अशोक महान्

अशोक का साम्राज्य

भारत के इतिहास में सम्राट अशोक महान् का स्थान बहुत ही ऊंचा है। सम्राट अशोक भारतीय राजनीति में उदित होने वाले एक प्रकाशमान नक्षत्र के समान हैं। ऐसा राजा जो एक महान विजेता था और जब वह अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष पर था उसी समय उसने युद्ध और रक्तपात की राजनीति से पीछा छुड़ाकर समाज में धर्म और मानवता का संदेश दिया।
विश्व के इतिहास में  अशोक मौर्य वंश का तीसरा शासक था उसका पिता बिंदुसार और पितामह महान चंद्रगुप्त मौर्य था। 

अशोक की माता का नाम शुभद्रांगी था तथा शुभद्रांगी से अशोक का एक अन्य भाई तिष्य हुआ।

अशोक बचपन से ही होनहार और योग्य था। अपने अन्य भाइयों के साथ अशोक की शिक्षा का प्रबंध किया गया था परंतु वह अपने भाइयों में सबसे अधिक योग्य निकला। बिंदुसार ने अशोक की योग्यता से प्रभावित होकर उसे अवंति का राज्यपाल नियुक्ति किया।

तक्षशिला में विद्रोह होने की स्थिति में विद्रोह को दबाने में जब सुसीम असमर्थ हो गया तो बिंदुसार ने अशोक को विद्रोह को दबाने के लिए भेजा और अशोक ने कुशलता पूर्वक बिना रक्तपात के उस विद्रोह को शांत कर दिया।

बिंदुसार का बड़ा लड़का सुसीम अशोक से जलन रखता था क्योंकि अशोक सुसीम से अधिक योग्य था।अशोक की  लगातार सफलता से सुसीम उसके प्रति और अधिक सशंकित हो गया।

सुसीम बिंदुसार का बड़ा लड़का था और वह देखने में भी सुंदर था इसलिए बिंदुसार उसे अधिक स्नेह करता था और अपने पश्चात उसे ही राजा बनाना चाहता था।

 272 ईसा पूर्व में बिंदुसार बीमार पड़ा तो उस समय उसके पुत्रों में संघर्ष का सूत्रपात हुआ। बिंदुसार अपने बड़े लड़के सुसीम को राजा बनाना चाहता था परंतु उसके दोनों पुत्र सुसीम और अशोक के सहयोगी दो दलों में बंट गए। एक पक्ष सुसीम को राजा बनना चाहता था और दूसरा पक्ष अशोक को।

सुसीम का साथ उसके अधिकांश भाइयों ने दिया जबकि अशोक के साथ उसका सहोदर भाई तिष्य था दोनों दलों में भीषण युद्ध आरंभ हुआ जिसमें सुसीम अपने कई भाइयों के साथ मारा गया और अशोक विजयी हुआ। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अशोक अपने 99 भाइयों को मार कर सम्राट बना था पहले उसे चंडाशोक कहा जाता था परंतु अशोक के अभिलेखों से इसका विरोधाभास मिलता है क्योंकि उसने अपने अभिलेखों में अपने भाइयों के जीवित होने की बात कही है।अशोक का राज्याभिषेक 269 ईसापूर्व में हुआ इस प्रकार 272 से 269 ईसापूर्व के बीच का अंतर यह प्रदर्शित करता है कि इस समय के बीच राज्य में उथल पुथल थी।

विवाह और संताने:-

पाली ग्रंथ दीप वंश और महा वंश से यह पता चलता है कि अशोक  ने  कई विवाह किए:-देवी,कारूकावी, तिष्यरक्षिता,असंघमित्रा,पद्मावती और उनसे कई संताने भी हुई थी –

देवी – महेंद्र (पुत्र ), संघमित्रा (पुत्री )।
कारुकावी:- तीवर(पुत्र )
पद्मावती:- कुणाल (पुत्र)

अशोक का विजय अभियान:-

अपने पिता और पितामह की भांति ही अशोक ने सिंहासन पर बैठने के पश्चात दिग्विजय प्रारंभ किया पहले उसने कश्मीर राज्य पर आक्रमण करके उसे अपने अधिकार में ले लिया कहा जाता है कश्मीर की राजधानी श्रीनगर का निर्माण सम्राट अशोक ने ही कराया था।

अशोक महान् ने अपने विजय अभियान में कलिंग राज्य पर आक्रमण किया कलिंग राज्य जो आधुनिक उड़ीसा राज्य में स्थित था वह अभी तक मौर्य साम्राज्य की अधीनता में नहीं आ पाया था कलिंग के नागरिक अत्यंत ही स्वतंत्रता प्रेमी थे उन्होंने मगध की विशाल सेना का डट कर सामना किया और भीषण संग्राम हुआ जिसमें अशोक विजयी हुआ इस युद्ध में जनधन की भारी क्षति हुई थी । इस युद्ध के परिणाम स्वरूप डेढ़ लाख व्यक्ति निर्वासित हुए और एक लाख व्यक्ति मारे गए अशोक के 13 वें शिलालेख में इसका उल्लेख किया गया है।

जब अशोक  घोड़े पर बैठकर युद्ध भूमि का निरीक्षण करने गया तब उसे चारों तरफ लाशों के ढेर दिखाई दिए जिससे अशोक का मन विचलित हो गया और उसने यह प्रतिज्ञा की कि अब वह शस्त्र नहीं उठाएगा।

अन्य मौर्य राजाओं की भांति ही अशोक वैदिक धर्म का अनुयाई था और शिव का उपासक था परंतु धीरे-धीरे उसका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर होता गया और अंत में उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु से अशोक ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।

इस प्रकार अशोक ने भेरीघोष (युद्ध के नगाड़ों की ध्वनि) को छोड़कर धम्मघोष (धर्म प्रचार) अपना लिया।

अशोक का धम्म घोष:-

कलिंग युद्ध के पश्चात मृतकों के समूह को देखकर अशोक को युद्ध की अनावश्यकता समझ में आ गयी और उसने निश्चय किया है कि अब वह मानवता की सेवा करेगा । दीनों की सेवा करके उनके हृदय को जीतना युद्ध की विजय से कहीं अधिक स्थायी और आनंददायक है। इसलिए अशोक ने दीन दुखियों ,रोगियों यहां तक कि जानवरों की भी देखभाल के लिए अस्पताल बनवाए। 

अशोक ने अपने धर्म का प्रचार ना केवल अपने विशाल साम्राज्य में ही वरन विश्व के अन्य भागों में भी किया तथा अलग-अलग राजाओं को और उनके राज्य को मानव मात्र की सेवा से मिलने वाले आनंद को समझाने का प्रयास किया।

अपने धर्म विजय के लिए अशोक ने व्यवस्थित तरीका अपनाया इसके लिए उसने एक विभाग की स्थापना किया जिसके प्रमुख को धर्ममहामात्य कहा जाता था वह जनता की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति की देखभाल करता था।

अशोक महान् ने अपने राज्य में धर्म गोष्ठियों का आयोजन किया इसमें धार्मिक विषयों पर भाषण, कथा और वाद विवाद होते थे

कुछ विद्वानों के अनुसार अशोक का धर्म बौद्ध ना होकर मानव धर्म था,परंतु भाब्रू के शिलालेख में उसने बुद्ध, धम्म और संघ को प्रणाम किया है जिससे उसका बौद्ध होना प्रमाणित होता है।

सम्राट अशोक ने उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म की दीक्षा लिया।

धार्मिक यात्राएं:-

बौद्ध धर्म की तृतीय संगति सम्राट अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में आयोजित की गई थी इस संगति में यह निर्णय लिया गया की धर्म के प्रचार हेतु बौद्ध भिक्षुओं को देश के अलग-अलग भागों में व विश्व के अन्य प्रांतों में भी भेजा जाएगा इस प्रकार से सम्राट अशोक ने अपनी धम्म विजय के संकल्प को वैश्विक विस्तार दिया और चुने हुए विद्वान् भिक्षुओं को धर्म प्रचार के लिए भेजा गया इसका वर्णन पाली भाषा में लिखे गए श्रीलंकाई ग्रंथ दीपवंश एवं महावंश से मिलता है जो निम्न है-

मज्झन्तिक को गांधार एवं कश्मीर

महारक्षित को यवन देश( यूनान)

मज्झिम को हिमालय देश (नेपाल)

धर्म रक्षित को अपरान्तक (गुजरात राजस्थान आंध्र प्रदेश आदि सागर तटीय क्षेत्र)

महाधर्मरक्षित को स्वर्णप्रान्त (महाराष्ट्र)

महादेव को महिषमंडल (कर्नाटक, मैसूर अथवा मांधाता)

 रक्षित को वनवासी (उत्तरी कर्नाटक)

सोन एवं उत्तर को स्वर्ण भूमि (म्यामार, जावा, सुमात्रा)

महेन्द्र एवं संघमित्रा को श्रीलंका भेजा गया।

इस प्रकार सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को भारत से निकालकर विश्व के अन्य भागों में फैलाया और इसे विश्व धर्म बना दिया इससे उसने अपने धम्म घोष (धर्म की विजय) के कार्य को भी सफलतापूर्वक पूर्ण किया।

धार्मिक लेख:-

अशोक ने अपने धार्मिक लेखों को पत्थरों, स्तंभों और गुफाओं में उत्कीर्ण कराया इसका उद्देश्य था कि इन पत्थरों और गुफाओं में उपदेश लिखने से यह आसानी से नहीं मिटेंगे और भविष्य में मेरे ना रहने पर भी लोग मेरे बताए मानवतावादी मार्ग का अनुसरण करेंगे और युद्ध और रक्तपात की जगह मानवता की सेवा में आनंद प्राप्त करें। अशोक के अभिलेखों में उसे देवानाम प्रिय प्रियदर्शी कहा गया है।

अशोक के अभिलेखों को 6 भागों में विभाजित किया जा सकता है-

शिलालेख , लघुशिलालेख , स्तंभलेख , लघुस्तंभलेख गुहा लेख , अन्य लेख।

शिलालेख:-

इनकी संख्या 14 है। अशोक के सभी 14 शिलालेख गिरनार (गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र), कालसी (उत्तर प्रदेश में देहरादून के निकट), मानसेहरा,शाहबाजगढ़ी(पाकिस्तान) और एर्रागुड्डी (आंध्र प्रदेश में कुरनूल के निकट), सन्नथी (कर्नाटक) इसके अलावा महाराष्ट्र के सोपारा में तथा उड़ीसा में धौली और जौगढ़ में स्थित हैं।

 १३ वां शिलालेख( कुछ अंश):-

…..कलिंग ……एक लाख लोग मारे गए और इससे कई गुना महामारी आदि रोगों से मरे ।उसके बाद अब जबकि कलिंग देश मिल गया है धर्म का तीव्र अध्ययन…… देवताओं के प्रिय को ……लोगों की हत्या, मृत्यु और देश निष्कासन होता है। देवताओं के प्रिय को बहुत दुख हो खेद हुआ।….. ब्राह्मण ,श्रमण तथा अन्य ……..माता पिता की सेवा, गुरुजनों की सेवा, मित्र, परिचित, सहायक, जाती, दास ………..परिजनों से वियोग जिनके सहायक और संबंधी विपत्ति में पड़ जाते हैं उन्हें भी इस कारण पीड़ा होती है यह विपत्ति सबके हिस्से में पडती है ।………….यवनों के सिवा जो वर्ग….. जहां मनुष्य एक ना एक संप्रदाय को  मानते हैं …..उस समय जितने आदमी…….   हजारवें हिस्से का नाश भी देवताओं के प्रिय के दुख का कारण होगा।…..

स्तंभ लेख:-

दिल्ली टोपरा, दिल्ली मेरठ ,लौरिया नंदनगढ़, लौरिया अरेराज ,रामपुरवा जो कि बिहार में है। उदाहरण स्वरूप द्वितीय स्तंभ लेख-

देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा का कहना है कि- धर्म करना अच्छा है । पर धर्म क्या है?  धर्म यही है कि पाप से दूर रहें बहुत से अच्छे काम करें दान, दया ,सत्य और सौच(पवित्रता) का पालन करें मैंने कई प्रकार से चक्षु का दान (आध्यात्मिक दृष्ट का दान) भी लोगों को दिया है दोपायो, चौपायों ,पक्षियों और जलचर जीवों पर भी मैंने अनेक कृपा की है मैंने उन्हें प्राण दान भी दिया है और भी बहुत से कल्याण के काम मैंने किये । यह लेख मैंने इसलिए लिखवाया है कि लोग इसके अनुसार आचरण करें और यह चिरस्थाई रहे ।जो इसके अनुसार कार्य करेगा वह पुण्य का काम करेगा।

लघुशिलालेख:-

सासाराम (बिहार ) ,रूपनाथ , गुर्जरा(मध्य प्रदेश), भाब्रू (राजस्थान ), ब्रम्हगिरी ,सिद्धपुर , जटिंग रामेश्वर, गोवि मठ ,पालकी मुंडू (कर्नाटक )राजुल मंडगिरी , मास्की, एर्रा गुड्डी (आंध्र प्रदेश ),अहरौरा (उत्तर प्रदेश )   अमर पुरी (नई दिल्ली)आदि हैं।

लघु स्तंभ लेख:-

रुक्मिनदेयी, निग्लिहवा( नेपाल), सारनाथ, कौशांबी (उत्तर प्रदेश), सांची (मध्य प्रदेश) और इलाहाबाद से प्राप्त रानी का स्तंभलेख।

रुक्मिन देयी का लघु स्तंभ लेख:-

सम्राट अशोक का रुक्मिनदेई का ब्राह्मी लेख
रुक्मिनदेई का ब्राह्मी लिपि में लिखा लघु स्तम्भ लेख

देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने राज्याभिषेक के 20 वें वर्ष बाद स्वयं आकर इस स्थान की पूजा की क्योंकि यहां शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म हुआ था यहां पत्थर की एक प्राचीर बनवाई गई और पत्थर का एक स्तम्भ खड़ा किया गया। बुद्ध भगवान यहां जन्मे थे इसलिए लुंबिनी ग्राम को कर से मुक्त कर दिया गया और पैदावार का आठवां भाग भी जो राजा का हक था उसी ग्राम को दे दिया गया।

सारनाथ का लघु स्तंभ लेख:-

सारनाथ का सिंह स्तम्भ

यह लेख सारनाथ में नियुक्त महामात्यों को संबोधित किया गया है-देवताओं के प्रिय……………. पाटलिपुत्र में ……. कोई संघ में फूट ना डाले। जो कोई चाहे वह भिक्षु हो या भिक्षुणी संघ में फूट डालेगा उसको श्वेत वस्त्र पहना कर उस स्थान में रखा जाएगा जो भिक्षु और भिक्षुणियों के योग्य नहीं है ।इस प्रकार मेरी यह आज्ञा भिक्षु संघ और भिक्षुणी संघ को बता दी जाए देवताओं के प्रिय ऐसा कहते हैं – इस प्रकार का एक लेख आप लोगों के पास आप के कार्यालय में रहे और ऐसा ही एक लेख आप लोग उपासको के पास रखें। उपासक लोग हर उपवास के दिन इस आज्ञा पर अपना विश्वास दृढ़ करने के लिए आएं। निश्चित रूप से हर उपवास के दिन प्रत्येक महामात्य इस आज्ञा पर अपना विश्वास जताने तथा इसका प्रचार करने के लिए उपवास में सम्मिलित हो जहां पर आप लोगों का अधिकार हो वहां वहां आप सर्वत्र इस आज्ञा के अनुसार प्रचार करें इसी प्रकार आप लोग सब कोटों और विषयों(प्रांतों) में भी अधिकारियों को इस आज्ञा के अनुसार प्रचार करने के लिए भेजें।

गुहा लेख:-

यह बिहार में गया के पास बराबर की पहाड़ियों में मिलते हैं

प्रथम गुहा लेख:-

राजा प्रियदर्शिनी ने अभिषेक के बारहवें वर्ष में न्यग्रोथ गुफा आजीवकों को दी।

द्वितीय गुहा लेख :-

स्खलतित पर्वत पर यह गुहा शासन के बारहवें  वर्ष में आजीवकों को दी गई।

तृतीय गुहा लेख:-

यह  गुफा बाढ़ के पानी से बचने के लिए राजा के अभिषेक के 19 वें वर्ष में आजीवकों को दी गई थी।

अशोक का एक अन्य महत्वपूर्ण शिलालेख कंधार से अप्रैल १९५८(1958)में प्राप्त हुआ है। यहशिलालेख एक विशाल शिला पर शरिकुन नामक स्थान पर प्राप्त हुआ है ।यह द्विभाषी शिलालेख है जिसे ग्रीक और अरामाइक दोनों भाषाओं में लिखा गया है वास्तव में यह शिलालेख ग्रीक भाषा में है परंतु इसका अनुवाद ईरानी भाषा में किया गया है । इस शिलालेख में अशोक ने पशुओं और मनुष्यों के प्रति प्रेम का संदेश दिया है । इस लेख में ग्रीक भाषा की 14 पंक्तियां हैं तथा अरामाईक भाषा की 8 पंक्तियां हैं।

इसे भी देखें:-

अशोक के विभिन्न अभिलेख

तीसरी बौद्ध संगति:-

अशोक महान् के शासनकाल में २५१ ईसा पूर्व में तीसरी बौद्ध संगति का आयोजन पाटलिपुत्र में किया गया इसकी अध्यक्षता मोगलीपुत्त्त तिस्स ने की थी। तृतीय बौद्ध संगति के आयोजन का मुख्य कारण बौद्ध भिक्षुओं में व्याप्त आपसी मतभेदों को दूर करना था। इस संगति में विनय पिटक एवं सुत्त पिटक की पृष्ठभूमि में एक अन्य ग्रंथ कथावत्थु का निर्माण मोग्गलिपुत्त तिस्स ने किया जो अभिधम्म पिटक का आधार बना।

इसी बौद्ध संगति में यह निश्चित हुआ था कि धर्म प्रचारकों को पाटलिपुत्र के बाहर साम्राज्य की सीमा में और भारतवर्ष के बाहर अन्य देशों में भी भेजा जाएगा। जिसका वर्णन उपरोक्त धार्मिक यात्राएं हेडिंग में है।

सम्राट अशोक महान् के लोक कल्याणकारी कार्य:-

अशोक ने अपनी प्रजा को अपना पुत्र कहा , प्रजा के हित के लिए उसने अथक परिश्रम किया और प्रजा को अधिक से अधिक सुख देने के लिए जीवन भर प्रयत्नशील रहा ।

सम्राट अशोक ने मनुष्य के साथ साथ पशुओं के लिए भी हितकारी कार्य किए पशुओं की देखभाल के लिए चिकित्सालय की व्यवस्था की गई थी यह अपने आप में विश्व इतिहास में एक अनूठी पहल है। उसने सड़के बनवाई सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाये ,स्थान स्थान पर कुएं खुदवाए। लोगों के रहने के लिए धर्मशाला का निर्माण कराया ,औषधालय बनवाए पशुवध निषिद्ध कराया।

अशोक के बौद्ध धर्म के प्रचार का भारतीय राजनीति पर प्रभाव:-

विद्वानों ने एक स्वर में सम्राट अशोक को महान शासक स्वीकार किया है उसने  राजा और जनता के सामने मानवता का एक आदर्श प्रस्तुत किया परन्तु उसकी इस अहिंसक प्रकृति का दुष्परिणाम भी सामने आया । जब तक वह जीवित था तब तक उसका राज्य पूरी तरह से सुरक्षित था परंतु उसके पश्चात उसके दुर्बल उत्तराधिकारियों के समय वह खंड-खंड होकर बिखरने लगा सम्राट अशोक की अहिंसक नीति और उसके अधिकारियों का उसकी अहिंसक नीति के प्रचार में लगना उसकी सेना को धीरे-धीरे करके कमजोर करता गया । सेना युद्ध के प्रति अभ्यास हीन हो गई जिससे विदेशी बर्बर आक्रमणकारियों के लिए भारत पर आक्रमण का प्रयास प्रारंभ हो गया।

अस्त्र-शस्त्र की तरफ से उदासीन होना शस्त्रों में जंग लगाता गया और युद्ध तथा कूटनीति  के जो नियम प्राचीन शास्त्रों व अपने अनुभव से प्राप्त करके आचार्य चाणक्य ने अर्थशास्त्र में दिए हैं उनकी उपेक्षा हो गई जो एक राज्य की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है । क्योंकि संसार की व्यवस्था के अनुसार किसी व्यक्ति से अपने राज्य और सीमा की सुरक्षा के लिए शक्तिशाली सैन्य बल की आवश्यकता होती है।

अशोक की अहिंसक नीति भारत की जनता के लिए उपयोग में आने वाली थी परंतु  मध्य एशिया और यूनानी आक्रमणकारियों के लिए जो केवल शस्त्र की भाषा समझते थे कैसे कारगर हो सकती थी।

 उसको संपूर्ण विश्व के इतिहास में महानतम सम्राट स्वीकार किया गया है। यद्यपि सिकंदर महान एक महान विजेता था और उसने विश्व के अनेक सम्राटों को अपने पैरों पे झुकाया था परंतु किसी व्यक्ति की महानता मात्र युद्ध कौशल से ही नहीं होती है परंतु महान अधिकार प्राप्त होने के बाद भी मानवता की सेवा करने की लगन से होती है।

अशोक युद्ध का महान विजेता होने के साथ-साथ  लोगों के हृदय का भी महान विजेता था।

अशोक के पश्चात उसका पुत्र कुणाल भारत का शासक हुआ।

इसे भी देखें:-

अशोक के बाद मौर्य वंश

मौर्य कालीन सभ्यता संस्कृति

2 thoughts on “अशोक महान्

  1. Aacharya Kansh

    vaidik naam ka us samay kuch tha hi nahi, kya tumko kisi shilalekhme likha hua mila ki asoka pehle vaidik dharm ka palan karte the, vaidik faidik us samay tha hi nahi shraman sanskriti thi, tum kehte ho wo shiv bhakt the to asoka ke banvaye kitne mandir mile hai tumhe aaj tak shiv ke,
    jo sach hai wo batao na, tum log apni taraf se hi kuch ghused kar rakh dete ho usme jiska na koi sabut or na koi praman milta hai, or baad me kehte ho ki nahi nahi aisa kaha jata hai, are bhai jisne kaha hai uske pas bhi isko sabit karne ke liye koi praman hai kya?
    jo sabut mil paye hai usi hisab se batao na, faltu ki baate batane ka kya matlab, aisi hi baate ghused kar to fir chanakya jaisa aadmi khud hi paida kar ke us samay me bitha dete ho or kehte ho ki wo sanskrit bolta tha,
    or agar chanakya tha or vo sanskrit bolta tha or bahut buddhiman bhi kehte hai use, uske naam se kai lines log jaha vaha likh ke ghumte firte hai to us samay chanakya ne wo lines kaha par likh ke rakhi thi uska koi shilalekh mila hai kya, agar nahi mila hai to aaj ke logo ke paas wo bate pahunchi kaise? jab ki usne to likhwa kar hi nahi rakhe the or kagaj kalam to bahut baad ki khoj hai.

    1. rahulti332

      सम्राट अशोक के पहले से वैदिक संस्कृति थी।उसके अनेक शिलालेखों में जैसे तेरहवें शिलालेख में उसने श्रमणों के साथ ब्राह्मणों का सम्मान करने को कहा है।अपने प्रत्येक शिलालेख में उसने ब्राह्मणों का नाम पहले लिया है।वैदिक संस्कृति में ब्राह्मणों का सदैव नाम लिया गया है। मास्की और रुक्मिनदेयी के लघु शिलालेख में अशोक ने बताया है कि वह पहले बौद्ध नही था।(आप मेरा अशोक के विभिन्न अभिलेख आर्टिकल देख सकते हैं) कल्हड़ की पुस्तक राजतरंगिणी में मिलता है कि अशोक पहले शैव था।

Leave A Comment