कल्याणी के चालुक्य
कल्याणी के चालुक्य वंश का संस्थापक तैलप द्वितीय था वह प्रारंभ में राष्ट्रकूटो का सामंत था।
बाद में आगे चलकर उसके वंशजों ने कल्याणी को अपनी राजधानी बनाया और यह कल्याणी के चालुक्य कहलाए।
इतिहास जानने के स्रोत:-
विल्हण कृत विक्रमांकदेव चरित्र, विद्या माधव कृत पार्वती रुक्मिणीयम, सोमेश्वर कृत मानसोल्लास,तैलप द्वितीय का सोगल अभिलेख, सत्याश्रय का दोत्तुर अभिलेख, सोमेश्वर तृतीय का शिकारपुर लेख आदि प्रमुख हैं।
तैलप द्वितीय:-
तैलप एक विजेता शासक था। उसके समय मे राष्ट्रकूट शक्ति कमजोर हो गई थी और उसने राष्ट्रकूटों के अवशेष पर एक साम्राज्य की स्थापना की। तैलप ने गुजरात पर भी आक्रमण किया परंतु इसमें उसका सेनापति बारप्पा मारा गया और मूलराज के विरुद्ध उसका अभियान सफल ना हो सका।
फिर उसने आक्रमण करके कुंतल (दक्षिणी महाराष्ट्र) पर भी अपना अधिकार कर लिया।
उसने अनेक राजाओं को भी परास्त किया।
उसका मालवा के परमार राजा वाकपति मुंज के साथ लंबा संघर्ष हुआ। लंबी लड़ाई में उसने वाक्पति मुंंज को परास्त करके बंदी बना लिया और जब उसने भागने का षड्यंत्र किया तो उसे मार दिया गया।
इस प्रकार 24 वर्षों तक शासन करने के पश्चात तैलप 997 ईसवी में मृत्यु को प्राप्त हुआ।
सत्याश्रय:-
तैलप के पश्चात उसका पुत्र सत्याश्रय शासक बना उसका चोल राजा राज राज से युद्ध हुआ।
पंचम विक्रमादित्य:-
सत्याश्रय के पश्चात उसका भतीजा पंचम विक्रमादित्य सिंहासन पर बैठा है। जिस पर परमार राजा भोज ने अपने चाचा वाकपति मुंज की मृत्यु का बदला लेने के लिए आक्रमण किया और उसे परास्त कर दिया।
जयसिंह द्वितीय:-
पंचम विक्रमादित्य के उत्तराधिकारी जयसिंह द्वितीय ने राजा भोज के द्वारा बनाए गए संघ को नष्ट कर दिया और अपने राज्य को प्राप्त कर लिया।
मिराज दान पत्र के अनुसार उसने कोंकण को जीतकर कोल्हापुर में अपने सैनिक पड़ाव डाला तथा चोल और चेर राजाओं को भी परास्त किया।
सोमेश्वर आहवमल्ल:-
जय सिंह के पश्चात उसका पुत्र सोमेश्वर आहवमल्ल सिंहासन पर बैठा वह अपने पिता के समान ही शक्तिशाली शासक था।
येवुर दान पत्र में उसकी विजयों का वर्णन है।
सोमेश्वर ने मालवा के शासक भोज परमार पर आक्रमण करके से उसे परास्त किया और उसे राजधानी धारा को छोड़कर भागने पर विवश कर दिया।
कोट्टयम के युद्ध में उसने चोल राजा राजाधिराज पर आक्रमण करके उसे मार दिया और उसकी राजधानी कांची पर भी आक्रमण किया।
जब परमार राजा भोज पर उसके शत्रुओं ने संघ बनाकर आक्रमण किया और उसे मार दिया तो भोज के पुत्र जयसिंह ने सोमेश्वर से सहायता मांगी और सोमेश्वर ने अपने पुत्र विक्रमादित्य को विशाल सेना के साथ भेजा।
विक्रमादित्य ने चालुक्य भीम और कर्ण को परास्त करके जयसिंह को गद्दी पर बिठाया इसके पश्चात उसने विजय अभियान किया और मिथिला से लेकर गौड़ तक सफल आक्रमण किया परंतु कामरूप में उसे असफलता मिली।
1068 ईसवी में सोमेश्वर ज्वर से पीड़ित हुआ और अंत में तुंगभद्रा नदी में उसने जल समाधि ले ली।
द्वितीय सोमेश्वर:-
विक्रमांक देव चरित के अनुसार सोमेश्वर के पश्चात उसका पुत्र द्वितीय सोमेश्वर गद्दी पर बैठा।
वह एक अत्याचारी और अविश्वासी शासक था। उसने अपने भाई विक्रमादित्य को मारने का प्रयास किया जिससे विक्रमादित्य तुंगभद्रा की तरफ भाग गया।
सोमेश्वर ने उसका पीछा करने के लिए सेना भेजी परंतु वह सेना परास्त हुई।
विक्रमादित्य यहां से गोवा गया जहां के राजा ने उसका स्वागत किया फिर उसने चेर और चोल राजाओं को परास्त किया। चोल राजा राजेंद्र चोल ने उससे संधि करके अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया।
वहां से आगे बढ़कर विक्रमादित्य तुंगभद्रा की ओर गया परंतु राजेंद्र चोल की मृत्यु हो जाने और उनमें उत्तराधिकार के लिए संघर्ष हो जाने की वजह से उसे पुनः चोल राज्य की ओर वापस आना पड़ा और उसने झगड़े को शांत कराया।
उसके पश्चात ही राजिग नाम सामंत ने विद्रोह कर दिया और विक्रमादित्य के भाई सोमेश्वर की सेनाओं को साथ लेकर विक्रमादित्य पर आक्रमण किया पर विक्रमादित्य ने दोनों को परास्त करके सोमेश्वर को बंदी बना लिया और वापस कल्याणी लौटकर सोमेश्वर को राज्य से हटाकर 1076 ईसवी में स्वयं राजा बना।
विक्रमादित्य:-
विक्रमादित्य का राज्य काफी लंबा था उसने लगभग 50 वर्षों तक शासन किया।
उसका गुजरात के चालुक्यों से युद्ध हुआ पर ये पराजित कर दिये गए।
विक्रमादित्य एक सफल योद्धा होने के साथ-साथ विद्या एवं कला का प्रेमी भी था उसने विभिन्न विद्वानों को अपने राज्य में आश्रय दिया था।
उसकी राजसभा में विक्रमांक देव चरित के लेखक विल्हड़ जो एक कश्मीरी पंडित थे रहते थे तथा याज्ञवल्क्य स्मृति के ऊपर मिताक्षरा नामक टीका लिखने वाले विज्ञानेश्वर भी रहते थे।
उसने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया।
तृतीय सोमेश्वर भूलोकमल्ल:-
विक्रमादित्य के पश्चात उसका पुत्र तृतीय सोमेश्वर भूलोकमल्ल शासक हुआ वह राजनीतिक रूप से शक्तिशाली नहीं था परंतु विद्वान था उसने मानसोल्लास नामक ग्रंथ की रचना की।
द्वितीय जगदेकमल्ल:-
सोमेश्वर के पश्चात उसका पुत्र द्वितीय जगदेकमल्ल शासक हुआ उसने मालवा के कुछ भाग को जीता।
तृतीय तैलप:-
जगदेकमल्ल के बाद उसका भाई तृतीय तैलप शासक हुआ। परंतु उसके मंत्री विज्जल कलचुरी ने सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया।
चतुर्थ सोमेश्वर:-
1128 ईसवी में चतुर्थ सोमेश्वर ने कल्चुरियों को समाप्त करके पुनः चालुक्य शासन स्थापित किया और धारवाड़ के जिले के अन्निगेरि में शासन किया।
इसी समय देवगिरि के यादवों की शक्ति प्रबल हुई और 1190 इसवी में देवगिरी के यादवों ने चालुक्य वंश का अंत कर दिया।
इसे भी देखें:-