अशोक के बाद मौर्य वंश

मौर्य कालीन राजाओं के विषय में जानने के लिए कई ग्रंथ हैं इनमें बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान, कल्हण की राजतरंगिणी और भागवत महापुराण तथा विष्णु पुराण आदि हैं –

भागवत महापुराण और विष्णु पुराण में मौर्य वंश के 10 राजाओं का वर्णन दिया गया है-

चंद्रगुप्त ,वारिसार (बिंदुसार), अशोक वर्धन ,सुयश ,संगत ,दशरथ ,शालिसूक, सोमशर्मा ,शतधन्वा और  बृहद्रथ।

अशोक के पश्चात सात मौर्य शासकों ने राज्य किया इनका अधिक विवरण नहीं प्राप्त होता है । मौर्य वंश का अंतिम शासक वृहद्रथ था। मौर्य शासकों की वंशावली पुराणों और बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में दिया गया है परन्तु इनके नामों में अन्तर है। अशोक के बाद के मौर्य शासकों का वर्णन निम्न है :-

कुणाल:-

अशोक की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र कुणाल राज सिंहासन पर बैठा कुणाल की माता का नाम पद्मावती था कुणाल की आंखें बहुत सुंदर थी और उसकी आंखें पहाड़ी प्रदेश पर मिलने वाले पक्षी कुणाल से मिलती थी जिसके कारण मंत्रियों ने और सम्राट अशोक में उसे कुणाल कहना प्रारंभ कर दिया।

बौद्ध और जैन ग्रंथों के अनुसार अशोक की एक अन्य पत्नी तिष्यरक्षिता ने षड्यंत्र करके कुणाल को अंधा बना दिया बाद में एक ऋषि के आशीर्वाद से उसकी आंखें वापस लौट आई। कुणाल की मृत्यु 224 ईसा पूर्व में हुई।

दशरथ:-

कुणाल के पश्चात दशरथ गद्दी पर बैठा । वह धार्मिक प्रवृति का था । दशरथ ने आजीवकों के लिए नागार्जुन की पहाड़ियों पर गुफा विहार बनवाया था। यह निश्चित नहीं कहा जा सकता कि वह बौद्ध धर्म का अनुयाई था अथवा नहीं । परंतु उसने विभिन्न धार्मिक कार्य किए । दशरथ की मृत्यु 216 ईसा पूर्व में हुई ।

सम्प्रति :-

दशरथ के पश्चात उसका भाई सम्प्रति राज सिंहासन पर बैठा । अपने भाइयों की सहायता करते करते उसे राजकार्य का काफी अनुभव हो गया था उसी समय में मगध साम्राज्य की दो राजधानियां पाटिलपुत्र और उज्जैनी थी। वह जैन धर्म का अनुयाई था जैन धर्म के इतिहास में उसका अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। सम्प्रति की मृत्यु 207 ईसा पूर्व में हुई।वह उत्तरवर्ती मौर्य शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली था।

शालिशूक:-

अपने भाई की हत्या करके शालिशूक सिंहासन पर बैठा उसका वर्णन गार्गी संहिता में मिलता है जिसमें उसे अधार्मिक कहा गया है। शालिशुक के समय में प्रांतीय शासकों ने अपने राज्य स्थापित करने शुरू कर दिए थे।उसी के समय में यूनानी शासक एंटीयोकस तृतीय ने भारत पर आक्रमण किया परंतु बिना युद्ध के वापस लौट गया।

 देव वर्मा:-

शालिशूक के पश्चात देव वर्मा मगध के सिंहासन पर बैठा परंतु उसका शासन अधिक समय तक नहीं था।

शतधन्वा:-

शालिशूक के पश्चात शतधन्वा मगध के सिंहासन पर बैठा ।

बृहद्रथ:-

मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ भोग विलास में लिप्त रहता था। पुराणों के अनुसार वह राज्य शासन से पूरी तरह विमुख हो गया था जिसके कारण उसके मंत्रियों में काफी असंतोष था और अंत में उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने सेना का निरीक्षण कराने के बहाने उसका वध कर दिया और शुंग वंश की नींव डाली।

श्रीमद्भागवत द्वादश स्कंध प्रथम अध्याय

हतवा बृहद्रथ मौर्य तस्य सेनापति: कलो।पुष्यमित्र स्तु शुंगाह्वा स्वयं राज्यम करिष्याती।।१६

बृहद्रथ नामक मौर्य शासक को मारकर उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने स्वयं राज्य किया।

इस प्रकार मात्र 137 वर्ष के शासन के पश्चात मौर्य वंश का अंत हुआ और मौर्य वंश इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। मौर्य वंश की समाप्ति के साथ ही उन महान शासकों का दौर समाप्त हुआ जिनमें से एक भी संपूर्ण विश्व के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ कहलाने की योग्यता रखता था। मौर्य शासन जिसे सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने अथक परिश्रम से खड़ा किया था और आचार्य चाणक्य जैसे महा मनस्वी ने ऐसी व्यवस्था प्रदान की थी जिसके सामने आधुनिक समय की अच्छी से अच्छी नगर प्रशासन और व्यवस्थाएं लज्जित हो सकती हैं ।बिंदुसार जिसे पुराणों में वारिसार कहा जाता है और जिसका अन्य नाम अमित्रघात भी है वह भी महान पराक्रमी था उसने मौर्य साम्राज्य की वृद्धि किया। सम्राट अशोक संपूर्ण विश्व के इतिहास के महानतम सम्राटों में स्वीकार किए जाने योग्य है जिसने संसार को मानव प्रेम,जीवों पर दया और करुणा का पाठ पढ़ाया।

मौर्य वंश के पतन के कारण:-

सम्राट अशोक के बाद मौर्य वंश का पतन धीरे-धीरे होने लगा । मौर्य वंश के पतन के निम्नलिखित कारण थे:-

योग्य उत्तराधिकारियों का अभाव:-

अशोक के पश्चात उसके उत्तराधिकारियों में कोई भी इतना योग्य और शक्तिशाली नहीं हुआ कि वह विशाल मौर्य साम्राज्य को एक सूत्र में बांध सकता था। इस समय विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिला और उन्होंने स्वतंत्र राज्य स्थापित करके केंद्रीय शासन को दुर्बल बना दिया।

साम्राज्य का अत्यंत विस्तृत होना:-

मौर्य साम्राज्य हिंदूकुश से लेकर बंगाल की खाड़ी तक तथा दक्षिण में नर्मदा से कश्मीर तक अत्यंत विस्तृत था और उस विशाल शासन व्यवस्था को संचालित करना एक अत्यंत ही योग्य निपुण शासक के बस की बात थी। अशोक के उत्तराधिकारी शासक अपने प्रांतीय अधिकारियों पर अंकुश लगाये रखने में असमर्थ हुए जिससे कि राज्य बिखरने लगा।

सैन्य दुर्बलता:-

चंद्रगुप्त मौर्य के समय में एक विशाल सेना स्थापित की गई थी। यूनानी विद्वानों ने भी इसका समर्थन किया है वह दिग्विजय सेना थी और उसने सदैव विजय प्राप्त किया था । बिंदुसार ने इसी सेना के बल पर साम्राज्य का विस्तार समुद्र तक किया था । सेना ने अशोक के समय में भी अपनी कुशलता का परिचय दिया और कश्मीर तथा कलिंग जैसे राज्यों को बड़ी आसानी से जिता दिया । उस समय तक सेना विभिन्न युद्ध में अनुभव प्राप्त करने वाली तथा नियमित अभ्यास करने वाली थी ,परंतु जब से अशोक ने भेरी घोष के स्थान पर धम्म घोष का अनुसरण करना शुरू कर दिया उसके पश्चात सेना में अधिकारियों का कार्य धर्म का प्रचार करना रह गया । जब तक सम्राट अशोक जीवित था तब तक किसी भी बाहरी सत्ता में भारत की तरफ आंख उठाने की हिम्मत नहीं हुई । परंतु उसके दुर्बल उत्तराधिकारियों के समय में उन्होंने भारत के द्वार खटखटाने शुरू कर दिए ।

अशोक का धम्म:-

ब्राह्मणों में असंतोष:-

यद्यपि यह कारण अप्रकट था परंतु फिर भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता ।
मौर्य शासक प्रगतिवादी विचारधारा के थे । अशोक प्रारंभ में शिव का उपासक था परंतु कलिंग युद्ध के बाद उसने बौद्ध धर्म अपना लिया। बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए संपूर्ण राजकीय शक्ति का उपयोग कर दिया तथा बौद्धों के लिए अनेक विहार, स्तूप ,गुफाएं बनवाई, इस कारण से ब्राह्मण लोग अपने को अपमानित समझने लग गए। वैदिक धर्म के अनुयायियों की संख्या राज्य में उस समय भी अधिक थी।यद्यपि सम्राट अशोक श्रमण भिक्षुओं से पहले ब्राह्मणों का आदर करता था और उन्हें दान भी देता था ।परंतु फिर भी यदि अशोक बौद्ध धर्म को अपने व्यक्तिगत जीवन तक ही सीमित रखता तो शायद बात सहन योग्य होती परंतु उसने धर्म के प्रचार प्रसार के लिए राज्य की शक्ति का प्रयोग किया इसके जरिए अशोक मानवता की सेवा करना चाहता था। इस कार्य से वैदिक धर्मावलंबियों में असंतोष फैला।

राष्ट्रीयता के स्थान पर अंतर्राष्ट्रीयता का विकास हुआ। राष्ट्रीय भावना,शत्रु से घृणा का भाव , युद्ध वीरता यह सारे भाव समाप्त होने लगे । राष्ट्र की सुरक्षा के लिए शत्रुओं से घृणा और राष्ट्रीयता का भाव आवश्यक होते हैं जबकि अंतरराष्ट्रीयता राज्य की सुरक्षा के लिए घातक होती है।

इसे भी देखें:-

मौर्य कालीन सभ्यता संस्कृति

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