम्राट हर्षवर्धन ने गौड़ नरेश शशांक को परास्त करके भगा दिया था। हर्ष की मृत्यु के पश्चात भास्कर वर्मन ने गौड़ पर अपना अधिकार कर लिया।
निधानपुर अभिलेख के अनुसार भास्कर वर्मन ने अनेक राज्यों को विजित किया था और उसकी राजधानी कर्ण सुवर्ण थी जहां उसने दान दिए।
भास्कर वर्मन के कुछ समय के बाद कामरूप में एक दूसरे राजवंश की स्थापना हुई जिसका संस्थापक शालस्तंभ नामक व्यक्ति था। इस वंश का एक महत्वपूर्ण शासक श्रीहर्ष नामक व्यक्ति था जिसने गौड़, कौशल और कलिंग आदि पर अधिकार स्थापित कर लिया था।
रत्नपाल शक्तिमान:-
नवीं शदी में इसमें तीसरे राजवंश की स्थापना हुई इस वंश का महत्वपूर्ण शासक रत्नपाल शक्तिमान था जो ब्रह्मपाल का पुत्र था। उसने अपने पड़ोसी राज्यों को परास्त किया इसके अतिरिक्त उसने वाहीक प्रदेश,चालुक्य, गुर्जर और ताइक(ताजिक या तुर्क) को परास्त किया व आतंकित रखा।
बंगाल का पड़ोसी होने के कारण असम का बंगाल के शासकों के साथ लगातार संघर्ष चलता रहता था।
नवीं सदी में पाल शासक देव पाल ने असम पर आक्रमण किया था।
उसके पश्चात 12 वीं सदी में पाल शासक कुमार पाल ने असम पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया तथा उसने अपने मंत्री वैद्य देव को वहां का राजा बनाया।
भारत में मुस्लिम सत्ता के आ जाने के पश्चात भी असम स्वतंत्र रहा।
1205 ईसवी में मोहम्मद बिन बख्तियार ने तिब्बत पर आक्रमण किया तो असम वासियों ने उसपर पीछे से हमला कर दिया जिससे उसकी सेना तितर-बितर हो कर पूरी तरह नष्ट हो गई।
1228 से 30 के आसपास असम पर अहोम नामक शान वंशी जाति का आधिपत्य स्थापित हो गया जो लगभग 1250 ईसवी तक रहा उनके नाम पर ही इस राज्य का नाम असम पड़ा।
असम मुख्यतया वैदिक धर्म प्रधान राज्य रहा है। यहां पर बौद्ध या अन्य धर्मों का कोई विशेष प्रभाव नहीं हुआ। चीनी यात्री ह्वेनसांग जिसने असम की यात्रा की थी ने यहां पर कोई भी बौद्ध विहार नहीं देखा।
यहां पर शाक्त धर्म का प्रभाव था जिसके प्रमुख स्थान गुवाहाटी में कामाख्या माता का मंदिर है।इसके अतिरिक्त यहां वाममार्गी संप्रदाय और तंत्र -मंत्र जादू टोना का भी प्रभाव था।
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